ब्रह्मा जी की आयु उनके निजी मान के अनुसार 100 वर्ष मानी गई है। बह्मा जी की इस 100 वर्ष की आयु को ‘पर’ कहते हैं, आधे को ‘परार्ध’ कहते हैं। ब्रह्मा जी की एक दिन की आयु को ‘कल्प’ कहा गया है।
ब्रह्मा जी के एक दिन रूपी कल्प में चौदह मन्वंतर होते हैं। एक देवताओं के समूह के कार्यकाल को एक मन्वंतर कहते हैं। सूर्य से लेकर सप्तऋषियों तक के स्थान, देवताओं के निवास स्थान हैं। मन्वंतर की समाप्ति पर इन सभी का संहार हो जाता है। पुराने देवताओं में कर्मानुसार कुछ वैकुंठ, कुछ ब्रह्म धाम को चले जाते हैं।
सभी मन्वंतर समान होते हैं, लेकिन अलग मन्वंतर में जीवों का शक्ल-सूरत, आकर-प्रकार भिन्न होता है। जैसे ‘चाक्षुस मन्वंतर’ में मानव रूपी जीव की शक्ल ‘वैवस्वत मन्वंतर’ अर्थात वर्तमान मन्वन्तर के बिल्ली के समान थी। अर्थात, अगले मन्वंतर में मानव का आकार-प्रकार, शक्ल-सूरत आज से अलग होगा।
इस वर्तमान समय में ब्रह्मा जी के दिन रूपी कल्प के 14 मन्वंतरों के नाम इस प्रकार हैं:
- स्वयंभू मन्वंतर
- स्वरोचिष मन्वंतर
- उत्तम मन्वंतर
- तामस मन्वंतर
- रैवत मन्वंतर
- चाक्षुस मन्वंतर
- वैवस्वत मन्वंतर (वर्तमान मन्वंतर)
- सूर्यसावर्ण या सावर्णि मन्वंतर
- दक्षसावर्ण मन्वंतर
- ब्रह्मसावर्ण मन्वंतर
- धर्मसावर्ण मन्वंतर
- रुद्रसावर्ण मन्वंतर
- रोचमान मन्वंतर
- भौतय मन्वंतर।
एक मन्वंतर में 71 चतुर्युग (सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग) होते हैं। अतः लगभग 1000 चतुर्युग (71×14 = 994) के बराबर दिन और इतनी ही रात्रि ब्रह्मा जी के एक दिन (कल्प) के बराबर होते हैं।
- वैशाख मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को सतयुग का प्रारंभ होता है।
- कार्तिक मास के शुक्लपक्ष के नवमी को त्रेता
- भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को द्वापर
- माघ मास की पूर्णिमा को कलियुग का प्रारंभ होता है।
उपरोक्त चारों युगादी तिथियाँ कही जाती हैं।
एक मन्वंतर में 71 चतुर्युग (सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग) होते हैं। वर्तमान वैवस्वत मन्वंतर के 71 चतुर्युग में से 27 चतुर्युग बीत चुके हैं और 28 वें चतुर्युग का कलियुग चल रहा है।
देवताओं के गणना के अनुसार एक मन्वंतर के 71 चतुर्युग में 12000 देवताओं का वर्ष अर्थात, दिव्य वर्ष होते हैं। मानव गणना के अनुसार 1 दिव्य वर्ष में 360 मानव वर्ष होते हैं। (1 मानव वर्ष = देवताओं का 1 दिन)
12000 दिव्य वर्षों में:
4000 दिव्य वर्ष सतयुग,
3000 दिव्य वर्ष त्रेतायुग,
2000 दिव्य वर्ष द्वापरयुग, और
1000 दिव्य वर्ष कलियुग के होते हैं।
पितरों का संध्या और संध्यांश, सतयुग में 800 दिव्य वर्ष, त्रेता युग में 600 दिव्य वर्ष, द्वापर युग में 400 और कलियुग में 200 दिव्य वर्ष के बराबर होते हैं।
चारो युगों को जोड़ने पर 10000 दिव्य वर्ष (देवताओं का वर्ष) होता है तथा 2000 दिव्य वर्ष जो बचता है वह पितरों का संध्या और संध्यांश वर्ष हैं।
इस प्रकार की गणना हमें पुराण ग्रंथो, मनुस्मृति आदि से प्राप्त होती है।
मानव गणना के अनुसार 71 चतुर्युग (एक मन्वंतर) में 12000×360 = 4320000 मानव वर्ष होते हैं।
जैसा ऊपर स्पष्ट है कि एक मन्वंतर के 12000 दिव्य वर्ष में 4000 दिव्य वर्ष का सतयुग होता है, 3000 दिव्य वर्ष का त्रेता, 2000 दिव्य वर्ष का द्वापर और 1000 दिव्य वर्ष का कलियुग होता है। इसके द्वारा प्रत्येक युग में होने वाले देवताओं और मानवों के वर्ष होते हैं:
12000/4000 = 3 सतयुग
12000/3000 = 4 त्रेता युग
12000/2000 = 6 द्वापर युग
12000/1000 = 12 कलियुग
अब 12000 दिव्य वर्ष को 71 चतुर्युग से भाग करने पर जो अंक प्राप्त हो उसे 3, 4, 6, 12 से भाग करने पर प्रत्येक चतुर्युग काल के दिव्य वर्ष प्राप्त हो जायेंगे।
अतः 12000/71 = 169.01408 एक चतुर्युग का दिव्य वर्ष।
मानव वर्ष गणना:
सतयुग = 169.01408/3 = 56.33802 × 360 = 20281.69 मानव वर्ष
त्रेता = 169.01408/4 = 42.25352 × 360 = 15211.267 मानव वर्ष
द्वापर = 169.01408/6 = 28.169013 × 360 = 10140.845 मानव वर्ष
कलियुग = 169.01408/12 = 14.084507 × 360 = 5070.4225 मानव वर्ष
कुल 50704.225 मानव वर्ष का एक चतुर्युग होता है।
28 वें चतुर्युग में भी यह कलियुग है जिसके कुल वर्षों की संख्या 5070.4225 या 5071 वर्ष है जिसमें से आज 2020 के अनुसार 5022 वर्ष समाप्त हो चुके हैं।
अतः आज से 5071 – 5022 = 49 वर्षों बाद अर्थात वर्ष 2069 की वैशाख मास के शुक्लपक्ष की तृतीया से 29 वें चतुर्युग के सतयुग का आरंभ होगा।
बहुत सुंदर और सटीक विवेचना,
धन्यवाद 🙏
बहुत ही उपादेय तथा उत्कृष्ट लेख। हिन्दू धर्म के ऐसे अनेकानेक अनालोचित अध्याय के उपर आलोकपात जारी रखिए; आपको एवम् संभाषण टीम को आंतरिक नमन।
🙏अशेष धन्यवाद।🙏
धन्यवाद सर, सादर प्रणाम! 🙏🙏