नरेंद्र मोदी कैसे गुजरात से भारत के जन और मन नेता बन गये?
कांग्रेस ने तो उन्हें राजनीतिक बिरादरी में अछूत घोषित कर रखा था। दिल्ली का लुटियंस गैंग मोदी नाम से बिदक जाता था। भारत का सो कॉल्ड बौद्धिक वर्ग गुजरात दंगे का न्याय, मोदी को सजा देकर करना चाहता था।
एक खास वर्ग जिसकी तालीम हावर्ड, आक्सफोर्ड आदि से हुई थी, जो भारत का होने पर भी अपने को इतना मॉडर्न मानता था कि उसे काला अंग्रेज कहना ही सही होगा।
कपिल सिब्बल, मणिशंकर अय्यर, शशि थरूर यहाँ तक कि अमर्त्यसेन, अभिजीत बनर्जी जैसे विद्वान एक खास मानसिकता की वजह से मोदी का विरोध कर रहे थे।
मोदी का राजनीति में जितना विरोध होता, मोदी की छवि जनता के मन पर सकारात्मक ढंग से और उभरती। मंझे नेताओं को मोदी कैसे मात दे गये? कांग्रेस पार्टी के बड़े दिग्गज मोदी के विरुद्ध नैरेटिव बनाने में लगे रहे। वह कांग्रेस पार्टी के इतिहास को भूल कर एक टट्टु को हाथी के मुकाबले में जीता मान कर चल रहे थे जबकि मोदी द्वारा हिंदुत्व की अपील जनता के सिर चढ़ कर बोली।
कांग्रेस और बुद्धिजीवी झूठे इतिहास के सहारे हिन्दू-मुस्लिम एकता के तराने गाते रहे हैं। अटल, आडवाणी, सिंहल, तोगड़िया से शुरू हुआ व्यूह मोदी के रूप में अर्जुन को पा गया। तुम होंगे पितामह, द्रोण और कर्ण जैसे महारथी किन्तु अर्जुन की जिम्मेदारी तो जनार्दन पर है, यही राजनीति में मोदी के इर्द गिर्द हुआ। साक्षात् जनार्दन नहीं तो जनता ही जनार्दन बन गयी।
विपक्षी अपनी मूर्खता से अभी भी बाज नहीं आ रहे हैं, मोदी के गुजरात में मुख्यमंत्री रहते जिस तरह का बर्ताव सोनिया टीम ने किया, जिसमें उन्हें “मौत का सौदागर” बताया गया उसका अभी उस समय के कैबिनेट मंत्री शरद पवार पोल खोल रहे हैं। आये दिन कोई न कोई कांग्रेसी वह बोल जाता है जिससे मोदी को फायदा हो।
चाय वाला.. चाय वाला और भारत का प्रधानमंत्री .. यह कर्ण जैसे महारथियों को रास नहीं आया, उन्हें स्वयं के बाहुबल को सिद्ध करने से ज्यादा दुर्योधन को राजा जो बनते देखना है क्योंकि दुर्योधन ने उनकी आकांक्षा को लाभ दिया, जो धर्म – अधर्म से भी ऊपर है। इसी मानसिकता को जीवित रखते हुए झूठे लोगों ने जनता को यह मनवाया कि सत्ता का अधिनायकत्व गांधी – नेहरू के परिवार में ही है। इनके बिना लोकतंत्र मर जायेगा। इसी के लिए यहाँ लोकतांत्रिक राज परिवार बन गये हैं जिससे लोकतंत्र जिंदा रहे।
उस परिवार की विचारधारा को सम्पूर्ण कांग्रेस पार्टी पर थोप दिया गया। जबकि आपको मालूम है कि आम जन-मानस क्या चाहता है। भारत में राजनीति की बयार बदल गयी है। आप भी तुम चिड़िया उड़, कौआ उड़ खेलना चाहते हैं।
आपने विचार किया है कि कोई आप की जमीन पर कब्जा कर ले, आप के बहन-बेटियों की अस्मत लूट ले, आपके पूजा स्थल पर अपना इबादतगाह बना दे, कब्जे के बाद जमीन को धर्म के नाम पर अलग कर ले। तो क्या आप सब भूल जाएंगे? क्योंकि कुछ लोग तराने सुना रहे हैं ‘हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई भाई-भाई।’ चंद लोगों की भलाई से देश और संस्कृति नहीं भूला दी जाती है।
उनके दिए घाव बहुत गहरे हैं, हमारी आवाज बनने वाला अब कोई राणा, कोई शिवाजी न रहा। पूरा माहौल सेकुलर बना कर हमारे ऊपर गांधी और नेहरू को थोप दिया गया। हम कैसे और कब राम-कृष्ण को छोड़ कर बुद्ध की रुबाइयां गाने लगे। जिसके युद्ध को महाभारत कहा गया वह अहिंसावादी हो गये।
नहीं दोस्त! हमारी आवाज दबा दी गयी इतिहास के माध्यम से, सिनेमा, साहित्य और शिक्षा के माध्यम से। देखिये न आप, जैसे ही कोई मोदी आया पूरा हिन्दू समाज एक जुट हो गया। वह धर्म, संस्कृति, संस्कार, आध्यात्म, यहाँ तक कि विद्या माता तक की बात करने लगा है।
यह हिन्दू है, किसी के किये गये उपकार और अपकार को सूद समेट लौटता है। आपको पीड़ा हो सकती है क्योंकि आप सेकुलर हो और एक खास परिवार के पुजारी भी। आपका सत्य रोमिला थापर और अमर्त्यसेन जैसे इतिहासकारों पर आश्रित है, आपकी दृष्टि गांधी परिवार के इबादत में चली गयी है।
सौ बात की सीधी एक बात, ‘बाना पहनने से कोई जोधा नहीं बन जाता, उसके लिए सीने में धधकती ज्वाला चाहिए।’