यूक्रेन संकट ने सिद्ध कर दिया है कि अपनी सुरक्षा स्वयं करनी पड़ती है। अमेरिका, ब्रिटेन, नाटो और UN सिर्फ कमजोर देशों के लिए ही हैं। रूस के आगे वह विवश और हाथ बांधे खड़े हैं।
नाटो के देशों ने यूक्रेन को उकसा कर उसको विनाश तक पहुँचाया है। धमकियों और प्रतिबंधों से युद्ध नहीं रुकते हैं बल्कि कडुवाहट और बढ़ जाती है। धमकी देने का कार्य अमेरिका, ब्रिटेन और नाटो ने किया वही रूस अपनी सेना यूक्रेन की राजधानी कीव पहुँचा रहा है।
गौरतलब है कि 1991 में सोवियत यूनियन 15 देश में बँट गया था जिसमें सबसे बड़ा देश रूस है अन्य 14 देशों में लातविया, लिथुआनिया, यूक्रेन, बेलारूस, कजाकिस्तान आदि हैं।
युद्ध के चौथे दिन रूस की तरफ से दावा किया जा रहा है कि वह बेलारूस की राजधानी ‘मिंस्क’ में यूक्रेन से शांति वार्ता के लिए तैयार है, बशर्ते कीव पहले सरेंडर करे। यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेन्स्की ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है।
यूक्रेन अभी मात्रभूमि की रक्षा के लिए डटा हुआ है। जर्मनी द्वारा यूक्रेन को सैनिक साजोसामान दिया जा रहा है जिससे लगता नहीं है कि अभी शांति की स्थापना हो सकेगी।
यूरोपीय संगठन और UNO द्वारा स्विफ्ट जैसे आर्थिक संगठनों से रूस को बाहर निकाल कर उसपर आर्थिक बम गिरा तो जरूर रहे हैं किन्तु इससे रूस रुकने और झुकने वाला नहीं है।
पुतिन की मंशा सोवियत यूनियन से अलग हुए 14 देश को पुनः शामिल करने की है। अमेरिका की स्थिति बिल्कुल अफ़ग़ानिस्तान वाली है उकसाने के बाद मदद की जगह सिर्फ मीटिंग और धमकी। अमेरिका की विदेश नीति में पिछले दशक से काफी परिवर्तन देखने को मिला है। बड़े देशों के मामले संयुक्त राष्ट्र संघ निष्प्रभावी रहा है।
यदि जल्द ही युद्ध खत्म नहीं हुआ तो यूरोप युद्ध की भट्टी में जलने लगेगा। ‘क्रीमिया’ विवाद ने जिस तरह से प्रथम विश्व युद्ध को जन्म दिया था उसी प्रकार ‘यूक्रेन संकट’ से तृतीय विश्व युद्ध की शुरुआत हो सकती है।
भारत की भूमिका यूक्रेन-रूस के मामले में क्या हो सकती है? भारत रूस का स्वाभाविक मित्र देश है, समय-समय पर रूस सैन्य तकनीकि भारत को मुहैया कराता है जबकि यूक्रेन 1991 से ही भारत के शत्रु देश पाकिस्तान और चीन की मदद करता है और इस गहरे संकट में उसे भारत के सहयोग की आशा है।
यूक्रेनी संकट से पेट्रोलियम और खाद्य पदार्थो, खासकर रिफाइंड ऑयल की कीमत दुनियाभर में बढ़ रही है जो चिंता का सबब है। भारत अपने लोगों को यूक्रेन से सुरक्षित निकाल रहा है, उसमें रूस की मदद भी मिल रही है। वैसे भी भारत अपने मित्र राष्ट्र रूस के साथ जायेगा।
यूक्रेन की स्थिति में परिवर्तन तभी आ सकता है जब नाटों के देश मदद करने का नाटक बंद करें और वास्तव में कीव को बचाने के लिए कुछ कड़े कदम उठाएं, फिलहाल इसके आसार कम ही दीखते हैं।
भारत को भी रूस से कुछ व्यवहारिकता सीखनी होगी। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, अक्साई चीन, नेपाल, भूटान भी इंतजार कर रहे हैं वृहद भारत बनने के लिए।