लोकतंत्र की जो सबसे बड़ी परिभाषा है लोगों का शासन लोगों के द्वारा और लोगों के लिये। विश्व के लोकतांत्रिक देशों पर नजर डालें बमुश्किलन एक या दो देश इस खांचे में फिट बैठते है जिसमें स्विट्जरलैंड एक है।
लोकतंत्र में लोगों की आदर्श स्थिति अरस्तू ने 2040 लोगों को बताया। लोकतंत्र वह विचारधारा है जो पूंजीवाद और उदारवाद को प्राश्रय देती है। जिससे व्यापार तंत्र को व्यापक बढ़ावा मिलता है।
भारत के संदर्भ देखे तो यहाँ लोकतंत्र का मतलब सत्ता के शांतिपूर्ण परिवर्तन और वोट देने तक ही सीमित रहा। यहाँ लोकतंत्र का आधार लोक या जन कभी बन नहीं पाये। कारण जिन बुनियादी चीजों की आवश्यकता थी उसे दर किनार कर दिया गया, जन भावनाओं को कुचला गया या परहेज किया।
राजनेताओं ने लोकतंत्र का आलम्बन लेकर जातिवाद, वंशवाद, भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया। यहाँ तक कि चुनाव लड़ने के जिस धनराशि को निश्चित किया गया उससे कई गुना अधिक खर्च करके नेता जनता के सर्वांगीण उत्थान की शपथ लेता है जब सुचिता नहीं है तो काहे का लोकतंत्र।
जमी जमाई विचारधारा जिसका आधार ब्रिटिश था जिसके माध्यम से लाभप्राप्त वर्ग ने शोर मचाना शुरू किया कि लोकतंत्र खतरे में, लोक से कही ज्यादा नेताओ को अपनी सेहत पर पड़ता दिखा।
किसी भी राजनीतिक विचारधारा में सत्ता प्रमुख जनता गौण होती है शोर अधिक किया जाता है।लोकतंत्र का औजार है मीडिया, जो लोगों का माइण्ड सेटअप सुबह की पहली चाय के साथ निर्मित कर देती है।
इस राजनीति की रस्साकशी में जन पीछे छूट जाता है। ब्रिटेन में टोनी ब्लेयर चुनाव इस लिए हार गये क्योंकि उन्होंने लेबर कालोनी में लोगों से हाथ मिलाने के बाद बोल दिया जिसके मुख न देखो उससे हाथ मिलाना पड़ता है वो यह भूल गये की इसका लाइव प्रसारण चल रहा माइक्रोफोन उनके कॉलर में ही लगा है।
भारतीय लोकतंत्र छुपा राजतंत्र है जो सत्ता को पुत्र में तिरोहित करता है नहीं तो तीन-चार पीढ़ियों से राजनीति न फलती। लोकतंत्र समस्या सुलझा नहीं पाता उसे उलझा जरूर देता है क्योंकि यहाँ किसी भी वोटर को नेता नाराज नहीं करना चाहता है।
नेता से लेकर जनता को खूब बोलने का लोकतंत्र कहे तो इस मामले में यह सफल भी है।देशहित के फैसले पर वोटप्रियता हावी हो जाती है। संवेदना उभार के सत्ता प्राप्त किया जाता है।
चुनाव के पश्चात नई सरकार को एक साल समझने में आखिर का एक साल चुनाव की तैयारी की भेंट चढ़ जाता है। चुनाव का भारी भरकम बजट लोगो की जेब पर ही अंततः प्रभाव डालता है।
लोकतंत्र वह विचार है न छोड़ते बनता है न पकड़ते। किसी विचार को तब बदला जा सकता है जब उसका विकल्प और परिस्थितिया हो। लोकतंत्र का विचार युद्ध से जन्मा था और युद्ध से ही खत्म होगा।
राजतंत्र के विरोध में लोकतंत्र विश्वभर में कमोवेश खूब फला फूला है अंततः इस विचार की लोप राजतंत्र में फिर से हो जायेगा क्योंकि जिस वादे और जिसका केंद्र लोग थे वह संतुष्ट नहीं हुये है। विकल्प परिवर्तन की ओर ले कर चला ही जाता है।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आईएएस अधिकारी, व्यापारी, फ़िल्म अभिनेता राजनीति में क्यों आना चाहता है कारण कम समय मे पैसा और रुतबा मिल जाता है।