शाहीनबाग और जनता कर्फ्यू

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
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धीरे ही सही लेकिन चीजे स्पष्ट होती जा रही हैं। शाहीन बाग जैसे चौराहों पर बैठी खातूने मूलतः दिहाड़ी मजदूर हैं जो बीड़ी, सिलाई – कढ़ाई आदि गृह उधोगों से परिवार का गुजारा चलाती हैं।

ऐसे ही फ्री बिरयानी और धरना करने के लिए रोज पैसा मिले तो क्या दिक्कत है? धरना साल भर चले। दिल्ली में वैसे भी अवैध बांग्लादेशी मुस्लिम मजदूर के रूप में बड़ी संख्या में हैं, जो CAA, NPR का विरोध हो या मार्ग रोक कर धरना करना हो, दिहाड़ी मजदूरी के दम पर बढ़ – चढ़ के हिस्सा लेते हैं।

देश जब करोना जैसी वैश्विक महामारी से जूझ रहा है, सरकार बार – बार कह रही है कि भीड़ से बचे, एक जगह लोग एकत्रित न हो। फिर भी धरना करने वाले इसे संवैधानिक अधिकार बता रहे हैं।

वास्तव में यह धरने बाज मुसीबत के समय में देश को चिढा रहे हैं। अब इसपर तो यह देश इन्हें कैसे अपना नागरिक मान सकता है। वैसे भी भारत मुस्लिमों का कितना देश है, इसकी व्याख्या कुरान भी नहीं करती है।

संक्रामक बीमारी में लगे स्वास्थ्यकर्मियों के उत्साहवर्धन में जो साथ हैं उन्हें ही भारतीय मानिये बाकी वही लोग हैं जो देश की एकता तोड़ना चाहते हैं, जो बिरयानी पर पत्थरबाजी और आगजनी करते हैं। देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के कहने के बाबजूद CAA इनकी नागरिकता ले लेगा? जबकि कानून नागरिकता देने का है न कि नागरिकता छीनने का।

धरना, प्रदर्शन, पथराव, आगजनी और दिल्ली दंगा सब कुछ प्रायोजित है। PFI जैसे जिहादी संगठन फंडिंग कर रहे हैं, जिसमें वोट बैंक के लिए पुरानी पार्टी, वंशवादी नेता, देश तोड़ने वाले गिरोह भी फंडिंग के साथ सभी तरह का समर्थन भी दे रहे हैं।

यहूदी, ईसाई और मुस्लिम एक ही परिवार से निकला किताबी धर्म है जिसमें इस्लाम अपने को कट्टर किताबी मानता है। मानवता की अस्मत लूट कर धर्म की मीनारें नहीं खड़ी हो सकती, वह तो आपने को ही काट खायेगी। न ही मध्यकाल का बर्बर युग ही आने वाला है।

1% मुल्ला – मौलवी जिनका मुसलमानो पर कब्जा है, ठेका लिये हुए हैं कि इस्लाम में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है, ये वही है जो “मुस्लिम को जन्नत पहुँचायेंगे”, धरती को मुसलमानों से भर दो। आधुनिक, विकासशील देश और लोगों की इस्लाम में जगह नहीं है। वह नये रहनुमा बनाता है सऊदी अरब, ईरान नहीं तो मलेशिया को नया रहबर बना दिया। नया कट्टरपंथी देश।

समस्या इस्लाम और कुरान की है। आतंकवाद, कट्टरपंथ, हलाला, जलाला, बहुविवाह और बहुत बच्चे का कॉन्सेप्ट इसी से लिया गया है। दाऊद और कसाब आतंकवादी इस लिए बने क्योंकि उनके बाप के कई बच्चे थे जिससे उनकी जरूरतें पूरी न हो पायी, इसलिए बंदूक और बम का सहारा ले लिया।


नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।

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