यूँ तो मंदिर के लिए सभी सोच के विचारक तरह – तरह के विचार दे रहे हैं। फलां को पूजन शामिल करिये, फलां ने ताला खुलवाया था, फलां ने बाबरी ढांचे को नष्ट होने दिया आदि – आदि। इनको मंचासीन करिये, इन्हें दर्शक दीर्घा में स्थापित करिये। तिथि – मुहूर्त का विवाद। चहुँ ओर श्रेय लेने की होड़ मची है।
मंदिर का इतिहास कहता है कि द्वापर में भगवान कृष्ण ने मंदिर की पुनर्स्थापना की थी। कलयुग में महाराज विक्रमादित्य ने भव्य श्रीराम मंदिर बनवाया था। आगे भी समय – समय पर मंदिर बनता रहा है। एक प्रकार से 1526 में बर्बर बाबर के भारत के आगमन के पूर्व मंदिर त्रेता से कलयुग तक शाश्वत तरीके स्थापित और खड़ा रहा है।
आक्रमणकारी मुस्लिमों के भारत आगमन से मंदिर जो सिर्फ अर्चना के केंद्र न होकर समाज की गतिविधियों को संचालित करने के भी केंद्र थे, नष्ट किये गये। जिसमें लगभग 3000 मंदिर शामिल हैं।
राम मंदिर के संघर्ष का अंत विजय श्री के साथ पूर्ण हुआ है। जिसके क्रम को कोठरी बंधु सहित कितने वीर आहूत हो गये। वह काला बंदर भी याद आता है जब अयोध्या में मुलायम सिंह यादव द्वारा गोली चलवाए जाने पर गोली लगी तो श्रीराम पताका काला बंदर ले कर चला गया। लोगों ने काले बंदर को हनुमानजी से जोड़ कर देखा।
इतने लंबे 500 वर्षों के संघर्ष पर यदि कोई राजनीति करता है तो करे, हमें मंदिर से मतलब है, रामलला विराजित हो रहे हैं। विश्व की सबसे प्राचीन राजधानी आयोध्या एकबार पुनः राम के आधीन होगी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने संसद में कहा था कि जिस दिन पूर्ण बहुमत हमारा होगा हम मंदिर बनवा देगें। मोदी जी के 6 वर्ष के कार्यकाल में मंदिर का कार्य पूर्ण हो रहा है।
आप यदि अयोध्या गये हों तो मुस्लिमों के कुकर्म दिख जायेगे। हनुमान गढ़ी, सीता रसोई, दशरथ दरबार, भरत स्थल आदि के इर्दगिर्द कब्रें बना रखी हैं। मुस्लिम का अरमान श्रीराम के जन्मस्थल को मक्का के तरीके का कब्रिस्तान बनाने का रहा है, जो कभी पूर्ण नहीं हुआ। धर्म श्रेष्ठ आचरण से बनता है मंदिर को मस्जिद बनाने से नहीं।
हिन्दु समय – समय पर अयोध्या को रक्त अर्पण करता रहा है जिसका प्रतिफल है भव्य राममंदिर। यह विश्व के सबसे पुराने विवादों में से एक था। जिसे भारत की न्यायपालिका ने बहुत शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाया। इसके लिए पूर्व न्यायाधीश और वर्तमान राज्यसभा सांसद गगोई जी कोटि – कोटि धन्यवाद के पात्र हैं।
राम मंदिर राजनीतिक इच्छाशक्ति की बात रही है। कांग्रेस को बहुत अवसर मिले किंतु वह स्वयं ही अड़ंगा डाल रही थी क्योंकि उसकी सेकुलर राजनीति में मुस्लिम बहुत बड़ा फैक्टर है, जिसे वह मंदिर निर्माण से नाराज नहीं करना चाहती। नेहरू, इंदिरा, राजीव, और सोनिया के पास अवसर बहुत थे लेकिन मामले को इन्होंने बहुत लंबा खींचा। इन्होंने सरकारी वामपंथी इतिहासकारों का प्रयोग कर राम के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने का काम किया। वह राममंदिर बनाने जायेगें?
इंदिरा गांधी पर गौर करिये जिन्होंने स्वर्ण मंदिर पर टैंक चढ़ा दिया था। राज्य की सरकारें उन्ही की मर्जी पर चलती थीं। उनके लिए राममंदिर का निपटारा कराना बड़ी बात नहीं थी। किन्तु वह उस मार्ग से होकर आती हैं जहाँ बातें तो अहिंसा की होती है लेकिन बकरीद पर हलाल होते निरीह बकरे हिंसा की दृष्टि में नहीं आते।
कुछ कांग्रेसी कहते हैं राममंदिर में कांग्रेस की महती भूमिका रही है। तो प्रश्न खड़ा होता है कि काशी, मथुरा के मंदिरों पर इन्होंने कितना काम किया है? श्रीराम मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद की भूमिका सराहनीय रही है। 1983 से जिस तरह शिलान्यास से लेकर बाबरी ढांचे के ढहने तक बढ़ – चढ़ कर अशोक सिंहल जी ने कार्य किया वह कबीले तारीफ रहा है।
रामलला का मंदिर सिर्फ एक मंदिर ही नहीं है वरन यह हिन्दु स्वाभिमान, भारत के पहचान, भारत के आदर्शों का स्थान है। हिन्दू 5 अगस्त 2020 के बाद एक दूसरे तरह के विश्व में नजर आयेगा। वामपंथी मंदिर पर अर्थव्यवस्था और लाभ हानि समझा रहे हैं। ये मूर्ख देश और संस्कृति के हित से ज्यादा स्वहित पर कपड़े फाड़ रहे हैं, हो भी क्यों न वर्षों की दुकान अब टूटती जो नजर आ रही है।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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