इस समय भारत भर में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण हेतु समर्पण निधि संचित करने का कार्यक्रम चल रहा है। मन्दिर को पुनः बनाने का कार्यक्रम जो निकट आया है, पूर्व में इसीके लिए ३.५ लाख हिन्दू वीर ३६ युद्धों में स्वयं यज्ञ की समिधा बन गये।
श्री राम मंदिर सिर्फ एक मंदिर ही नहीं है बल्कि यह भारतीय संस्कृति का वह बिंदु है जहाँ भारत स्वयं को तलाश रहा है। मन्दिर नहीं होना यह कहता रहा है कि जो देश ने अपने सूर्य के कांति मंडल से दूर है उसका उत्थान कैसे होगा?
भारत को विदेशी ताने – बाने के तिमिर में लपेट कर कहा गया कि धर्म से इसका कुछ नहीं हो सकता, तब पुनः प्रश्न यह है कि जब धर्म महत्वपूर्ण नहीं है तो वैटिकन और काबा की क्या जरूरत है?
आतंकवाद जो कौम की इजाज़त लेकर विश्व को लहूलुहान करता है, यह रुकता क्यों नहीं है? विश्व के गरीब और पिछड़े देशों में अमेरिका आदि देशों की ईसाई मिशनरियां क्या कर रही है? धर्म से हीन किसी मनुष्य की कल्पना उस आकाश कुसुम और बध्यापुत्र की तरह होगी।
भारत में मन्दिर समर्पण निधि को जो चन्दा कह रहे हैं, वह गर्त में जायेंगे। राजनीति में तुष्टिकरण अब सत्ताजीविता नहीं हो सकती है। सोई हुई कौम में श्रीराम मंदिर जागृति लेकर आयेगा। विकास के नये पैमाने भारत ने गढ़ना शुरू कर दिया है, मन्दिर के आरम्भ में प्रारम्भ है। इसके आयोजन में राम का कुछ न कुछ प्रयोजन तो अवश्य ही निहित है।
राम की मर्यादा क्या है, उन्हें किस सीमा तक सीमित करें, यह समस्या एक नास्तिक सेकुलर के साथ हो सकती है। यदि आप आस्तिक हैं तब राम पर कोई प्रश्न नहीं है। जनमानस निधि के लिए समर्पण करते समय उसके मन में अपने प्रभु राम के प्रति समर्पण रहता है। कई माता – बहने तो निधि संचित करने वाले को ही प्रणाम करती हैं तो उनका मन प्रफुल्लित हो उठता है कि चलिये इस जीवन में मेरा कुछ तो श्रीराम के काम आया। उस समय उनके चेहरे की प्रसन्नता देखते बनती है।
यदि आपको श्रीराम में राजनीति दिख रही है तो श्रीमान, आप भी राजनीति में जुट गए हैं। किसी राजनीतिक पार्टी का विचार देह से निकाल दें। इस शरीर को श्रीराम के कार्य से धन्य बनाएं। देश के मूड को समझें, वह अपनी संस्कृति के साथ खड़ा है अब आपकी ओछी हरकत को वह बर्दास्त नहीं करेगा।
विदेशियों की संस्कृति भारत भूमि पर अब नहीं रह सकती। यह सच है आप ने जिस शिक्षा व्यवस्था में हमारे नौनिहालों को डाल दिया है वह भ्रमित करता है किंतु सत्य अंततः उभर कर आता है। उसके साथ विदेशी मानसिक बेड़िया स्वतः टूटती जाएँगी।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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