खजुराहो के मंदिर का निर्माण 950 से 1050 ई0 के बीच धंगदेव, गंडदेव, विद्याधर के समय में हुआ था। प्रसिद्ध कंदरिया महादेव के मंदिर को चंदेल नरेश विद्याधर ने महमूद गजनवी को पराजित करने के उपलक्ष्य में बनाया था। जबकि लिखित इतिहास इस युद्ध को विवादित बताता है। खजुराहो के मंदिर को मंदिरों का नगर कहते हैं। यहां कुल 85 मंदिरों की शृंखला है, जिसमें विष्णु, शिव, लक्ष्मी, सूर्य, लक्ष्मण के साथ ही पार्श्वनाथ और चौसठ योगिनी के मंदिर बनाए गये हैं।
चंदेल वंश की शुरुआत भगवान चंद्रदेव से मानी जाती है। कहा जाता प्राचीन समय में उनकी प्रेरणा से उनके पुत्र ने जेजाक भुक्ति या बुंदेलखंड की स्थापना की थी।
खजुराहो के मंदिर पर काम कला का प्रदर्शन विश्व प्रसिद्ध है। काम चार पुरुषार्थों, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से एक है। मंदिरों में काम का चित्रांकन पहली बार एलोरा के मंदिर पर हुआ था जिसका विस्तार बाद में खजुराहो के मंदिर पर किया गया। काम, मैथुनी सृष्टि का आधार है। यह सिर्फ मनोरंजन के लिए न होकर सृष्टि सृजन प्रस्थान है। काम के साथ जैसी भावना होगी, संतान उसी तरह की उत्पन्न होगी।
खजुराहो का मंदिर जब बनाया गया था उस समय राजा धंगदेव के राज में अन्न – धन का भरपूर उत्पादन हुआ, उन्होंने अपने प्रधान शिल्पी से कहा कि विश्व की अद्भुत और अद्वितीय रचना करो। शिल्पी ने मंदिर तैयार किया लेकिन जब चंदेल नरेश धंगदेव ने मंदिर पर काम कला चित्रांकन देखा तब उन्होंने प्रधान शिल्पी को गिरफ्तार करके मृत्युदंड का आदेश दिया।
भारत की प्राचीन परंपरा रही है कि अपराधी को पश्चाताप करने के लिए कुछ दिन दिए जाते हैं, उसके बाद आखिरी इच्छा भी पूछी जाती है। यदि संभव होता है तो उसे पूर्ण किया जाता है। जब शिल्पी से पूछा गया कोई आखिरी इच्छा? तब उन्होंने कहा कि मुझे चंदेल महाराज से मिलना है, क्या पूरा कर सकोगे? यह सन्देश चंदेल महाराज तक पहुँचया गया। मिलने की आज्ञा उन्होंने दी।
शिल्पीकार ने कहा राजन आपने मंदिर सिर्फ बाहर से देखा है, एक बार अंदर से देख लीजिए फिर मुझे फांसी पर चढ़ा दीजियेगा। चंदेल नरेश इस बार मंदिर के गर्भगृह होकर आये। उन्होंने शिल्पी से कहा कि बहुत अच्छा लगा और बहुत शांति भी मिली, यह क्या रहस्य है?
शिल्पी ने कहा : राजन मंदिर की बाह्य दीवार पर काम का ही प्रदर्शन नहीं है बल्कि मनुष्य की पूरी वासना को प्रदर्शित किया गया है, घोड़े, हाथी, स्त्री, पुरुष, वराह, देव आदि का। लेकिन आपने सिर्फ काम देखा।
राजन, जो वासनाओं या कामनाओं की नदी पार करेगा जो वाह्य स्तर को प्रदर्शित करती है वही ईश्वर का एकाकार करेगा। जैसे ही आप गर्भगृह में प्रवेश किया वैसे भगवान का शिवलिंग दिखा। किन्तु राजन आने वाले समय में मनुष्य आप की तरह ही मंदिर के वाह्य दृश्य में अर्थात वासना में फस कर रह जायेगा, गर्भ गृह में बैठे भगवान से नहीं मिल पाएगा। चंदेल नरेश को प्राधन शिल्पी की दार्शनिकता समझ आ गयी, उन्होंने उसे तत्काल अपना महामंत्री नियुक्त कर लिया।
किन्तु आज भी खजुराहो मंदिर से विश्व के मूर्ख काम की खोज कर रहे हैं। वासना के दृश्य में लिपटे हैं। मूल से बहुत दूर मनोरंजन तलाश कर रहे हैं।
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