कांग्रेस पार्टी का एक समृद्धशाली इतिहास रहा है किन्तु आज की परिस्थितियों में उसके वयोवृद्ध नेताओं की कसरत ने उसे नेतृत्व विहीन बना दिया है। कांग्रेस के लिए “अंधा बाटे रेवड़ी फिर – फिर अपने देय” कहावत विल्कुल चरितार्थ है।
वही पुराने जमे जमाये वृद्ध नेताओं का वर्चस्व बना हुआ है। अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह, पी० चिदंबरम, मोतीलाल बोरा, रोसैया, कपिल सिब्बल, अशोक गहलोत, गुरुदास कामत, कमलनाथ आदि – आदि। राहुल गांधी जब अध्यक्ष बने तब उन्होंने नई टीम गठित की जिसमें जयराम रमेश, शशि थरूर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, डीके शिवकुमार, मुरली देवड़ा, संजय निरुपम जैसे नेता थे जिन्होंने जोश के साथ, जमीन से जुड़कर काम किया। 2009 में UPA की सरकार बनाने में इनका बड़ा योगदान रहा था।
अब की कांग्रेस में जमीन से जुड़े नेताओं की जगह वर्चुअल और एयर कंडीशनर वाले नेताओं ने ले रखी है। पुराने कॉंग्रेसियों को 70 साल के अनुभव का गुमान है, ज्यादातर जुगाड़ लगाकर सत्ता न रहने पर भी पार्टी में अहम भूमिका रखना चाहते हैं। हार के विश्लेषण और उसकी नैतिक जिम्मेदारी की किसी को परवाह नहीं है।
इन सबसे बढ़ कर शैडो राजनीति बार – बार करने का प्रयास। वृद्ध नेताओं को लगता है कि गांधी नाम के सहारे नैया पार लगती रहेगी। कांग्रेस में युवाओं को आगे बढ़ाने को कोई तैयार नहीं है। ध्यान रहे, जो आगे बढ़ कर नई पीढ़ी का स्वागत नहीं करता वह अपने साथ नई पीढ़ी की ऊर्जा को बेकार कर देता है। वृद्ध नेताओं को जब लगा कि राहुल गांधी उन्हें BJP की तरह मार्गदर्शक मंडल में डालने वाले हैं तो झट राहुल गांधी की भूमिका को ही पार्टी में घुन की तरह खा गये।
सोनिया गांधी को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया जो कि काफी समय से बनी हैं। सोचने वाली बात यह है कि जो पार्टी अपने लिए अध्यक्ष नहीं चुन पा रही हो उसे जनता कैसे नेतृत्व सौंप दे? स्पष्ट है, मार्गदर्शक मंडल में जाने से अच्छा था कांग्रेस में राहुल गांधी को ‘नाचीज़’ बना कर प्रियंका की ताजपोशी का माहौल तैयार किया जाय।
कांग्रेस पार्टी में शैडो राजनीति का इतिहास भी रहा है शास्त्री जी मृत्यु के बाद कांग्रेस सिंडीकेट “गूंगी गुड़िया” इंदिरा गांधी की ताजपोशी की जबकि नेहरू जी ने परिवार की राजनीति को दरकिनार करके शास्त्री जी को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। यह अलग बात है कि गूंगी गुड़िया ने सिंडीकेट राजनीति को ही खत्म करके कांग्रेस को ही ‘इंदिरा कांग्रेस’ कर दिया।
संजय गांधी के रहते राजीव गांधी की इंट्री नहीं हो पायी किन्तु इंदिरा की मृत्यु ने सिंडीकेट को मौका दिया, राजीव गांधी को केंद्र बना दिया। जल्द ही पार्टी के कुछ लोगों की महत्वाकांक्षा ने राजीव गांधी को राजनीति का शिकार कर दिया। राजीव के बाद कांग्रेस को मजबूत करने के लिए सिंडीकेट जिसमें अहमद पटेल की भूमिका मुख्य थी, सोनिया गांधी को राजनीति की सीढ़ी चढ़ाना शुरू कर दिया।
राजनीति कीमत वसूल करती है “आप क्या दे सकते हो और कितना दे सकते हो”। कांग्रेस में सिंडीकेट सदा ही वृद्धो का बना रहा है जिसे सत्ता और सौंदर्य दोनों चाहिए। आप बनो इंदिरा, सोनिया और प्रियंका, राजीव और राहुल की बलि दी जाती रहेगी। कपिल सिब्बल सही कह रहे हैं कि जब “अस्तबल से घोड़े चले जायेंगे तब हमारे जगने का भी फायदा नहीं है”।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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