सच कहना गुनाह तो नहीं?

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Satyendra Tiwari
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न कविवर हूँ न शायर हूँ। बस थोड़ा-बहुत लिखा करता हूँ। मन में आए भावों को, कभी गद्य तो कभी पद्य में व्यक्त किया करता हूँ।

सच मैं कहता हूँ

तुम बगावती कह दो मुझे चाहे

मैं होश में रहता हूँ

मदहोश कह दो मुझे चाहे

***

जब किसी तिरछी निगाहों से

जमाना ठहर जाए उसी के आगे

और आगोशित कर ले जमाने को

वो तुफान के बाद आलम हो

जिधर भी तुम देख लो चाहे

***

जिसे परवाह न हो दुनिया की

वो बिजलियाँ बेखौफ ही गिरा दे

किसी के जान पे बन आए

या किसी की मौत हो चाहे

***

एक तो जिनकी शर्बती आंखों से

बिजलियाँ कौध सी जाए

उन्हें तो चिलमन भी झुकाना है

जमाना बेहोश होता हो, तो हो चाहे

***

जो झटक दे रेशमी जुल्फे

घटा आंखों पे छा जाए

ऐसी नाजनीन को क्या कहूँ

कातिल जमाने का

या खुदा कह दूँ उन्हें चाहे

***

सच मै कहता हूँ

तुम बगावती कह दो मुझे चाहे

मैं होश में रहता हूँ

मदहोश कह दो मुझे चाहे

***

Written by – सत्येन्द्र तिवारी

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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