यूक्रेन

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Dhananjay Gangey
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यूक्रेन यूरोप का दूसरा क्रीमिया न बन जाय।

यूक्रेन 1991 के पूर्व रूस का हिस्सा था, शब्द व्युत्पत्ति की एक मान्यता के अनुसार यूक्रेन का एक अर्थ ही “Borderland” है। जिसे अमेरिका और ब्रिटेन के षड़यंत्र से सोवियत संघ से विभाजित किया गया था।

आज के यूक्रेन में दो विचार धारा के लोग हैं, एक यूरोप समर्थक और दूसरे रूस समर्थक। सोवियत संघ के विघटित होने से रूस बहुत कमजोर पड़ गया था किंतु पुतिन के लगातार रूस के राजनैतिक प्रमुख होने से और नये गैस और तेल भंडार मिलने से रूस ने अब एक बार पुनः सोवियत संघ वाली शक्ति अर्जित कर लिया है।

रूस यूक्रेन के विवाद का कारण :

रूस और यूक्रेन के बीच विवाद का मुख्य कारण है यूक्रेन के अमेरिका के पक्ष में चले जाना जिसे रूस बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है। यूक्रेन को अपने पक्ष में बने रहने के लिए अमेरिका यूक्रेन को उकसाता भी रहा है। उसे नाटो का सदस्य बनाया जा रहा है जिसका एक समय गठन ही सोवियत रूस के खात्मे के लिए हुआ था।

युद्ध की स्थिति में यूक्रेन को विश्वास दिलाया गया था कि उसे अमेरिका सहित यूरोप की मदद मिलेगी। लेकिन अब जबकि युद्ध चल रहा है, यूक्रेन नितांत अकेला संघर्ष कर रहा है। युद्ध के सातवें दिन रूस ने ख़ारसन शहर पर कब्जा कर लिया है। अभी तक ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका और नाटो सिर्फ तमाशगीन ही बने हुए हैं। इसी तमाशा को देखने में जर्मनी की पोलैंड महत्वाकांक्षा ने 1939 द्वितीय विश्वयुद्ध का जन्म दिया। क्रीमिया के कीचड़ से 1913 में प्रथम विश्व युद्ध हुआ था।

ब्रिटेन एक व्यापारी देश है जिसके नक्शे कदम अमेरिका भी व्यापारी देश बन गया, जब तक उनके व्यापार में लाभ है, वह वही कार्य जारी रखेगें।

2014 में रूस ने यूक्रेन पर एकतरफा कार्यवाही करके क्रीमिया क्षेत्र पर अधिकार कर लिया जहाँ असीमित गैस भंडार है। भारत की प्रतिक्रिया उस समय भी आज की तरह ही निष्पक्ष थी।

आज युद्ध के पीछे का मुख्य कारण यह भी है कि रूस से जर्मनी को सस्ती गैस पाइप लाइन जिसे अमेरिका नहीं चाहता है, क्योंकि उसे अपनी गैस यूरोप में बेचनी है। जबकि रूस स्थानीय होने के कारण उसकी गैस अमेरिका से कहीं सस्ती कीमत पर है।

रूस से जर्मनी गैस पाइप लाइन यूक्रेन से होकर जानी है जिसे अमेरिकी दबाव में यूक्रेन ने मना कर दिया है।

भारत की स्थिति :

भारत विश्व का एक मजबूत देश है जिसकी आवश्यकता दोनों पक्ष को है, एक तरफ पुराना आजमाया हुआ साथी रूस है तो वहीं दूसरी ओर नया मित्र अमेरिका है।

भारत की विदेश नीति का रुख 1999 में अटल जी समय में नारायण, दीक्षित और जोशी के त्रिगुट ने अमेरिका की ओर कर दिया। जिसकी वजह से रूस गाहे-बगाहे पाकिस्तान के पाले में दिख जाता है।

भारत का अमेरिका की ओर झुकाव से रूस असंतुष्ट है। भारत अभी तक निष्पक्ष है, वह यूक्रेन को मानवीय सहायता करने का हरसंभव प्रयास जारी रखेगा। भारत दोनों पक्षों के बीच शांति चाहता है। यूक्रेन के राष्ट्पति को भारत के प्रधानमंत्री से सहायता की अपेक्षा है। वहीं भारत में रूस के राजदूत भारत की भूमिका की बहुत प्रसंशा कर रहे हैं।

यूरोपीय देश और अमेरिका भारत पर दबाव बना रहे हैं कि वह पुतिन को चाहे तो रोक सकते हैं।

भारत को अपने हितों को ही सबसे ऊपर रखना होगा, आज भारत को रूस और अमेरिका – दोनों की आवश्यकता है। यही कारण है कि भारत निष्पक्ष रहते हुए नजर बनाए हुए है।

तृतीय विश्वयुद्ध का संभावित समय 2030 से 2040 का दशक है। लेकिन यूक्रेन संकट को देखते हुए कहा जा सकता है कि यदि युद्ध लम्बा चलता है तो इसमें ब्रिटेन, नीदरलैंड, जर्मनी और अमेरिका जो अभी तक बाहर – बाहर हैं, वह भी खुलकर हिस्सा ले सकते हैं। ऐसी स्थिति में तृतीय विश्व युद्ध के बादल जल्द ही विश्व पर छाने लगेंगे।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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