भारत को स्वतंत्र कराने के लिए वीर सावरकर ने सशस्त्र विद्रोह की वकालत की और साथ देने के जुर्म में जेल गये। काला पानी से जब लौटे तो भारतीय राजनीति में गांधी जी का समय और तुष्टिकरण की राजनीति शुरू हो चुकी थी। सावरकर जी ने देखा कि हिन्दू हितों को दबा कर गंगा जमुनी और ईश्वर अल्लाह के गान के द्वारा हिन्दुओं में विखराव किया जा रहा है। जाति पाती को प्रोत्साहित भी अंग्रेज और कांग्रेस दोनों कर रही हैं।
इसी बीच 1930 में कांग्रेस का अधिवेशन तत्कालीन इलाहाबाद में नेहरू जी के आनंद भवन में हुआ, जिसमें लीग के इकबाल ने पाकिस्तान का दर्शन दिया। तब सावरकर जी बोलने के लिए खड़े हुए वह बोले ‘एक इंच टुकड़ा भारत से अलग होने का ख्वाब न पाले। भारत में मुसलमानों को हिन्दू तौर तरीकों से रहना होगा मन माना खेल नहीं चल सकता है।’
अगर सावरकर जी, हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन नहीं होते तो अब तक मुस्लिम और ईसाई सभ्यता को हिन्दू संस्कृति पर कांग्रेस द्वारा तरहीज दे दी जाती। जब पाकिस्तान से सिक्खों ने कुछ मुसलमानों को भगाना चाहा तो वहाँ पुलिस खड़ी थी और नेहरू लाठी लेकर अपने लोगों को मारने लगे, बाद में पिस्तौल भी निकाल ली। इसी से पता चलता है कि इनका प्रेम सत्ता का था।
सावरकर जी इसीलिए और अनिवार्य हो जाते हैं कि हिन्दू धर्म और संस्कृति की रक्षा हो सके। अहिंसक, नपुंसक बन आप बर्बर लोगों से अपनों की रक्षा नहीं कर पायेगे।
एक कल्पना कीजिए, तीस वर्ष का पति जेल की सलाखों के भीतर खड़ा है और बाहर उसकी वह युवा पत्नी खड़ी है, जिसका बच्चा हाल ही में मृत पैदा हुआ है। इस बात की भी पूरी संभावना है कि अब शायद इस जन्म में इन पति-पत्नी की भेंट न हो। ऐसे कठिन समय पर इन दोनों ने क्या बातचीत की होगी? कल्पना मात्र से आप सिहर उठे ना? जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे चमकते सितारे विनायक दामोदर सावरकर की। यह परिस्थिति उनके जीवन में आई थी, जब अंग्रेजों ने उन्हें कालापानी (Andaman Cellular Jail) की कठोरतम सजा के लिए अंडमान भेजने का निर्णय लिया और उनकी पत्नी उनसे मिलने जेल में आयी।
मजबूत ह्रदय वाले वीर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) ने अपनी पत्नी से एक ही बात कही – “तिनके – तीलियाँ बीनना और बटोरना तथा उससे एक घर बनाकर उसमें बाल-बच्चों का पालन-पोषण करना। यदि इसी को परिवार और कर्तव्य कहते हैं तो ऐसा संसार तो कौए और चिड़िया भी बसाते हैं। अपने घर – परिवार तथा बच्चों के लिए तो सभी काम करते हैं।
मैंने अपने देश को अपना परिवार माना है, इस दुनिया में कुछ भी बोए बिना कुछ उगता नहीं है। धरती से ज्वार की फसल उगानी हो तो उसके कुछ दानों को जमीन में गाड़ना ही होता है। वह बीज जमीन में, खेत में जाकर मिलते हैं तभी अगली ज्वार की फसल आती है। यदि हिन्दुस्तान में अच्छे घर निर्माण करना है तो हमें अपना घर कुर्बान करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।
जब तक पुराना मकान ध्वस्त होकर मिट्टी में न मिलेगा, तब तक नए मकान का निर्माण कैसे होगा? कल्पना करिये कि हमने अपने ही हाथों अपने घर के चूल्हे फोड़ दिए हैं, अपने घर में आग लगा दी है। परन्तु आज का यही धुआँ कल भारत के प्रत्येक घर से स्वर्ण का धुआँ बनकर निकलेगा। यमुनाबाई बुरा न मानें, मैंने तुम्हें एक ही जन्म में इतना कष्ट दिया है कि “यही पति मुझे जन्म -जन्मांतर तक मिले” ऐसा कैसे कह सकती हो? यदि अगला जन्म मिला तो हमारी भेंट होगी। अन्यथा यहीं से विदा लेता हूँ” (उन दिनों यही माना जाता था, कि जिसे कालापानी की भयंकर सजा मिली वह वहाँ से जीवित वापस नहीं आएगा)।
अब सोचिये, इस भीषण परिस्थिति में मात्र 25 – 26 वर्ष की उस युवा स्त्री ने अपने पति यानी वीर सावरकर से क्या कहा होगा? यमुनाबाई (अर्थात भाऊराव चिपलूनकर की पुत्री) धीरे से नीचे बैठीं, और जाली में से अपने हाथ अंदर करके उन्होंने सावरकर के पैरों को स्पर्श किया। उन चरणों की धूल अपने मस्तक पर लगाई। सावरकर भी चौंक गए, अंदर से हिल गए। उन्होंने पूछा ये क्या करती हो? अमर क्रांतिकारी की पत्नी ने कहा कि “मैं यह चरण अपनी आँखों में बसा लेना चाहती हूँ, ताकि अगले जन्म में कहीं मुझसे चूक न हो जाए। अपने परिवार का पोषण और चिंता करने वाले मैंने बहुत देखे हैं, लेकिन समूचे भारतवर्ष को अपना परिवार मानने वाला व्यक्ति मेरा पति है, इसमें बुरा मानने वाली बात ही क्या है। यदि आप सत्यवान हैं, तो मैं सावित्री हूँ। मेरी तपस्या में इतना बल है कि मैं यमराज से आपको वापस छीन लाऊँगी आप चिंता न करें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें हम इसी स्थान पर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं”। धन्य है वह यमुना जिसने एक बार फिर माता सीता को जिंदा कर दिया।
क्या जबरदस्त ताकत है उस युवावस्था में पति को कालापानी की सजा पर ले जाते समय, कितना हिम्मत भरा वार्तालाप है, सचमुच। क्रान्ति की भावना स्वर्ग से तय होती है, केवल बातों से यह हर किसी को नहीं मिलती।
***
नमन है ऐसे महावीर को, और सादर धन्यवाद आपको जिन्होंने इतनी खूबसूरती से लिखा
मुझे आंसू आ गया है। इसे पढते हुए। इससे ज्यादा क्या कहूँ, शब्द नहीं मिल रहा है 🙏🙏🙏
बहुत धन्यवाद की आप ने उस वीर पुत्र के सच्चे हृदय से याद किया
जिनका जीवन ही भारत की कहानी थी🙏🙏🙏