मध्य पूर्व के फिजाओं में फिर से नई सुगबुगाहट है। तुर्की द्वारा सीरिया के कुर्दिश क्षेत्र में अमेरिकी सैनिकों के वापसी के समय किये गये हमलों से कई लोगों की जान चली गई। ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा तुर्की के हमले की निंदा की गई। सबसे अधिक आलोचना ट्रम्प प्रशासन की हो रही है जो अपने कुर्दी मित्रों का ISIS चरमपंथियों से लड़ने में सहयोग लिया था और अब उन्हें छोड़ कर चला गया।
कुर्दी, सीरिया की बशद सरकार की सहायता न करके अमेरिका की सहायता की थी। उसमें कुर्दों का स्वतंत्र कुर्दिस्तान का स्वप्न छिपा था। जिसकी मांग वह 1920 से ही जब ऑटोमन सम्राज्य खत्म हुआ था, तब से कर रहे हैं।
कुर्द, सुन्नी नस्ल के ही योद्धा, पशुपालक हैं जो सीरिया, तुर्की, ईरान और इराक की लगती सीमा पर रहते हैं। इनकी आबादी लगभग 3.2 करोड़ है। 1976 में अब्दुल्लाह द्वारा पी. के. के. का गठन स्वतंत्र कुर्द देश के लिए किया गया था, जिसके कारण तुर्की में 90 के दशक में 40 हजार से अधिक लोग मारे गये थे। तुर्की सरकार ने पीकेके को चरमपंथी संगठन घोषित कर उनकी गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी है।
अमेरिका द्वारा कुर्दों के साथ किये गये व्यवहार को धोखा माना जा रहा है। 2002 से सत्ता पर काबिज तुर्की राष्ट्रपति रैचप तैयब अर्दोआन तुर्की की लगती सीमा पर सेफ जोन बना रहे हैं, जिससें पिछले आठ साल के गृह युद्ध में 36 लाख सीरियाई शरणार्थियों को बसाया जा सके, साथ ही सीमा पर कुर्द लड़ाके अपनी गतिविधिया न चला सकें।
कुर्दों की अलग देश की मांग बहुत कठिन है, इस मामले में उन्हें ईरान, इराक, सीरिया और तुर्की की सरकार से निपटना होगा जो दुरूह है। वहीं इस मुद्दे पर अमेरिका, यूरोपीय देश और सयुक्त राष्ट्र संघ की सहायता मिलती नहीं दिख रही है।
अब इस क्ष्रेत्र से अमेरिका के चले जाने से एक बार फिर से ISIS के उठ खड़े होने का अंदेशा भी जोरों पर है। एशिया के इस पूरे क्षेत्र में लगातार युद्ध की स्थिति बनी है, कभी भी भयंकर मानव त्रासदी देखी जा सकती है। यह तनावपूर्ण और संघर्ष की स्थिति आने वाले समय में हालात को और बिगाड़ सकती है।
गौरतलब है कि सऊदी अरब और ईरान की शिया – सुन्नी की जंग, यमन में गृहयुद्ध, सऊदी तेल कम्पनीयों पर यमन के हूती विद्रोहियों का हमला, ईरान – पाकिस्तान, भारत – पाकिस्तान, चीन में शिनजियांग प्रान्त व ताइवान में विरोध और बढ़ती वैश्विक शरणार्थी समस्या, कही सब मिल कर तनाव और गृहयुद्ध से बढ़ एक बड़े युद्ध की शक्ल न अख्तियार कर लें क्योकि कब तक एशिया में यूरोप और अमेरिका की दखल इसी तरह चलती रहेगी?
राजनीति का रंग सुर्ख लाल है या खूनी, जो भी समझ लें लेकिन मुख्य ध्यान देने वाली बात यह है कि मुस्लिम जिस फ़िरके के हैं उसके अलावा सभी फ़िरके, पंथ, संप्रदाय और धर्म को वो झूठा मानते हैं।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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