क्या कभी आपने विचार किया है कि आपके विचार किसके द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं? कौन इसे बनाता है? आपका स्वतंत्र विचार क्या है, इसके महत्व पर समीक्षा आपके द्वारा की गयी है?
वास्तव में जो विचार आपका है, वह किसी न किसी वाद से निकला है जिसे किसी संस्था या गुरु द्वारा विकसित किया गया। वैसे विचार निर्माण का बहुत बड़ा कार्य न्यूजपेपर और लाइव मीडिया द्वारा सुबह – सुबह ही दिमाग में कर दिया जाता है। धर्म खराब है, यह प्रथा ठीक नहीं है। यह कहना बहुत आसान है। देखा जाय तो कई व्याख्याएं ही गलत रहती हैं जिन्हें हम बहुत शानदार तरीके से कहते हैं क्योंकि किसी तथाकथित माननीय द्वारा यह कहा गया है इस लिए सीना चौड़ा करके हम भी कहते हैं।
धर्म की व्याख्या गलत करने से पहले आप धर्म को पहले पूरा पढ़िये.. जानिए। ये वाली गीता (भाष्य) नहीं वो वाली ज्यादा सही है, माना आप की बात सही है लेकिन क्या आपने दोनों गीता पढ़ी हैं?
यह धर्मसम्मत व्याख्या क्या होती है? आप्तपुरुष के वचन क्या हैं? श्रुतियां किसे कहते है?
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की विधि-सम्मत व्याख्या हमारे शास्त्रों में पहले से है। बस उन्हें पढ़ने और समझने की जरूरत है। धर्मसम्मत व्याख्या किसी व्यक्ति विशेष के संदर्भ में न बता कर समस्त जीव-जगत के लिए होती है। वह जाति विशेष, स्वार्थ विशेष के लिए नहीं होती।
श्रुतियां उन्हें कहते हैं जिसे सुनकर लिपिबद्ध किया गया है। इसमें वेद, उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थ आदि आते हैं। यह गुरुशिष्य परम्परा से आगे बढ़ते हैं जिसे समय के साथ शब्दों को संकलित किया गया है।
यह आप्तपुरुष कौन है?
आप्तपुरुष उन्हें कहते हैं जिसमें गुरु, संत, महात्मा आदि के वचन हैं जो सर्वथा प्रमाणिक हैं (आप्तोपदेश: शब्द: – न्यायसूत्र 1.1.7)। बाल्मीकि, चाणक्य, चरक, रामानुजाचार्य, बल्लभाचार्य, मध्वाचार्य नामदेव, ज्ञानदेव, त्रिवल्लुर, सूर, तुलसी, कबीर आदि आते हैं।
अध्ययन, श्रवण, चिंतन, मनन, निदिध्यासन करिये। बुद्धि की स्वतंत्रता के लिए दर्शन भी कहता है। प्रश्न चिन्ह आप पर है कि क्यों इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया?
अब आता है कि शास्त्र हमारे समझ में नहीं आते हैं, उसके लिए हमें गुरु चाहिए। गुरु कैसे और किसे बनाएं? कहा जाता है कि ‘गुरु करिये जान के पानी पीजिये छान के’। भावना में, प्रभावित होकर या देखादेखी गुरु न कर लीजिए बल्कि अपनी जिज्ञासा उनके उत्तर की कसौटी करिये। अब ये न कहियेगा कि समय नहीं है क्योंकि विचार का स्रोत ज्ञान है और ज्ञान का कोई शार्टकट नहीं है।
आपने अनुभव किया होगा कि जब हम समाचार पत्र पढ़ते हैं या टीवी पर न्यूज चैनल देखते हैं तब हमें अक्सर किसी न किसी बात पर क्रोध आ जाता है फिर इन्ही बातों की चर्चा हम अपने मित्र आदि से करते हैं और गाली वाले शब्दों का प्रयोग भी करते हैं।
स्वस्थ और स्वतंत्र विचार कैसे आयें? उसके लिए हमें पढ़ना और मनन करना होगा या अच्छे लोगों की संगत करनी होगी। स्वयं के लिए समय निकालें अकारण क्रोध न करें, न ही अपने विचारों को किसी तंत्र आदि से निर्मित होने दें।
मनुष्य अन्य प्राणियों से इसलिए भिन्न है क्योंकि उनमें चिंतनशीलता और विवेक है। आप अपने चिंतन को विकसित करते हैं? यदि नहीं तो शुरू करिये क्योंकि आप मशीन नहीं हैं जिसे कोई और संचालित करे।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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