84 लाख योनियों में मनुष्य योनि की तरह नाग योनि भी बहुत महत्वपूर्ण है। शेष नाग जिन्होंने धरती को धारण कर रखा है। वासुकी जी जो समुद्र मंथन में लुप्त हुई विशिष्टता को निकालने के क्रम में जब देव-दानव इकट्ठा हुए तब उन्होंने मदरांचल के साथ मथनी की रज्जु बन सृष्टि के प्रक्रिया के सहभागी बने। यही वासुकी नाग भगवान शिव के गले के कंठाहार हैं।
हिन्दु धर्म में सर्पो का यत्र- तत्र वर्णन मिलता है। महाभारत, पद्मपुराण, भागवत पुराण के अनुसार नाग पाताललोक के स्वामी होते हैं और साथ ही पंचमी के भी। सर्प किसानों के भी मित्र होते हैं वह चूहे आदि से किसानो की फसल की रक्षा करते हैं।
सबसे पहले ग्रंथों में नागों का इतिहास देखते हैं।
नागों का इतिहास :
महाभारत के आदिपर्व के अंतर्गत आस्तीक उपपर्व के 35 वें अध्याय के श्लोक संख्या 5 – 16 में नागों और सर्पो का वर्णन मिलता है।
नागों में सबसे पहले शेष जी तदन्तर वासुकि, ऐरावत, तक्षक, कर्कोटक, धनजंय, कालिय, मणिनाग, आपूरण, पिंजरक, एलापत्र, वामन, नील, अनील, कल्माष, शबल, आर्यक, उग्रक, कलशपोतक, सुमनाख़्य, दधिमुख, विमलपिंडक, आप्त, कर्कोटक द्वितीय, शंख, वालिशिख, निष्टानक।
हेमगुह, नहुष, पिंगल, वह्यकर्ण, हस्तिपद, मुद्गरपिंडक, कम्बल, अश्वतर, कालीयक, वृत्त, संवर्तक, पद्म प्रथम, पद्म द्वितीय, शंखमुख, कुष्माण्डक, क्षेमक, पिण्डारक, करवीर, पुष्पदंष्ट्र, बिल्वक, बिल्वपांडुर, मूषकाद, शंखशिरा, पूर्णभद्र, हरिद्रक, अपराजित, ज्योतिक।
श्रीवह, कौरव्य, धृतराष्ट्र, पराक्रमी, शंखपिंड, विरजा, सुबाहु, वीर्यवान, शालिपिण्ड, हस्तिपिंड, पिठरक, सुमुख, कौणपाशन, कुठर, कुंजर, प्रभाकर, कुमुद, कुमुदाक्ष, तित्तिरि, हलिक, महानाग कर्दम, बहुमूलक, कर्कर, कुंडोदार और महोदर। कुल 79 नाग की प्रजातियां उपन्न हुई।
यह सनातन धर्म की महिमा है जो सर्पो का सम्पूर्ण विवरण देती है तब मनुष्य के लिए क्या कहा जाय। इसलिए एक बार अपने शास्त्रों को जरूर पढ़िये।
महाभारत और भागवतपुराण में कहा गया है कि जब परीक्षित को सर्प दंश हुआ और उनके पुत्र जन्मेजय ने सर्पो को सृष्टि से नष्ट करने की सौगंध खाई तब सर्प ब्रह्मा जी की शरण में गये और ब्रह्माजी ने उन्हें जो उपाय बताया वह दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी का दिन था।
जरत्कारु पुत्र आस्तीक ने जिस दिन जन्मेजय के यज्ञ से सर्पों की रक्षा की वह दिन भी श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी ही थी। जलते सर्प के ऊपर उन्होंने दुग्ध का छीटा मारा। ब्रह्मा जी ने जरत्कारु पुत्र आस्तीक के लिए ही बताया था। जरत्कारु का विवाह तक्षक की बहन से हुआ था। सर्प रक्षा के कारण हिन्दू इसे त्योहार के रूप मानते हैं और सर्पो के प्रति आदर प्रकट करते हैं।
ज्योतिष के अनुसार इस दिन विधिवत नाग पूजन से कालसर्प दोष का निवारण हो जाता है। जो इस दिन पूजन करता है उसे सर्प दंश का भय भी नहीं रहता है। सबसे बढ़कर सभी प्रकार के जीव – जंतु अपनी विशेषता के कारण मनुष्य के सहभागी हैं और सहभागियो को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी मनुष्यों पर ही है।
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Please enlighten us with more of your such knowledge of our ancient Hindu Treasures.
जुड़े रहिये , बराबर सनातन संस्कृति पर लिखते रहते है पूर्व के आर्टिकल भी देख सकते है धर्म – संस्कृति चीजे आपको मिलेंगी🙏