नारी देह एक विमर्श

spot_img

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

नारी कहती है – पुण्यता शरीर में है तो आत्म यात्रा क्यों? पुरुष के सारे शास्त्र और विचार नारी देह की परिक्रमा में फँस के रह जाते हैं।

“युद्ध आपके, राज्य आपके लेकिन पिता, पति और पुत्र हमनें खोये”

इतना ही नहीं दुश्मनी पुरुष की और अत्याचार हमनें सहे। बलात्कार, मारपीट कत्लेआम हमारे ऊपर हो। सदियों ने दावा किया कि यह सदी नारी के लिये बेहतर है। कभी आधुनिकता दौड़ते हुये आकर कहती है कि हमनें तुम्हें स्वतंत्रता दी, आर्थिक आजादी दी। लेकिन ये आधुनिक सदी “नारी को व्यक्ति नहीं बल्कि भोग्य वस्तु ही माना है”। बाजार, ट्रेन, बस, प्लेन और वर्किंग प्लेस सभी जगह वही ललचाई नजरें जो क्या करें नहीं तो आंखों से ही….जाये।

क्या नारी का मतलब पुरुष को सुख देना और बच्चे पैदा करना ही है? नारी की स्वतंत्र चेतना कुछ और कहती है, वह व्यक्ति बनने की जद्दोजहद करती है। आधुनिक बाजारवाद ने स्त्री को प्रचार का माध्यम मान नुमाइश की और “सेक्स बम” कह कर प्रचारित किया। जो सीधे – सीधे नारी के अमानवीयकरण से जुड़ा है।

कई धर्मों ने तो स्त्री को दोयम दर्जे का नागरिक मान लिया और कहा कि नारी मूर्ख होती है। जिस नारी ने पुरूष को जन्म दिया उसी पुरुष ने उसके सभी अधिकार छीन लिए। आज समाज चलते – चलते इतना दूर चला गया कि यौन अपराध में कुछ पुरुष इतना गिर गए कि बच्ची की उम्र भी नहीं पहचान पा रहा हैं।

एक बार एक नगर में महात्मा पधारे, उन्होंने लोगों को अच्छे बनने की सीख दी। लोगों को भी अच्छा लगा। गुरुजी के प्रवचन सुनने गणिका (वेश्या) भी आई थी उसने महाराज जी को अपने घर आमंत्रित किया। महात्मा जाने को तैयार होने लगे। जब लोगों ने देखा कि महराज गणिका के यहाँ जा रहे हैं तब लोगों ने कहा महाराज वहाँ न जाइये उसका चरित्र ठीक नहीं है, वह अच्छी महिला नहीं है। इस पर महात्मा ने कहा चरित्र उसका ठीक नहीं है कि तुम लोगों का ठीक नहीं? यदि नगर से कोई व्यक्ति वहाँ नहीं जाता तो उसका चरित्र कैसे खराब होता? तुम सभी अपने अपने चरित्र पर ध्यान दो। महात्मा ने गणिका को ज्ञानोपदेश किया, वह भक्त बन गई और बुरे कर्म छोड़ दिये। हम लोग अपनी कमियों को छुपाने के लिए दूसरे का आलंबन लेते हैं।

हम अंध आधुनिकता, बाजारवाद में इतना तेज भाग रहे हैं  कि मानवता पीछे छुटी जा रही है। समाज को गाली देने का हम सभी के पास खूब समय है। समाज की सुधार एवं कार्य योजना के लिए नहीं है। सोसल इन्वेस्टमेंट शून्य है। सामाजिक विमर्श में जातियों और धर्म का द्वेष भर रह गया है। ऐसा समाज जिसको जहाँ कमजोर पायेगा शोषण ही करेगा। पुरुष जघन्य अपराध का दोषी है, वह समाज भी दोषी है। फिर सुई नारी की ओर भी घूमेगी। सबसे विचारणीय विषय है कि माँ को बच्चे का प्रथम गुरु कहा गया है। वह मां बच्चें को बोलना, खाना, पढ़ना और जीवन में कुछ करने का मार्ग भी दिखाती है। शायद वह अपने लड़के से पूछना भूल जाती है कि अरे पुत्र! किसी लड़की के साथ आज कुछ गलत तो नहीं किया? तुम नारी को सम्मान देते हो न…..?

स्त्री हो या पुरुष, उसे यह देखना होगा कि किसी की स्वतंत्रता, स्वच्छन्दता में और अधिकार असीमित न होने पाए। समय समय पर सामाजिक चिंतन हो जिसमें मुद्दा सामाजिक बेहतरी का रहे।

नैतिकता, नैतिक शिक्षा, चरित्र निर्माण बच्चें अपने घर से सीखते हैं, इस लिए उन्हें अच्छी चीजें सिखाइये, उन्हें जीवन में इतना तेज में न दौड़ाइये की वह आप को ही पार कर जाये। यकीन जानिए, यदि यह सुधार अपने घर से ही प्रारंभ करते हैं तो वह पुरुष निश्चित ही नारी का सम्मान करना सीख जायेगा।

 

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
Disclaimer: The opinions expressed in this article are the author’s own and do not reflect the views of the संभाषण Team. The author also bears the responsibility for the image/images used.

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

1 COMMENT

Subscribe
Notify of
guest
1 Comment
Inline Feedbacks
View all comments
Usha
Usha
4 years ago

Verry nice post.

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

कुछ लोकप्रिय लेख

कुछ रोचक लेख