आहार शुद्धौ सत्वाशुद्धि: सत्व-शुद्धौ।
ध्रुवा स्मृति:, स्मृतिलम्भे सर्वग्रंथीनां विप्रमोक्षा:।।
अर्थात, शुद्ध भोजन करने से सत्व की शुद्धि होती है, सत्व शुद्धि से बुद्धि शुद्ध और निश्रयी बन जाती है फिर पवित्र और निश्रयी बुद्धि से मुक्ति भी सरलता से मिल जाती है।
भोजन में तीन प्रकार के दोष कहे गये हैं: १. निमित्त २. आश्रय और ३. स्थायी।
निमित्त दोष वाले भोजन जिसमें धूलकण, बाल आदि पड़ जाते हैं। बाल में सबसे अधिक बैक्टीरिया रहते हैं। आश्रय दोष जैसे किसी चोर, डाकू और हत्यारे का अन्न लेना। कहा जाता है: “जैसे खाओ अन्न, वैसे होये मन।” तीसरा, स्थायी दोष जैसे लहसुन, प्याज और मांस। निमित्त और आश्रय यह दो रजोवृत्ति को बढ़ाते हैं वही मांस तामसी वृत्ति बढ़ा देता है जिससे ‘दया’ नामक तत्व मनुष्य में समाप्त हो जाता है।
चीन तीनों दोषों को पार करते हुये जिंदा जीवों के कुछ हिस्सों को फ्राई करके स्वाद लेने का प्रयास किया। परिणाम भयंकर रोग आया, गैर सरकारी आंकड़ों से पता चल रहा है कि वुहान शहर में 25000 लोग मर चुके हैं और 125 हजार संक्रमित हैं। 25 हजार से ज्यादा संक्रमित लोगों को मारने की इजाजत शासन ने सुप्रीमकोर्ट से मांगी है।
फ्लू के समय मुर्गियां मारी जाती थी, कोरोना वायरस कह रहा मनुष्य को मुर्गी की तरह मारो। वुहान अब हिरोशिमा, नागासाकी से ज्यादा खतरनाक हो चुका है, अभी पूर्णतया वीरान होना बाकी है।
छठवीं सदी (520-26) में चीन गये भारत के आचार्य बोधिधर्मन ने वहाँ फैली महामारी जो वायरस से हुई थी, उसे भारत के आयुर्वेद से दूर किया। चीन के शाओलीन टेम्पल की स्थापना गुरु बोधिधर्मन द्वारा ही की गयी। बीमारी को रोक कर इन्होंने चीन में बौद्ध धर्म का विस्तार किया, तब चीन के लोग उनसे बहुत प्रभावित हुये थे।
सनातन संस्कृति में अंत्येष्टि का विधान है, मृत देह को जलाने से शरीर में हुई कोई बीमारी आदि को पूर्णतया समाप्त किया जाता है। यह सब कुछ किसी नदी के किनारे या उस स्थान के अग्र भाग में किया जाता है जहाँ आबादी नहीं रहती है। आज चीन में भी करोना वायरस ग्रसित शरीर को जलाया जा रहा है।
विश्व सनातन संस्कृति की ओर पुनः लौटे, मनुष्य जीवों पर दया करें, जीवन में शाकाहार अपनाएं, अनुशासित जीवन का पालन करें जिससे कई भयंकर बिमारियों से स्वयं को बचाया जा सकेगा। यदि प्रकृति के संकेतों को नजरअंदाज करके विकास, स्वार्थ और स्वाद हावी हुआ तो यह मनुष्यों के लिए काफी भारी पड़ने वाला है।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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