मांसाहार, विनाश का द्वार

द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्दैव आसुर एव च। दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे श्रृणु।। – श्रीमद्भगवद्गीता १६/६ मनुष्य दो प्रकार के हैं– देवता और असुर। जिसके हृदय में दैवी सम्पत्ति कार्य करती है वह देवता है तथा जिसके हृदय में आसुरी सम्पत्ति कार्य करती है वह असुर है। मनुष्य की तीसरी कोई जाति सृष्टि में नहीं … Continue reading मांसाहार, विनाश का द्वार