यह तो अंदाज-ए-बयां था साहब, कि हमने दर्द को भी एक नाम दिया वरना आजकल तो लोग बेनाम हुए जाते हैं, कहते हैं… चेहरे को देखकर बड़ा सुकून मिलता है।
हमने तो दीवारों की जगह आईने लगा रखे हैं।
अंदाजा मोहब्बत का हमने किया बहुत देर से, वह दूर होते जाते हैं हम पास होते जाते हैं।
दूरियां मुकम्मल नाप के रखी हैं शायद, वो दर्द सुनाते हैं, हम तारीफ किए जाते हैं।
कितना लिखेगा तो अंदाज़ है मोहब्बत पर यह तेरे दर्द का फलसफा है ना कि तेरी जुस्तजू है।
ले आती है किस्मत तो तारीफ कर घुसने वालों को काली रात मिला करती है।
नाराज हैं हम पर, उन्हें पता नहीं… कहते हैं वक्त के साथ दूर हो जाएंगी, पर यह कैसी कैफियत है? कमबख्त! न दूर होती है ना पास होती है।
चलो बात करते हैं प्यास की, पानी पीने से दोस्ती है पर यह पानी कैसा है? ना प्यास बुझती है ना प्यास लगती है।
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