यदि हम धर्म की रक्षा करते हैं तो वह हमारी रक्षा करता है।
यह मनुस्मृति के अध्याय ८ का १५वां और महाभारत वनपर्व अध्याय ३१३ का १२८वां श्लोक है जो पूरा इस प्रकार से है:
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्॥ (मनुस्मृति 8/15)
अर्थात, धर्म का लोप कर देने से वह लोप करने वालों का नाश कर देता है और रक्षित किया हुआ धर्म रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन कभी नहीं करना चाहिए, जिससे नष्ट धर्म कभी हमको न समाप्त कर दे।
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद् धर्मं न त्यजामि मा नो धर्मो हतोऽवधीत्॥ (महाभारत, वनपर्व 313/128)
अर्थात, यदि धर्म का नाश किया जाय, तो वह नष्ट किया हुआ धर्म ही कर्ता को भी नष्ट कर देता है और यदि उसकी रक्षा की जाए, तो वही कर्ता की भी रक्षा कर लेता है। इसी से मैं धर्म का त्याग नहीं करता कि कहीं नष्ट होकर वह धर्म मेरा ही नाश न कर दे।
यह कैसे संभव है?
यह समझने के लिए हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि धर्म क्या है?
वैदिक सनातन व्यवस्था में ‘धर्म’ शब्द ‘ऋत’ पर आधारित है। ‘ऋत’ वैदिक धर्म में सही सनातन प्राकृतिक व्यवस्था और संतुलन के सिद्धांत को कहते हैं, यानि वह तत्व जो पूरे संसार और ब्रह्माण्ड को धार्मिक स्थिति में रखे या लाए। वैदिक संस्कृत में इसका अर्थ ‘ठीक से जुड़ा हुआ, सत्य, सही या सुव्यवस्थित’ होता है।
ऋग्वेद के अनुसार – ”ऋतस्य यथा प्रेत” अर्थात प्राकृत नियमों के अनुसार जीओ।
लेकिन इस सूत्र का मात्र इतना ही अर्थ नहीं है कि प्राकृत नियमों के अनुसार जीओ। सच तो ये है कि ऋत शब्द के लिए हिन्दी में अनुवादित करने का कोई उपाय नहीं है। इसलिए इसको समझना ज्यादा जरुरी है, क्योकि यह शब्द अपने आप में बहुत ही विराट है। ‘प्राकृत’ शब्द से भूल हो सकती है। निश्चित ही वह एक आयाम है ऋत का, लेकिन बस एक आयाम! जबकि ऋत बहुआयामी है।
ऋत का अर्थ है – जो सहज है, स्वाभाविक है, जिसे आरोपित नहीं किया गया है। जो अंतस है आपका, आचरण नहीं। जो आपकी प्रज्ञा का प्रकाश है, चरित्र की व्यवस्था नहीं जिसके आधार से सब चल रहा है, सब ठहरा है, जिसके कारण अराजकता नहीं है। बसंत आता है और फूल खिलते हैं। पतझड़ आता है और पत्ते गिर जाते हैं। वह अदृश्य नियम, जो बसंत को लाता है और पतझड़ को भी। सूरज है, चाँद है, तारे हैं। यह विराट विश्व है और कही कोई अराजकता नहीं। सब सुसंबद्ध है। सब एक तारतम्य में है। सब संगीतपूर्ण है। इस लयबद्धता का ही नाम ऋत है।
बहुत गूढ़ व्याख्याओं पर न जाते हुए साधारण शब्दों में कहा जाये तो वेदों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, शुद्र और वैश्य को कर्म के आधार पर बांटा गया है, आप बताए गए माध्यम से सही-सही कर्म करते रहें तब आपके वही कर्म, धर्म बन जाएंगे और आप धार्मिक कहलायेंगे। मनुष्यों के लिए यही धर्म है।
यहाँ एक और शब्द आया है, सनातन।
अब तक आपने जहाँ भी पढ़ा होगा उसके अनुसार ‘सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘हमेशा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। और यही सबसे बड़ी भूल हुई जो आज बड़े धर्म के जानकार भी बड़े गर्व से कहते हैं कि सनातन धर्म कभी नष्ट नहीं हो सकता, चिरकाल से चलता आ रहा है और चिरकाल तक चलता रहेगा जबकि वैदिक सनातन धर्म की आज की स्थिति तो आपके सामने है या यूँ कहें तो आज ही वैदिक सनातन धर्म आपको शायद ही कहीं दिखे। दूसरी ओर अगर ऐसा होता तो मनुस्मृति में धर्मो रक्षति रक्षितः कहने की क्या आवश्यकता हुई?
धर्मान्तरण, धार्मिक कट्टरता और भारत में बढ़ते विदेशी NGOs का असर कहें या सनातन धर्मियों की उदासीनता कि जब 1999 में पोप ने भारत में घोषणा की थी कि चर्च 21 वीं सदी तक एशिया में ईसाई धर्म पूर्णतया स्थापित कर देगा तो मीडिया ने इसे साधारण घटना की भाँति प्रस्तुत किया और यह जताने की कोशिश की, कि चर्च का कर्तव्य सम्पूर्ण विश्व में ईसाई धर्म का प्रसार करना है और ऐसा कर के पोप अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं।
जब जाकिर नाइक आदि जैसों के द्वारा हिन्दुओं का सामूहिक धर्म परिवर्तन करके उन्हें मुस्लिम बनाए जाने का समाचार आता है, तो मीडिया ऐसी घटनाओं को अनदेखा करती है अथवा यह सन्देश देती है कि ऐसी घटनायें सामान्य हैं। अंततोगत्वा इस्लाम का प्रसार भी तब तक होना चाहिये जब तक कि सारी मानवता मुसलमान न हो जाय।
लेकिन जब कोई हिन्दू समुदाय हिन्दू धर्म से परे अन्य मजहबों को स्वीकार कर चुके लोगों को पुन: हिन्दू धर्म में प्रतिस्थापित करने का प्रयास करता है तो मीडिया सहसा उत्तेजित हो जाती है। उनके अनुसार ऐसे हिन्दू समूह साम्प्रदायिक एवं विभाजनकारी शक्तियाँ हैं जो हमारे विविधतापूर्ण ढाँचे को अस्त व्यस्त करना चाहती हैं तथा एक असहिष्णु हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना चाहती हैं। कई दिनों तक टीवी चैनलों पर ऐसी घटनाओं की निन्दा की जाती है।
अमेरिका कि संस्था विकिपीडिया के अनुसार “हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है।“
खैर, आगे बढ़ते हैं।
अथर्ववेद कि निम्नलिखित ऋचा के अनुसार:
सनातनमेनमाहुरुताद्य स्यात पुनर्णवः।
अहोरात्रे प्र जायेते अन्यो अन्यस्य रुपयो:॥ (अथर्ववेद 10/8/23)
अर्थात, उसे (जो सत्य के द्वारा ऊपर तपता है, ज्ञान के द्वारा नीचे जगत को प्रकाशित करता है अर्थात ईश्वर) सनातन कहते हैं, वह आज भी नया है जैसे कि दिन और रात अन्योन्याश्रित रूप से नित नए उत्पन्न होते हुए भी सनातन हैं।
वैदिक या हिन्दू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है। मोक्ष का मार्ग इसी धर्म की देन है। एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण मोक्ष का मार्ग है, अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है।
यहाँ सनातन का अर्थ आज और कल से नहीं है, यहाँ सनातन का अर्थ है कि जैसे दिन और रात अन्योन्याश्रित रूप से नित नए उत्पन्न होते हुए भी सनातन हैं। उसी प्रकार वैदिक धर्म की व्यवस्था में उत्पन्न प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में जन्म से मृत्यु तक और उसके बाद भी जन्म – मृत्यु के चक्र को पूरा करते हुए मोक्ष तक अर्थात दिन और रात की तरह, जब तक यह सृष्टि चलेगी तब तक वैदिक व्यवस्था में उत्पन्न हुआ व्यक्ति धर्म से जुड़ा रहेगा। यह है जिसका कोई आदि और अंत नहीं है।
और यही सनातन धर्म का सत्य है। जिसमें हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि:
ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय ॥
ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥ वृहदारण्य उपनिषद
अर्थात: हे ईश्वर! मुझे मेरे कर्मों के माध्यम से असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।
वैदिक सनातन धर्म में हम मानते हैं कि:
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।। ईशोपनिषद्
अर्थात: सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत्। सत का अर्थ है ‘यह’ और तत का अर्थ है ‘वह’। दोनों ही सत्य हैं। अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि। अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और तुम ही ब्रह्म हो। यह संपूर्ण जगत ब्रह्ममय है। ब्रह्म पूर्ण है। यह जगत् भी पूर्ण है। पूर्ण जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है। पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की पूर्णता में कोई न्यूनता नहीं आती। वह शेष रूप में भी पूर्ण ही रहता है। यही सनातन सत्य है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कभी अपना देश ‘सोने की चिडिया’ कहलाता था, लेकिन आपको जान कर आश्चर्य होगा कि हमारा देश तो आज भी ‘सोने की चिडिया’ ही है। लगभग सभी प्रमुख क्षेत्रों में भारत की गिनती विश्व के उच्चपदस्थ देशों में होती है।
बात समझने की है। राष्ट्र रुपए – पैसों से महान नहीं बनता, वह महान बनता है लोगों के उच्च विचारों से, ऐसे देश में जहाँ सामान्य लोगों में उच्च विचार हों, वह देश कभी किसी भी रूप से निर्धन नहीं हो सकता। हमारा इतिहास भी ऐसा ही रहा है।
जहाँ एक ओर ‘ऋत’ शब्द को हिंदी में अनुवाद करने का कोई उपाय नहीं है वहां दूसरी ओर आज की पीढ़ी, जो खुद को धार्मिक कहती है, धर्मग्रंथों को अंग्रेजी भाषा में पढ़ती है। क्या उनको वह सही रूप से समझ पाएंगे? कुछ लोग अगर धर्म को नहीं मानते हैं या नास्तिक हैं तो यह चलता है, चिर काल से ऐसा होता आया है लेकिन अगर सभी या अधिकतर ऐसे ही हो गए तब?
इसको इस बात से समझिये कि अगर गेहूं में कुछ घुन निकल गए, तो वह तो चल जाता है लेकिन घुन, गेहूं में बहुत अधिक हो जायें या यदि घुनों ने गेहूं को नष्ट कर दिया, तब?
सनातन धर्म की विशेषता है कि यह विचारों के उच्चता की बात करता है। विश्व में केवल और केवल सनातन धर्म ही है जिसमें कोई धार्मिक कट्टरता नहीं है, नास्तिकता की भी मान्यता है। एक और जहाँ लगभग सभी धर्म बाकियों के धर्मान्तरण की बात करते हैं वहीँ सनातन धर्म का सिद्धांत है: ‘‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’’ (ऋग्वेद 9/63/4) अर्थात विश्व के सभी लोगों को श्रेष्ठ गुण, कर्म, स्वभाव वाले बनाओ।
वेदों से लेकर बाद के भी किसी ग्रन्थ में ये नहीं लिखा कि सबको सनातन धर्मी या हिन्दू बनाओ। हिन्दू प्रार्थनाएं और दृष्टि केवल मानव ही नहीं, अपितु समस्त सृष्टि मात्र के कल्याण, समन्वय और शांति की कामना करती हैं। इसीलिए हिन्दू ने अपने को हिन्दू नाम भी नहीं दिया। वीर सावरकर के शब्दों में, “आप मुसलमान हो इसलिए मैं हिन्दू हूं। अन्यथा मैं तो विश्वमानव हूं।”
हरे कृष्ण हमें अपने धर्म की रक्षा करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं करना बस इतना ही करना है अपने विचारों को शुद्ध करें खानपान शुद्ध रखें पहनना उढ ना शुद्ध करें गीता में भगवान ने कहा है भोजन करें तो मुझे अर्पित करते हुए करें जिसमें प्याज लहसुन नहीं होता दान दें तो भगवान को देते हुए करें कोई कार्य करें तो भगवान के लिए करें कोई यज्ञ करें तो भगवान केंद्र बिंदु हो… Read more »
बहुत बहुत आभार प्रकट करता हूं, बहुत ही सुन्दर लेख
from where can i buy the cutout or stiker for the DHARMO RAKSHIT RAKSHITA
सादर प्रणाम..
इस लेख के लिए धन्यवाद |
I was looking for this article. Thank you very much for this article and teaching me.
I liked the way you responded in one of comment. So humble and generous..
Regards,
Manoj Kaushik
સનાતન ધર્મ વિશે જણાવા માટે ખૂબ ખૂબ અભિનંદન 🚩ઓમ શાંતિ
सादर प्रणाम,
यदि किसी भी अज्ञानी मनुष्य को धार्मिक शिक्षा देनी हो तो किस कौन सी और किस क्रम में पुस्तके पढ़नी चाहिए
सादर प्रणाम,
शुरुवात इतिहास ग्रंथों से करनी चाहिए, सबसे पहले रामायण, महाभारत और पुराण ग्रंथों को पढ़ना चाहिए।
हमें अपनी संस्कृति का रक्षण करना होगा और हमें अधिक से अधिक यह प्रयत्न करना होगा के सभी सनातन संस्कृति के भाई बहन एक जुट हो जाएं अन्यथा बहुत देर ना हो जाए।
🙏🏼🙏🏼🙏🏼
सही कहा आपने भाई
बहुत ही सत्य सटीक विश्लेषण किया है आपने धन्यवाद जय हो ।आदि शंकराचार्य ने कहा था मै ब्रह्म हूँ तुम भी ब्रह्म हो
सभी मे समानता का संदेश देने बाला सनातन धर्म 🙏🙏
Om Namo Namah bhagwate vasudevay Namah
8920772802 mobile
ॐ नमो नारायण 🌺🙏⚔️🇮🇳⚔️🕉⚛️🐘🌎🔔🧘♂️🇺🇸🪔🎈❤️🌻🌸🌼🎁सुंदर भावार्थ के लिय सादर कोटि कोटि धन्यवाद !
what do you mean by karma rakshati rakshitah in hindi
यह कोई अर्थपूर्ण वाक्य नहीं हुआ, ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ का अर्थ है ‘हम धर्म की रक्षा करते हैं तो वह हमारी रक्षा करता है’ लेकिन ‘कर्मो रक्षति रक्षितः’ का अर्थ इसलिए नहीं बना क्योंकि यहाँ यह स्पष्ट नहीं है कि किस प्रकार का कर्म? गीता में भगवान ने भी कहा है: न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् । कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥ अतः, बिना ज्ञान के केवल कर्म संन्यास मात्र से मनुष्य निष्कर्मतारूप सिद्धि… Read more »
बात धर्मोक्त है लेकिन सनातन की हिन्दू से तुलना करके आपने सनातन और वेद शास्त्रों का अपमान किया है
नितीश जी, यह सब अर्थहीन बातें राजनीति के लिए ही रहने दीजिये. यदि आपके घर में आपको नितीश की जगह बेटा, बाबू या कुछ और कहा जाये तब क्या वहां किसी और की बात होगी? आपके मित्र या दुश्मन ही आपको नितीश की जगह यार, दोस्त या किसी और नाम से पुकारें तो भी तो बात आपकी ही रहेगी ना? उसी तरह, ‘आसिन्धुसिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिकाः। पितृभूपुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितिस्मृतः ॥’ अर्थात, प्रत्येक व्यक्ति जो सिन्धु… Read more »
यहाँ तक कि इंडिया शब्द भी भारत के लिए ही है किसी और जगह के लिए नहीं.
प्राच्यां तदेरियानाप्रान्तात्प्रत्यग्गिरेः सुलेमानात्।
प्रान्तोSयमिण्डियाख्यः कथितोSनार्य्यैः स आर्य्यवसतित्वात॥
एरियाना से पूर्व में सुलेमान पर्वत से पश्चिम का भाग आर्यों की निवास होने के कारण अनार्यों द्वारा ‘इंडिया’ कही गई।
Ye kis shastr ka shlok h
Kahin ye m0ilawati t0o nhi h
यह श्लोक पण्डित मधुसूदन ओझा कृत ‘इन्द्रविजयः’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है।
Sanatan dharm ki barik se barik bato ko btane ke liye dhanyawad.
Gyanoparjak lekh👌👌
सटीक विश्लेषण ! जो निश्चित ही सोये हुए हिंदुओ को जाग्रत करेगा।