हरे कृष्ण आओ कृष्ण आओ कृष्ण मेरे कृष्ण, सभा बीच में जब द्रोपदी पुकारी है।
कहां जा छुपे हो बता दो मनमोहना, ये नीच दु:शासन खींचन लागो मेरी साड़ी है।।
चीर बन के फिर गए द्रोपदी के चारों ओर, वही कहते जिन्हे बांके बिहारी हैं।
जाकी रक्षा को आयो खुद चार भुजा वालो, कहा कर सकेगौ जो दो ही भुजाधारी हैं।।
मैंने आगे कल्पना की, अगर द्रोपदी श्री राम के स्वरुप को मदद के लिए पुकारतीं
तो क्या भाव हो सकते थे :
दीनदयाल विरद संभारि रामा, ग्रंथों की लिखी क्या ये रीत न निभाओगे।
पांच पतियों की प्रिया पंचों बिच लुट रही, मर्यादा का क्या ये मर्दन देख पाओगे।।
पापिन ही सही गर दंड मोहे मिल रहो, पर तुम पतित पावन फिर कैसे कहाओगे।
तुम्हरी न सही पर काहू की तो हूँ मैं सिया, मोहे बचाने को मेरे राम नहीं आओगे?
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हृदय स्पर्शी पंक्तियाँ 🙏🏻
आखिरी पंक्ति तो कमाल की है।
Sadar dhanywaad 😊
बहुत सुन्दर भाव है 👌
Dhanywaad 😊
Bahut sundar
Dhanywaad 😊
अदभुत
Dhanywaad
हृदय स्पर्शी पत्तियाँ🙏🙏
Dhanywaad
वाह, सुंदर भाव से परिपूर्ण कविता है।
धन्यवाद 🙏🙏
धन्यवाद।