(विशेष सूचना: कथा का मुख्य आधार गीताप्रेस से प्रकाशित श्री हनुमान प्रसाद पोद्दारजी द्वारा टीकाकृत रामचरितमानस, मानस पीयूष और गुरु जनों संत जनों द्वारा कही गई कथा है)
प्रथम भाग (आरंभ) :
भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥
श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते।
बालकाण्ड के मंगलाचरण का यह दूसरा श्लोक उन सभी शंकाओं का निवारण करने में सक्षम है जो रामकथा में शिव कथा होने पर प्रश्न उठाती हैं। इसके साथ-साथ ये भी इशारा कर देता है कि रामकथा आने से पहले शिवकथा आएगी। क्योंकि परमपिता पर हमारा विश्वास ही महादेव हैं और उनके प्रति हमारी श्रद्धा ही गौरी हैं। जब इन दोनों का मिलन होता है तब गणेश रुपी बुद्धि और कार्तिकेय रुपी पुरुषार्थ का जन्म होता है। ईश्वर को जानने की इच्छा लिए मनुष्य बुद्धि के साथ पुरुषार्थ करता है, तब जाकर अपने अन्तः करण में उपस्थित ईश्वर के दर्शन कर पाता है। अर्थ यह सिद्ध हुआ कि रामजी को पाने के लिए महादेव का साथ होना अति आवश्यक है। और फिर श्री रामजी ने भी तो खुद कह दिया है –
सिव द्रोही मम भगत कहावा।
सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा॥
श्रीरामचरित मानस में शिवकथा का स्पष्ट विस्तार 47वें दोहे से शुरू हो कर “चरित सिंधु गिरिजा रमन बेद न पावहिं पारु। बरनै तुलसीदासु किमि अति मतिमंद गवाँरु।” 103वें दोहे तक जाता है।
कथानुक्रम में मानसकार बाबा तुलसीदासजी पहला संवाद लेखक के रूप में पाठकों से करते हैं। दूसरा संवाद ऋषि भारद्वाज और ऋषि याज्ञवल्क्य के रूप में शुरू होता है जब प्रयाग में भारद्वाज ऋषि, ऋषि याज्ञवल्क्यजी से राम कथा कहने को कहते हैं। तब ऋषि याज्ञवल्क्यजी राम कथा कहने से पहले शिवकथा कहना प्रारम्भ करते हैं। और कथा प्रारम्भ करने के लिए कहते हैं –
एक बार त्रेता जुग माहीं।
संभु गए कुंभज रिषि पाहीं॥
श्रीरामचरित मानस में जब-जब “एक बार” शब्द का प्रयोग हुआ तब-तब कथा सामान्य चलते प्रसंग से कहीं और मुड़ गयी है या कोई नयी घटना हुयी है जिसने भविष्य की कथा की नींव रखी है। उदाहरण स्वरूप ‘चढ़ि बर बाजि बार एक राजा’, ‘एक बार जननीं अन्हवाए’, ‘एक बार तेहि तर प्रभु गयऊ’, ‘एक बार भूपति मन माहीं’ आदि।
ऋषि याज्ञवल्क्यजी शिव कथा कहना शुरू करते हैं –
एक बार त्रेता जुग माहीं।
संभु गए कुंभज रिषि पाहीं॥
संग सती जगजननि भवानी।
पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी॥
क्रमशः..