नोट: इस कहानी में शब्द तो मेरे हैं लेकिन कथा बचपन में पढ़ी किसी किताब के हैं, जो शायद आपने भी पढ़ी हो।
एक बार नारद मुनि और यमराज में इस बात पर बहस शुरू हुई कि मनुष्य का स्वभाव कैसा होता है?
यमराज का तर्क था कि ‘मनुष्य’ एक सीधा प्राणी है, कर्म करता है और अच्छे फल पर प्रसन्न और बुरे फल पर दुखित या पश्चातापी होता है। वहीं नारद जी का कहना था कि ‘आप का पाला तो मरे मनुष्यों से ही पड़ता है जबकि मनुष्य एक बड़ा ही धूर्त और समय के साथ बदलने वाला प्राणी है।
दोनों लोगों में विवाद बढ़ा फिर तय हुआ कि यमराज के सामने एक जीवित मनुष्य को लाया जाए फिर देखा जाए कि उसका स्वभाव कैसा है। यम दूतों को धरती पर भेजा गया यह बोल कर कि सबसे पहले मिले एक मनुष्य को ले आएं। यमदूत चले और सबसे पहले उनकी मुलाकात जिस व्यक्ति से हुई वह ‘लखन पटवारी’ था।
‘लखन’ जो तहसील में पटवारी के काम में लगा हुआ था और उस इलाके में ‘लखन पटवारी’ के नाम से जाना जाता था।
अब, एक तो वह पटवारी था और दूसरे बड़ा ही धूर्त किस्म का आदमी, सो हर वक्त लूट-खसोट, घोटाले और तरह-तरह के स्कीमों से पैसे कमाने की सोचता रहता था। उसके जीवन का एक मात्र लक्ष्य था ‘पैसा’ चाहे विधि कोई भी हो। यमदूत बोले चलो हमारे साथ ‘यमराज’ का बुलावा है। लखन पहले तो डरा फिर सम्भल कर बोला आप यमदूत हैं और आपका धर्म है कि हमें हमारी गलतियां और मृत्यु का कारण बताएं। बेचारे यमदूत लखन की बातों में फस गए तथा नारद और यमराज के बीच के विवाद का सारा वृतांत कह सुनाया।
यमदूतों की बात सुन कर लखन कुछ देर सोच में पड़ गया फिर यमदूतों से बोला ‘आप दो मिनट ठहरें मैं अभी आपके साथ चलता हूँ’ यमदूत मान गए।
लखन कमरे में गया और कलम पेपर ले कर भगवान की तरफ से यमराज के नाम एक परवाना (हुक्मनामा) तैयार किया, लिखा ‘यमराज! यह परवाना मिलते ही तुम लखन को तुरंत अपनी सत्ता सौंप दो।’
परवाना तैयार कर वह यमदूतों के साथ यमराज के दरबार में पहुँचा।
पहुँचते ही सबसे पहले यमराज का अभिवादन कर उनको वह परवाना दिया। यमराज ने परवाना पढ़ा और और भगवान की आज्ञा मान तुरंत अपने सिंहासन से उठ कर अपनी सत्ता लखन पटवारी को सौंप दी।
अब लखन को तो सच्चाई का पता था, वह जानता था कि एक न एक दिन बात खुलेगी और उसे नर्क में भेजा जाएगा। उसने विचार किया फिर एक योजना बनाई। उसने ऐलान किया कि ‘अब से सभी पाप के भागियों को स्वर्ग में रखा जाए और स्वर्ग भोगने वालों को नर्क में पटक दिया जाए।’
हर ओर त्राहि त्राहि मच गई, त्रिलोक कांप उठा। भगवान पकट हो गए, यमराज को हाजिर होने के लिए बोला गया। भगवान ने यमराज से पूछा ‘यह क्या अंधेरगर्दी मचा रखी है?’ यमराज वह परवाना भगवान को दिखाते हुए बोले ‘हे प्रभु! मैंने तो आपकी आज्ञा का पालन किया है, यह सब करने वाला तो लखन पटवारी है।’
भगवान बड़े नाराज़ हुए, लखन को दरबार में पेश किया गया। भगवान बोले ‘तुमने जघन्य अपराध किया है, तुम्हे इसका दण्ड मिलेगा’ ऐसा कह उन्होंने आदेश दिया कि लखन को आदि काल तक नर्क में रखा जाए। आदेश सुन लखन गिड़गिड़ाने लगा बोला प्रभु मेरी एक विनती मान लें फिर में सभी दण्ड को स्वीकार करूंगा। भगवान बोले ‘क्या?’ लखन – ‘मैं केवल 2 घंटो के लिए धरती पर जाना चाहता हूं और अपने लोगों से मिलना चाहता हूं।’
भगवान, लखन को गिड़गिड़ाते देख बोले ‘ठीक है’ लेकिन तुम लोगों से मिल कर करोगे क्या?’ लखन बोला ‘प्रभु! मैं लोगों को समझना चाहता हूं कि जिस भगवान के लिए तुम यह रोज पूजा, अर्चना, आरती करते हो उनके साक्षात दर्शन के बाद भी मुझे नर्क में जाना पड़ रहा है’।
यह सुनते ही सारा दरबार सन्न!
भगवान ने तो ‘ठीक है’ भी बोल दिया था। भगवान ने सोचा कि ऐसे तो घरती पर से मेरी पूजा अर्चना ही समाप्त हो जाएगी। सबके साथ मंत्रणा की फिर निश्चित हुआ कि लखन का अब तक के सभी कर्म को किनारे हुए दुबारा धरती पर भेजा जाए और एक महीने का समय दिया जाए फिर उन एक महीनों के कर्म के हिसाब से आगे का लेखा जोखा हो।
अब लखन पटवारी धरती पर वापस आ गए लेकिन अपने स्वभाव के अनुसार ही कर्म करते रहे, वही लूट, खसोट, पैसों की भूख लेकिन अंत में उन्होंने एक मरियल सी सफेद गाय दान करने का पुण्य कर दिया। एक महीने बाद उनकी मृत्यु हुई और उन्हें भगवान के दरबार में सभी के सामने पेश किया गया। कर्मों का लेखा जोखा हुआ। पाप ही पाप, पुण्य के नाम पर एक उजरऊ (सफेद) गाय का दान।
भगवान बोले तुम्हे समय भी दिया गया लेकिन तुमने अपने स्वभाव के अनुसार ही कर्म किया अब बोलो पहले पुण्य का फल चखोगे या पाप का?
लखन कुछ देर सोचने के बाद बोला ‘प्रभु! अगर आज्ञा हो तो मैं पहले पुण्य का स्वाद चखना चाहूंगा’
भगवान बोले ‘तथास्तु’ इतना कहते ही वही सफेद गाय लखन के सामने प्रकट हो गयी, बोली ‘आज्ञा दें’। लखन बोला ‘हे गऊ माता आप अपने लंबे सींगों को इन यमराज के पेट में घुसेड़ कर तब तक हिलाती रहिये जब तक इनके प्राण न उड़ जाएं’। इतना सुनते ही गाय यमराज की ओर लपकी,
त्राहि त्राहि!
यमराज आगे- आगे और गाय उनके पीछे- पीछे, त्रिलोक में हाहाकार!
भगवान, नारद, यक्ष, गण सब लखन के सामने।
अब तो बात ईश्वर तक पहुचने वाली थी, बात भी ऐसी ही थी। लखन के सामने प्रस्ताव रखा गया कि वह जैसा चाहे वैसा करे, किसी को कोई आपत्ति नहीं है। लखन बोला कि अब में दुबारा धरती पर नहीं जाना चाहता लिहाजा मुझे स्वर्ग में उच्च स्थान दिया जाए। भगवान बोले- ‘तथास्तु’। सबकी सांस में सांस आयी।
लखन के कहने से गाय ने यमराज को मुक्त कर दिया। सब पहले जैसा हो गया।
कुछ दिनों बाद नारद मुनि फिर यमलोक की तरफ से गुजरे, सोचा यमराज से भी मुलाकात कर लिया जाये, ऐसा सोच कर यमराज के से मिलने गए, दरबार का समय समाप्त हो गया था इसलिए दोनों लोगों कि मुलाकात अकेले में ही हुई। नारद, यमराज से बोले ‘कहिये प्रभु! कैसा अनुभव रहा?’
यमराज बहुत देर शांत मन से सोचने के बाद भी नारद जी को मुस्कुरा कर प्रणाम भर ही कर पाए।
Badi hi roxhak kahani 👌👌
मनुष्य का सामर्थ्य ऐसा की देव भी घबरा जाय।
बड़े भाग मानुस तन पावा सुर दुर्लभ सब ग्रंथहि गावा।
लेकिन लखन पटवारी जैसी दुर्बुद्धि फिर भी स्वर्ग ले लिया
यहां तो धन के लिए सब कुछ करने को तैयार है क्या स्वर्ग
क्या नर्क।