एक बार नारद जी के उकसाने पर सती भगवान शिव से आग्रह करने लगी कि आपके गले मे जो मुंड की माला है उसका रहस्य क्या है ?
जब बहुत समझाने पर भी सती न मानी तो भगवान शिव ने इसका रहस्य बताया।
शिव ने पार्वती से कहा कि इस मुंड की माला में जितने भी मुंड यानी सिर हैं वह सभी आपके हैं।
इस बात को सुनकर सती दंग रह गयी।
सती ने भगवान शिव से पूछा, यह भला कैसे संभव है कि सभी मुंड मेरे हैं। इस पर शिव बोले यह आपका १०८वां जन्म है।
इससे पहले आप १०७ बार जन्म लेकर शरीर त्याग चुकी हैं और ये सभी मुंड उन पूर्व जन्मों की निशानी है।
इस माला में अभी एक मुंड की कमी है इसके बाद यह माला पूर्ण हो जाएगी।
शिव की इस बात को सुनकर सती ने शिव से कहा मैं बार बार जन्म लेकर शरीर त्याग करती हूं किन्तु आप शरीर त्याग क्यों नहीं करते।
शिव हंसते हुए बोले ‘मैं अमर कथा जानता हूं इसलिए मुझे शरीर का त्याग नहीं करना पड़ता।’
इस पर सती ने भी अमर कथा जानने की इच्छा प्रकट की।
शिव जब सती को कथा सुनाने लगे तो उन्हें निद्रा आ गयी और वह कथा सुन नहीं पायी।
इसलिए उन्हें दक्ष के यज्ञ कुंड मे कूदकर अपने शरीर का त्याग करना पड़ा।
शिव ने सती के मुंड को भी माला में गूंथ लिया।
इस प्रकार १०८ मुंड की माला तैयार हो गयी। सती ने अगला जन्म पार्वती के रूप मे हुआ।
इस जन्म में पार्वती को अमरत्व प्राप्त हुआ और फिर उन्हें शरीर त्याग नहीं करना पड़ा।
जिस स्थान पर शिव ने अमरकथा सुनाई थी, कालांतर मे वही “अमरनाथ” तीर्थ के नाम से विख्यात हुआ है।