स्वप्न (सपना) स्वप् + नक् : ‘स्वप्न’ एक वैदिक शब्द है। ऋग्वेद २.२८.१०, १०.१६२.६ अथर्ववेद ७.१०१.१, १०.३.६ वाजसनेयी संहिता २०.१६ सहित ब्राह्मण ग्रंथों जैसे शतपथ ब्राह्मण ३.२.२.२३ आदि में आया है।
ऋग्वेद २.२८.१०, अथर्ववेद १०.३.६ आदि में दुःस्वप्नों का भी उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के आरण्यकों जैसे ऐतरेय आरण्यक ३.२.४ आदि में में कुछ स्पप्नों की सूची है जिन्हें ‘प्रत्यक्ष-दर्शनानि’ अर्थात ‘स्वतः आँखों से देखे गए दृश्य’ कहा गया है।
निद्रा में हम सभी स्वप्न देखते हैं। कुछ लोगों को स्वप्न उठने के साथ ही विस्मृत भी हो जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार हिता नामक ७२ हजार नाड़ियाँ जो हृदय स्थान से सर्वांग शरीर में फैली हुई हैं, उनमें किसी-किसी नाड़ी में दुर्बलता के कारण भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वप्न दिखाई देते हैं। ऐसे व्यक्ति जिनकी हिता नाड़ी बहुत कम दुर्बल हो अथवा दुर्बल ही न हो तो ऐसे व्यक्ति या तो स्वप्न ही नहीं देखते अथवा अल्प कालिक स्वप्न देखते हैं। वात, पित्त और कफ धातुओं के बनते-बिगड़ते सामंजस्य से भी भिन्न-भिन्न स्वप्न दिखाई देते हैं। उदाहरण स्वरूप वात दोष में भय प्रद स्वप्न दिखाई देते हैं।
सपनों को देखने से हर्ष, विषाद, भय, क्रोध, विस्मृति, बोध आदि की प्राप्ति होती है। योग्य विद्वान इनका अर्थ भी बताते हैं। पुराणों में शुभ-अशुभ स्वप्नों की सूची मिलती है। उदाहरण स्वरूप आग्नेय पुराण में २२९वाँ अध्याय ‘शुभाशुभ स्वप्नों पर विचार’ है। मत्स्यपुराण में २४२वाँ अध्याय ‘शुभाशुभ स्वप्नों के लक्षण’ है।
बृहदारण्यकोपनिषद् ३.४.९ में आया है कि स्वप्नलोक लोक और परलोक के बीच का सन्ध्यस्थान है (संध्यं तृतीयँ स्वप्नस्थानं)। इसके भाष्य में भगवान शंकराचार्य लिखते हैं कि धर्म के फलस्वरूप परलोक में होने वाले सुख दुखों के दर्शन होते हैं।
ब्रह्मसूत्र (वेदान्तदर्शन) ३.२.४ में आया है “सूचकश्च हि श्रुतेराचक्षते च तद्विदः” अर्थात् स्वप्न भविष्य में होने वाले शुभाशुभ परिणाम का सूचक होता है। छांदोग्योपनिषद् ५.२.८ में कहा गया है :
यदा कर्मसु काम्येषु स्त्रियं स्वप्नेषु पश्यति ।
समृद्धिं तत्र जानीयात्तस्मिन् स्वप्ननिदर्शने ॥
अर्थात् जब काम्य कर्मों के प्रसंग में स्वप्नों में स्त्री को देखे तो ऐसे स्वप्न देखने का परिणाम यह समझना चाहिए कि उस किए जाने वाले काम्य कर्म में भली भाँति अभ्युदय होने वाला है। ऐतरेय आरण्यक में ऐसा भी कहा है कि यदि काले दाँत वाले काले पुरुष को देखे तो वह मृत्यु का सूचक है।
प्रायः मित्र गण हमसे स्वप्नों के विषय में प्रश्न पूछते हैं। यद्यपि निस्संदेह हम इसके योग्य तो नहीं हैं किन्तु शास्त्रों में जो पढ़ते हैं, वही बता भी दिया करते हैं। सामान्य रूप से यदि विचार करें तो जिन स्वप्नों को देखने के बाद मन प्रसन्न रहें, भले ही वह कैसे भी हों, प्रसन्न रहना चाहिए। भगवान की पूजा स्तुति आदि से सब मंगल ही होता है।
किन्तु यदि स्वप्न के बाद भय, चिन्ता आदि की प्राप्ति हो तो उपाय जानने का प्रयत्न करना चाहिए। कुछ लोग पितरों, पूर्वजों को स्वप्न में देखते हैं जिनमें वे कभी हर्षित, कभी शोकग्रस्त अथवा कभी भूखे दिखाई देते हैं। ऐसे स्वप्न पितृ दोष की ओर संकेत करते हैं। गरुडपुराण, धर्मकाण्ड, अध्याय २३ (स्वप्नोध्याय) का पाठ और योग्य से परामर्श करना चाहिए।
सामान्य अवस्था में यदि दुःस्वप्न व्यथित करें तो ब्राह्मणों का पूजन करना चाहिए और भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए जैसा कि मानस में भरतजी ने किया था :
देखहिं राति भयानक सपना। जागि करहिं कटु कोटि कलपना॥
बिप्र जेवाँइ देहिं दिन दाना। सिव अभिषेक करहिं बिधि नाना॥
वे रात को भयंकर स्वप्न देखते थे और जागने पर (उन स्वप्नों के कारण) करोड़ों (अनेकों) तरह की बुरी-बुरी कल्पनाएँ किया करते थे। (अनिष्टशान्ति के लिए) वे प्रतिदिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देते थे। अनेकों विधियों से रुद्राभिषेक करते थे।
अपने भाव के अनुसार भगवान शिव, भगवान कृष्ण या भगवान राम आदि का पूजन, गजेन्द्र मोक्ष की कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए। स्वप्न को किसी से बता देने से भी दोष शान्त हो जाता है। पुनः सो जाना भी स्वप्न दोष निवारण का एक उपाय है।