पुराणों की सत्यता

spot_img

About Author

एक विचार
एक विचार
विचारक

बड़ा दुःखदायक है जब ‘तथाकथिक’ धर्मरक्षक ही पुराणों की सत्यता पर प्रश्न उठाने लगते हैं। तर्क देते हैं कि पुराणों में मिलावट बहुत है। वेद ही सत्य हैं। (हालांकि वेदों के विषय में भी उनकी मान्यता कुछ ऐसी ही है जैसे पुरुषसूक्त वेदों का हिस्सा नहीं हैं आदि।)

हास्यास्पद स्थिति तो तब होती है जब पुराणों पर मान्यता न होते हुए भी दावा किया जाता है कि “अमुक गुरुजी/स्वमी जी” तो कल्कि के अवतार थे।

अरे, जब पुराण सत्य ही नहीं हैं तब उनका आधार ही क्यों लेना?

किसी भी देश को यदि सांस्कृतिक रूप से तोड़ दिया जाए तब उसका पुनः शसक्त रूप से खड़ा होना संभव नहीं हो पाता।

माना पुराणों में मिलावट है, यह भी सम्भव है कि समय के साथ नष्ट हो चुके हिस्सों को भरने के उद्देश्य से किसी विद्वान ने अपनी समझ से ऐसा किया हो। लेकिन कुछ तो सही होगा ही। मुख्य बात जो समझने की है वह ये कि पुराण ग्रंथ लिखे क्यों गए थे? उन्हें लिखने की क्या आवश्यकता हुई?

वैदिक सनातन धर्म वेदों पर आधारित धर्म है। वेदों से ही स्मृति और पुराणों की उत्पत्ति हुई है। वेदों के सार को उपनिषद और उपनिषदों के सार को गीता कहते हैं। श्रुति के अंतर्गत वेद आते हैं बाकी सभी ग्रंथ स्मृति ग्रंथ हैं। पुराण, रामायण और महाभारत हमारे इतिहास ग्रंथ हैं।

इतिहास ग्रंथों को लिखने का प्रयोजन यह है कि हम उन्हें जाने, उनसे सीख ले सकें, लेकिन सीख लेने को छोड़ कर बाकी सब कुछ करने के लिए हम तैयार रहते हैं, हम उनकी सत्यता का, काल का पता लगाते हैं। स्वयं न्यायाधीश बन ईश्वर का न्याय करते हैं।

राम सेतु सही है या नहीं, यह कोर्ट तय करती है। राममंदिर पर इतने प्रश्न हुए क्योंकि रामायण ग्रंथ पर कोई भरोसा नहीं है। दूसरा भी तो तभी भरोसा करेगा जब आप स्वयं करेंगे।

संभव है कि मिलावट सभी ग्रंथों में मिले, लेकिन मिलावट ही होगा ना, कुछ तो सही होगा ही, यदि ग्रंथों को समर्पण के साथ पढ़ा जाए तो वह भी दूध और पानी की तरह साफ हो जाता है और यदि बिल्कुल नहीं समझ आता है तो उन हिस्सों को छोड़ दीजिए, जो समझ में आये उसे ग्रहण करिये।

ग्रंथों को सहेज कर आप तक पहुचाने की अपने पूर्वजों के हजारों वर्षों की मेहनत पर यूं पानी ना फेरिये, ग्रंथों को पढिये, बिना इनके वेदों को समझना सम्भव भी नहीं है। यदि किसी ने सुनियोजित उद्देश्य से मिलावट की हो, इस स्थिति में ग्रंथों को छोड़ कर आप उसी के उद्देश्य की पूर्ति कर रहे हैं।

हमारा दृढ़ विश्वास है कि सभी ग्रंथ सही हैं। ‘भविष्य पुराण’ की कथाएँ भी सौ प्रतिशत सच हैं। इन्हें तथाकथित धार्मिक कहानियों के आधार पर नहीं लिखा गया बल्कि तथाकथतित धर्म इनके आधार पर बने हैं। विश्व में एक मात्र वैदिक सनातन धर्म ही रहा है।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
Disclaimer: The opinions expressed in this article are the author’s own and do not reflect the views of the संभाषण Team. The author also bears the responsibility for the image/images used.

About Author

एक विचार
एक विचार
विचारक
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

About Author

एक विचार
एक विचार
विचारक

कुछ लोकप्रिय लेख

कुछ रोचक लेख