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Thursday, March 23, 2023

सब कुछ बदल गया है..

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Satyendra Tiwari
Satyendra Tiwari
न कविवर हूँ न शायर हूँ। बस थोड़ा-बहुत लिखा करता हूँ। मन में आए भावों को, कभी गद्य तो कभी पद्य में व्यक्त किया करता हूँ।
पढने में समय: < 1 मिनट

आज सब कुछ बदल गया है।

सुख दुख में सब थे साथी

तब जमाना था वो कैसा

आज सब कुछ बदल गया है

सुरताल बदल गया है

संस्कार बदल गया है

इंसान का इंसान से सरोकार

बदल गया है

सुख दुख मे सब थे साथी

तब जमाना था वो कैसा

आज सब कुछ बदल गया है।

***

जगते सुबह में जब तो

भगवान को नमन करते

माता पिता के पैर छूते

आज फोन चेक करते

मेसेज है पढा करते

जीने का सबका अपना

अंदाज भी तो बदल गया है

सुख दुख में सब थे साथी

तब जमाना था वो कैसा

आज सब कुछ बदल गया है।

***

जब चार लोग बैठते, बात दुनियावी करते

सुख दुख की बात करते

उसके साथ हंसते रोते

जब डांका भी डले कहीं तो

सब मिलजुल कर सामना करते

आज जिस तरफ भी जाओ

जीवन अपने में सिमट गया है

सुख दुख में सब थे साथी

तब जमाना था वो कैसा

आज सब कुछ बदल गया है।

***

आज नेट की बीमारी

क्या गांव क्या शहर हो यारा

सबमें वही तासीर, सबमें वही खुमारी

घर के चार लोग भी अपने में

बातें भी अब नहीं करते

सबके पास फोन

सब नेट में डूबे हुए हैं

अपनो में सबंध था जो पहले

आज उसका मतलब बदल गया है

सुख दुख मे सब थे साथी

तब जमाना था वो कैसा

आज सब कुछ बदल गया है।

***

हम भी बदल गए हैं जानी

तुम भी बदल बदल गए हो यारा

आज इंसान का अपने में मसरूफियत ही ऐसी

फिर भी खुश नहीं है कोई

अमीर ग़र नहीं भी कोई

तो गरीब भी कहां कोई है

ख़यालात बदल गया है

आहार व्यवहार बदल गया है

सुख दुख मे सब थे साथी

तब जमाना था वो कैसा

आज सब कुछ बदल गया है।

***

 

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
Disclaimer: The opinions expressed in this article are the author’s own and do not reflect the views of the संभाषण Team. The author also bears the responsibility for the image/images used.

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न कविवर हूँ न शायर हूँ। बस थोड़ा-बहुत लिखा करता हूँ। मन में आए भावों को, कभी गद्य तो कभी पद्य में व्यक्त किया करता हूँ।

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अप्रांत आविष्ट
अप्रांत आविष्ट
3 years ago

निःसंदेह, उच्च कोटि के अवतारणा किए हैं आप, बड़े भाई। यद्यपि बदलना एक स्वतः स्फूर्त प्राकृतिक प्रक्रिया है, तथापि हमें ध्यान रखना अनिवार्य है – कहीं हमारे अंतर्मन, अन्तःकरण से संस्कार के स्रोत अन्तर्हित न हो जाए। वैसे मैं इतना नैराशवादी नहीं हूं, उम्मीद रखता हूं पुनः हम एक और गुणात्मक विवर्तन में अवस्थान करेंगे, जहां सौहार्द्य, संप्रीति, भरा मिलेगा।

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