गाड़ी मेरी धुआं छोड़ती है, छोड़ती थी जहर कभी, अब ओक्सिजन छोड़ती है

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Satyendra Tiwari
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न कविवर हूँ न शायर हूँ। बस थोड़ा-बहुत लिखा करता हूँ। मन में आए भावों को, कभी गद्य तो कभी पद्य में व्यक्त किया करता हूँ।

ये गाड़ी मेरी धुआं छोड़ती है

बड़ी जहरीली

बड़ी कहरीली छोड़ती है

प्रमाण पत्र लिया तब से

अब प्रदूषण नहीं

विभीषण बन गई है

छोड़ती थी जहर कभी

अब आक्सीजन छोड़ती है

ये गाड़ी मेरी धुंआ छोड़ती है

***

जबसे होश है मेरा

यह न मिलते किसी को देखा

साहब की मेहरबानी

वो कहां बोलेंगे

पर शुक्र है खुदा की

आत्मा भी उनकी

यही बोलती है

सर्टिफिकेट लिया तब से

शीतल पावन निर्मल छोड़ती है

ये गाड़ी मेरी धुंआ छोड़ती है

***

अब तो कमाई भी गई कोतवाल की

तन्ख्वाह से क्या होता है

ये तो है अब खाक की

आक्सीजन तो भरपूर मिल रही है

पर मायूसी गई नहीं हमारी

क्योंकि गढ़े पीछा

नहीं छोड़ रहे जान की

जान पे बन गई है

पर गाड़ी मेरी पर्यावरण संवर्धन की

जुबां बोल रही है

ये गाड़ी मेरी धुंआ छोड़ती है

***

आंखों में जलन सांसों में घुटन

होता कैंसर भी किसी को

दिल के दौरे भी पड़ते थे

अब तो सारा जहाँ सुरक्षित

जबसे सर्टिफिकेट लिया है

ये धुंआ रही कहाँ अब

बेहतर से भी अब तो ये

बेहतरीन इधर हुई है

छोड़ती थी जहर कभी

अब आक्सीजन छोड़ती है

ये गाड़ी मेरी धुआं छोड़ती है

***

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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न कविवर हूँ न शायर हूँ। बस थोड़ा-बहुत लिखा करता हूँ। मन में आए भावों को, कभी गद्य तो कभी पद्य में व्यक्त किया करता हूँ।

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दिलशान.
दिलशान.
5 years ago

बहुत सुंदर कविता..क्या प्रभावी तरीके से व्यंग्य किया है व्यवस्था पर..बधाई।

MITHLESHKUMAR MISHRA
MITHLESHKUMAR MISHRA
5 years ago

अति सुंदर रचना…☺👌👌👌

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न कविवर हूँ न शायर हूँ। बस थोड़ा-बहुत लिखा करता हूँ। मन में आए भावों को, कभी गद्य तो कभी पद्य में व्यक्त किया करता हूँ।

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