ये गाड़ी मेरी धुआं छोड़ती है
बड़ी जहरीली
बड़ी कहरीली छोड़ती है
प्रमाण पत्र लिया तब से
अब प्रदूषण नहीं
विभीषण बन गई है
छोड़ती थी जहर कभी
अब आक्सीजन छोड़ती है
ये गाड़ी मेरी धुंआ छोड़ती है
***
जबसे होश है मेरा
यह न मिलते किसी को देखा
साहब की मेहरबानी
वो कहां बोलेंगे
पर शुक्र है खुदा की
आत्मा भी उनकी
यही बोलती है
सर्टिफिकेट लिया तब से
शीतल पावन निर्मल छोड़ती है
ये गाड़ी मेरी धुंआ छोड़ती है
***
अब तो कमाई भी गई कोतवाल की
तन्ख्वाह से क्या होता है
ये तो है अब खाक की
आक्सीजन तो भरपूर मिल रही है
पर मायूसी गई नहीं हमारी
क्योंकि गढ़े पीछा
नहीं छोड़ रहे जान की
जान पे बन गई है
पर गाड़ी मेरी पर्यावरण संवर्धन की
जुबां बोल रही है
ये गाड़ी मेरी धुंआ छोड़ती है
***
आंखों में जलन सांसों में घुटन
होता कैंसर भी किसी को
दिल के दौरे भी पड़ते थे
अब तो सारा जहाँ सुरक्षित
जबसे सर्टिफिकेट लिया है
ये धुंआ रही कहाँ अब
बेहतर से भी अब तो ये
बेहतरीन इधर हुई है
छोड़ती थी जहर कभी
अब आक्सीजन छोड़ती है
ये गाड़ी मेरी धुआं छोड़ती है
***
बहुत सुंदर कविता..क्या प्रभावी तरीके से व्यंग्य किया है व्यवस्था पर..बधाई।
अति सुंदर रचना…☺👌👌👌