मातृभाषा का क्रंदन सुन, एक अबोध बालक आया ।
इस माँ के आंसू अपने नन्हे हाथों से पोछा ।।
अपने गुलाबी कोमल हाथों से माँ को उठाया ।
हिंदी माँ, मैंने तुझसे ही ‘माँ’ कहना सीखा ।
क ख ग घ के वर्ण माला से मैंने साक्षर होना सीखा ।।
सबको ज्ञान देने वाली, सबको शिक्षित करने वाली हो ।
अज्ञानी जन जब, आंग्ल भाषा के मोह बंधन से छूटेंगे ।।
तब वे तुम्हारी ही महिमा का गुणगान करेंगे ।
तब तुम्हे हम तुम्हारे सिंहासन पर बैठाएंगे ।
तेरी वंदना, तेरी जयकार, तुम्हारी पूजा करेंगे ।।
उल्लासित हिंदी भाषा ने, बालक को स्नेहिल प्यार दिया ।
आज सभी उस मातृभूमि व मातृभाषा का पूजन अभिनन्दन करते हैं ।।
आओ हम सब मिल कर एक नया संकल्प लें ।
जय हिंदी, जय भारत, जय गणनायक का उद्घोष करें ।।
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बहुत ही अच्छी कविता 🙏