भगवान धर्म की कृपा से युधिष्ठिर का जन्म हुआ था उसके बाद महाराजा पाण्डु ने पृथा (कुंती) से कहा कि क्षत्रिय बल से ही बड़ा कहा जाता है अतः ऐसे पुत्र का वरण करो जो बल में सबसे श्रेष्ठ हो। इसके बाद कुंती ने वायु देव का आह्वाहन किया। कुंती के आह्वाहन से मृग पर आरूढ़ हो वायु देव कुंती के पास आये और कुंती को भयंकर पराक्रमी महाबली भीम को पुत्र रूप में प्राप्त होने का वरदान दिया। भीम के जन्म लेते ही आकाश वाणी हुई थी “यह कुमार समस्त बलवानों में श्रेष्ठ है।”
महाभारत के अनुसार भीम के जन्म लेने के १०वें दिन कुंती उन्हें गोद में लेकर देवताओं की पूजा करने के लिए कुटिया से बाहर निकली ही थीं कि उनपर एक व्याघ्र ने हमला कर दिया हालांकि पाण्डु ने अपने बाणों से उसे तुरंत ही ढेर कर दिया लेकिन उसके विकट गर्जना से कुंती सहसा उछल पड़ीं थीं, उन्हें इस बात का भी ध्यान न रहा कि शिशु भीम गोद में हैं। भीम उछल कर सीधा पर्वतशिला पर गिरे लेकिन उनके गिरने से वह पत्थर की चट्टान चूर-चूर हो गई। जिसे देख महाराजा पाण्डु आश्चर्यचकित रह गए।
भीम ने ही दुर्योधन और दुःशासन सहित गांधारी के सौ पुत्रों को मारा था। उन्हीं के द्वारा दुर्योधन के वध के साथ महाभारत के युद्ध का अंत हुआ था। कहा जाता है कि जब भीम क्रोध में होते तब स्वयं देवराज इंद्र भी उन्हें युद्ध में परास्त नहीं कर सकते थे। भीमसेन को यह बात कि वह वायुपुत्र भी हैं और इस तरह हनुमान जी के भाई हैं, ज्ञात था। ‘महाभारत, वन पर्व, अध्याय १४६’ के अनुसार द्रौपदी द्वारा सौगंधिक पुष्प लाने के लिए कहे जाने पर जब भीम कदलीवन में गए तब वहां उनकी भेंट हनुमान जी से हुई थी। भीम ने अपना परिचय देते हुए हनुमान से उनका परिचय जानना चाहा लेकिन हनुमान जी बोले- भैया! मैं वानर हूँ। तुम्हें तुम्हारी इच्छा के अनुसार मार्ग नहीं दूंगा।
भीमसेन ने कहा : वानर! उठो और मुझे आगे जाने के लिये रास्ता दो। ऐसा होने पर तुम को मेरे हाथों से किसी प्रकार का कष्ट नहीं उठाना पड़ेगा।
हनुमान जी बोले : भाई! मैं रोग से कष्ट पा रहा हूँ। मुझ में उठने की शक्ति नहीं है। यदि तुम्हें जाना अवश्य है, तो मुझे लांघकर चले जाओ।
भीमसेन ने कहा : निर्गुण परमात्मा समस्त प्राणियों के शरीर में व्याप्त होकर स्थित हैं। वे ज्ञान से ही जानने जाते हैं। मै उनका अपमान या उल्लंघन नहीं करूंगा। यदि शास्त्रों के द्वारा मुझे उन भूतभावन भगवान के स्वरूप का ज्ञान न होता, तो मैं तुम्हीं को क्या इस पर्वत को भी उसी प्रकार लांघ जाता, जैसे हनुमान जी समुद्र को लांघ गये थे।
इस पर हनुमान जी बोले : नरश्रेष्ठ! मैं तुम से एक बात पूछता हूं, वह हनुमान कौन था? जो समुद्र को लांघ गया था। उसके विषय में यदि तुम कुछ कह सको तो कहो।
तब भीमसेन ने कहा : वानरप्रवर श्री हनुमान जी मेरे बड़े भाई हैं। वे अपने सद्गुणों के कारण सब के लिये प्रशंसनीय हैं। वे बुद्धि, बल, धैर्य एवं उत्साह से युक्त हैं।रामायण में उनकी बड़ी ख्याति है। वे वानरश्रेष्ठ हनुमान श्रीरामचन्द्र जी की पत्नी सीता जी की खोज करने के लिये सौ योजन विस्तृत समुद्र को एक ही छलांग में लांघ गये थे। वे महापराक्रमी वानरवीर मेरे भाई लगते हैं। मैं भी उन्हीं के समान तेजस्वी, बलवान और पराक्रमी हूँ तथा युद्ध में तुम्हें परास्त कर सकता हूँ।
हनुमान जी बोले : मुझ पर कृपा करो। बुढ़ापे के कारण मुझ में उठने की शक्ति नहीं रह गयी है। इसलिये मेरे उपर दया करके इस पूंछ को हटा दो और निकल जाओ। भीमसेन ने काफी प्रयत्न किया लेकिन पूंछ को हिला भी न सके।
फिर हनुमान जी के चरणों में प्रणाम करके हाथ जोड़े हुए खड़े होकर बोले : कपिप्रवर! मैंने जो कठोर बातें कही हों, उन्हें क्षमा कीजिये और मुझ पर प्रसन्न होइये। आप कोई सिद्ध हैं या देवता? गन्धर्व हैं या गुह्यक? मैं परिचय जानने की इच्छा से पूछ रहा हूँ।
हनुमान जी अपना परिचय दिया, बोले :
अहं केसरीणः क्षेत्रे वायुना जगदायुषा ।
जातः कमलपत्राक्ष हनुमान् नाम वानरः ॥
हे कमलनयन भीम ! मैं वानरश्रेष्ठ केसरी के क्षेत्र में जगत के प्राण स्वरूप वायुदेव से उत्पन्न हुआ हूँ। मेरा नाम हनुमान वानर है।
🙏जय श्री कृष्णा।बहुत-बहुत अभिनन्दन ! जय संहिता महाभारत से मुख्य-मुख्य प्रसङ्ग का प्रसार नित्यवृद्धि को प्राप्त होता रहें।