एक सिद्ध महान् संत समुद्र तट पर टहल रहे थे। समुद्र के तट पर एक बच्चे को रोते हुए देखकर पास आकर प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर पूछने लगे “बेटा आप क्यूँ रो रहे हो?”
बालक ने कहा – “ये जो मेरे हाथ में प्याला है मैं उसमें समुद्र भरना चाहता हूँ, पर ये मेरे प्याले में समाता ही नहीं।”
ये बात सुन के संत अवासद में चले गये और रोने लगे।
बच्चे ने कहा – “आप भी मेरी तरह रोने लगे पर आपका प्याला कहाँ है?”
संत ने जवाब दिया – “बालक आप छोटे से प्याले में समुद्र भरना चाहते हो, मैं अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार की जानकारी भरना चाहता हूँ, आज आपको देखकर पता चला की समुद्र प्याले में नहीं समा सकता।”
ये बोल सुन के बच्चे ने प्याले को जोर से समुद्र में फेंक दिया और बोला – “सागर अगर मेरे प्याले में नहीं समा सकता तो मेरा प्याला तो इसमें में समा सकता है।”
संत बच्चे के पैरों में गिर पड़े और बोले – “बेटा कितनी महान् बात कही आपने जो बड़े से बड़ा ज्ञानी भी नहीं बता सकता।
तभी तो कहते हैं बच्चो के मुँख में सरस्वती का वास होता है।
हे परमात्मा! आपका ज्ञान सरोवर तो मुझ में नहीं समा सकता पर हम तो आप में लीन हो सकते हैं।