प्रणव, गायत्री आदि में स्त्रियों का अधिकार

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अर्थ को देखते हुए गायत्री आदि मंत्रों, प्रणव (ॐ) के लिए यह फैलाया जाता है कि यह भगवान की स्तुति हैं अतः किसी को इनके जप में मनाही कैसे हो सकती है?

ऐसे वक्तव्य वही दे सकता है जिसका मंत्रों के विषय में ज्ञान शून्य हो। किन्तु हमारे यहां तो यह प्रथा ही है कि कोई कुछ जाने या न जाने धर्म के विषय में स्वयं को पारंगत समझता ही है।

सामान्य रूप से दो-चार-दस बार बोलने में कोई समस्या नहीं है। किन्तु जप करना हो तो गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है ठीक उसी प्रकार जैसे औषधि ग्रहण करने के लिए योग्य चिकित्सक का मार्गदर्शन आवश्यक है।

आज पढ़े लिखे लोग प्रश्न करते हैं कि ऐसा कहाँ लिखा हुआ है?

विगत दिनों स्वामी श्रीराघवाचार्यजी महाराज ने इस विषय पर अपना पक्ष रखा। विरोध में कितने ही तथाकथित धर्मज्ञ खड़े हो गए कि राघवाचार्यजी प्रमाण दें। सन्त श्रद्धावान भक्तों को शास्त्रोक्त विधि और निषेध का ज्ञान दिया करते हैं, मानना न मानना भक्तों के विवेक और श्रद्धा पर निर्भर करता है। गुरु और सन्त का कार्य ही है मार्ग दिखाना उस मार्ग पर चलने का कार्य शिष्य का ही है।

अथर्ववेदीय नृसिंहपूर्वतापनीयोपनिषद् १.३ का मंत्र है:

सावित्रीं प्रणवं यजुर्लक्ष्मीं स्त्रीशूद्राय नेच्छन्ति,
सावित्रीं लक्ष्मीं यजुः प्रणवं यदि जानीयात् स्त्री शूद्रः
स मृतोऽधो गच्छति तस्मात्सर्वदा नाचष्टे यद्याचष्टे स
आचार्यस्तेनैव स मृतोऽधो गच्छति ॥

अर्थात् गायत्री, प्रणव (ॐ), यजुर्वेद तथा लक्ष्मी गायत्री जो यजुर्वेद में है वे शूद्र एवं स्त्री के अधिकार में नहीं हैं। सम्पूर्ण वेद प्रणवादि हैं अर्थात् इनके आदि में प्रणव है। यदि इन को जानने की चेष्टा स्त्री शूद्रादि करेंगे अधोगति को प्राप्त होंगे अतएव कदापि स्त्रीशूद्रों को न दें। यदि कोई आचार्य विद्वान देता तो वह भी अधोगति को प्राप्त होगा।

नृसिंहपूर्वतापनीयोपनिषद् १.३
गीताप्रेस से प्रकाशित नृसिंहपूर्वतापनीयोपनिषद् १.३ का अर्थ

घोर नारीवादी लोग तर्क देते हैं कि जब वेदों में अपाला, घोषा, लोपामुद्रा, मैत्रेयी आदि जैसी ऋषिकाएँ हैं तब स्त्रियों का अधिकार वेदों में क्यों नहीं है? इसका सामान्य उत्तर यह है कि इन्हें अपवाद समझना चाहिए। ये सामान्य नारियाँ नहीं हैं ठीक उसी प्रकार जैसे ऋषि सामान्य नर नहीं है। संसार की सृष्टि ही ऋषि प्राण से हुई है।

वेद मंत्रों के दो अर्थ होते हैं – एक शाब्दिक और दूसरा स्वरित। गायत्री, मृत्युंजय आदि जैसे मंत्र तो महामंत्र हैं। इनका शाब्दिक अर्थ तो एक स्तुति या प्रार्थना जैसा ही है किन्तु स्वरित रूप में इसमें अपार ऊर्जा है जो सबके लिए नहीं है। यहां यह भी जानने वाली बात है कि मंत्रों को बोलना और उनका जप – दोनों अलग–अलग बातें हैं।

प्रणव, गायत्री, मृत्युंजय आदि मंत्र सबके लिए जप योग्य नहीं होते। महिलाओं को तो विशेष रूप से इसका ध्यान रखना चाहिए। एक बार लक्ष-चण्डी यज्ञ के समय लखनऊ प्रवास पर करपात्रीजी महाराज के गुरु ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वतीजी महाराज से एक वृद्धा मिलने पहुँची। दो-चार लोग साथ में थे। उन लोगों ने बताया कि माताजी बड़ी भक्ता हैं। दिन भर भजन-पूजन में ही रहती हैं। किन्तु इनके दो पुत्र युवावस्था में ही चल बसे।

स्वामीजी ने पूछा – ॐकार का जप करती हो क्या? वृद्धा ने कहा – महाराज! वही तो हमारा आधार है। दिन भर जप किया करती हूँ।

स्वामीजी ने कहा – आपने संसार को तो जप डाला, अब न छोड़ना। ॐकार जप से लगाव वाली सभी चीजें नष्ट हो जाती हैं, यही ॐकार का फल है। या तो कहीं प्रेम न करो और यदि प्रेम करोगे तो वह प्रेमास्पद पदार्थ ही ॐकार के प्रभाव से नष्ट हो जाएगा। इसीलिए गृहस्थों को ॐकार के जप का अधिकार नहीं है। यह भगवान से तो मिला देगा किन्तु पहले सभी मोह-माया को नष्ट कर देगा। स्त्रियों को मंत्र से पूर्व भी ॐकार का जप नहीं करना चाहिए, श्री लगाया जाता है। भगवान शंकर ने पार्वतीजी को उपदेश करते हुए कहा है कि ॐकार सहित मंत्र स्त्रियों के लिए विष के समान है। (यह कथा आप ‘श्रीशंकराचार्य उपदेशामृत’ पुस्तक में पढ़ सकते हैं)

स्त्रियों की ही क्या बात हो मेरे स्वयं का अनुभव है कि बिना योग्य के मार्गदर्शन के पुरुषों को भी किसी मंत्र का जप नहीं करना चाहिए। यहीं इसी एक्स के मंच चार-पाँच या उससे अधिक बार ऐसा हुआ है कि किसी मित्र द्वारा बताया गया कि दिन भर बेचैनी रहने लगी है और किसी कार्य में मन केंद्रित नहीं रहता आदि। हमारे प्रश्न पर कि ‘किसी मंत्र का जप प्रारम्भ किया है क्या? उत्तर मिला- हाँ। सुझाया कि कुछ दिन बंद करके देखिए। बंद करते ही सब सामान्य हो गया। मंत्र औषधि के समान होते हैं। योग्य के मार्गदर्शन में वे तारक हैं तो बिना मार्गदर्शन के मारक भी हो सकते हैं।

अपने से जप करना ही है तो भगवान के नाम का जप कीजिए, हरे राम, राम-राम, हरे कृष्ण, नमः शिवाय् आदि अनेक जप में जिनमें सभी का अधिकार है।

एवं वरेण रामस्य रामा नार्यत्र कथ्यते।
तासामपि मनुश्चायं स्मृतो रामेति द्व्यक्षरः॥
नान्यो मन्त्रोऽस्ति नारीणां शूद्राणां चापि भो द्विज।
सर्वेभ्यो मन्त्रवर्येभ्यो रामस्यायं मनुर्वरः॥

– श्रीमदानन्दरामायण मनोहरकाण्ड द्वादश सर्ग ७२, ७३

अर्थात् भगवान श्रीराम के वरदान के कारण ही स्त्रियाँ ‘रामा’ कहलाती हैं उन लोगों के लिए भी ‘राम’ यह दो अक्षरों का मंत्र बतलाया गया है। स्त्रियों और शूद्रों के लिए इस के अतिरिक्त और कोई मंत्र नहीं है। सभी मंत्रों में यह राममंत्र सर्व श्रेष्ठ है।

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