महाभारत सनातन धर्म में एक अत्यंत आदरणीय और महान ग्रंथ है, अत्यंत अमूल्य और रत्नों का भंडार है। महाभारत में स्वयं वेदव्यास जी कहते हैं कि ‘इस ग्रंथ में मैंने वेदों के रहस्य और विस्तार, उपनिषदों का सम्पूर्ण सार, इतिहास रूपी पुराणों के आशय, ग्रह-नक्षत्र आदि के परिमाण, न्याय, दर्शन, शिक्षा, चिकित्सा, दान, तीर्थों, देशों, नदियों, पर्वतों, वनों तथा समुद्रों का भी वर्णन किया है।’
अतः महाभारत गुढ़ार्थमय ज्ञान-विज्ञान शास्त्र है, राजनीतिक दर्शन है, निष्काम कर्मयोग दर्शन है, भक्ति शास्त्र है, आध्यात्म शास्त्र है, सनातन धर्म का इतिहास है, सर्वार्थसाधक तथा सर्वशास्त्रसंग्रह है, वास्तव में महाभारत सनातन धर्म का ‘धर्मग्रंथ’ है।
महाभारत में कहा गया है कि सर्वप्रथम भगवान वेदव्यास ने 60 लाख श्लोकों की एक महाभारत संहिता का निर्माण किया था जिसके चार संस्करण थे। इनमें से पहला 30 लाख श्लोकों का था जिसे नारद जी ने देवलोक में देवताओं को सुनाया, दूसरा 15 लाख श्लोकों का जिसे देवल और असित ऋषि ने पितृलोक में पितृगणों को सुनाया, तीसरा 14 लाख श्लोकों का था जिसे शुकदेव जी के द्वारा गंधर्वों, यक्षों आदि को सुनाया गया और चौथा शेष 1 लाख श्लोकों के संस्करण का प्रचार मनुष्य लोक में हुआ जिसका श्री वैशम्पायन जी के द्वारा जनमेजय तथा ऋषियों को श्रवण कराया गया। इसी एक लाख श्लोकों वाले ग्रंथ को आदि महाभारत माना जाता है।
कुछ लोगों का मानना है कि महाभारत के 3 स्वरूप हैं, ‘जय’, ‘भारत’ और ‘महाभारत’। जय 8 हज़ार श्लोक, भारत 24 हज़ार श्लोक और महाभारत इन्हीं में विविध उपाख्यान जोड़ कर 1 लाख श्लोकों का बना। लेकिन महाभारत के आदि पर्व में स्पष्ट कहा गया है कि भगवान वेदव्यास द्वारा इस लोक के लिए 1 लाख श्लोकों का ही निर्माण हुआ है।
इदं शतसहस्रं हि श्लोकानां पुण्यकर्मणाम् ।
सत्यवत्यात्मजेनेह व्याख्यातममितौजसा ॥
– महाभारत, आदिपर्व 62/14
अर्थात, असीम प्रभावशाली सत्यवतीनन्दन व्यास जी ने पुण्यात्मा पाण्डवों की कथा एक लाख श्लोकों में कही है।
महाभारत में गीता के 13 स्वरूपों के दर्शन होते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता तो स्वयं में ही चारों वेदों का सार है, ब्रह्मविद्या है। इसके अतिरिक्त:
1. षड्ज गीता
2. पिंगला गीता
3. शम्पाक गीता
4. मंकि गीता
5. आजगर गीता
6. हारीत गीता
7. वृत्र गीता
8. पुत्र गीता
9. काम गीता
10. हंस गीता
11. अष्टावक्र गीता
12. नारद गीता और
13. उत्तर गीता जिसे अनुगीता भी कहते हैं।
यह सभी महाभारत में ही मिलते हैं। महाभारत विशेष रूप से कलियुग के लिए एक महान ग्रंथ है, संसार के द्वंद-छद्म से लड़ने की कला मानवीय रूप से सिखाता है।
धर्मराज युधिष्ठिर, धर्मराज हैं लेकिन हैं तो मानव ही, सो गलती भी करते हैं और उसका परिणाम भी उन्हें भुगतना पड़ता है। श्रीकृष्ण स्वयं विष्णु के अवतार हैं, यदि वह चाहें तो महाभारत का युद्ध ही न हो लेकिन मानों जैसे महाभारत जीवन की कहानी हो, प्रभु साथ तो रहते हैं लेकिन केवल मार्गदर्शक का काम करते हैं, कौरव और पाण्डव गलतियां करते हैं और उसका दुष्परिणाम भी भुगतते हैं, इन सब के बीच भगवान धर्म के पक्ष में तटस्थ रूप से ही आगे का रास्ता सुझाते हैं। यह दिखाता है कि आज भी धर्म के रूप में भगवान हमारे साथ हैं लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि हम कौरवों की तरह गलतियों पर गलतियां ही करते हैं या पांडवों की तरह गलतियों से सबक लेते हैं और धर्म के पक्ष में रहते हैं।
आज कई लोगों ने प्रश्न करते हैं कि “कहा जाता है कि महाभारत को घर में नहीं रखना चाहिए”। फिर पढ़ें कैसे?
असल में गुलामी काल से ही वैदिक सनातन धर्म के बारे में लोग क्या पढ़ें और जाने, यह चंद राजनैतिक पंडितों द्वारा निर्धारित किया जाता रहा है।
सर्व प्रथम मैक्समूलर, ग्रिफ्फिथ, ब्लूमफील्ड आदि ने वेदों का ऐसा अनुवाद किया कि लोग भ्रमित हो गए और अधिकांश लोगों का वेदों पर से विश्वास ही उठ गया। आज भी सामान्य घरों में वेद नहीं दिखते। इन्होंने भारत में क्या पढ़ाया जाए इस तक को मैकाले शिक्षा नीति के द्वारा निर्धारित किया जो आज भी कुछ मामूली परिवर्तनों के साथ उसी रूप में है।
जब धर्म ग्रंथ पर बात आई तब गीता को आगे किया गया। वास्तव में गीता चारों वेदों का सार है लेकिन इसे समझना सबके बस की बात नहीं है, यह उसी प्रकार से है जैसे दूसरी कक्षा के बच्चे को 10वीं की पुस्तक दे दी जाए, क्या समझेगा वो?
लगभग सभी विद्वानों ने गीता पर भाष्य भी लिखा लेकिन चूंकि महाभारत में सभी वेद, शास्त्र, पुराण, रामायण आदि की कथाएँ आती हैं और मात्र एक इसी ग्रंथ को पढ़ने से सभी की जानकारियां और शिक्षाएं मिल जाती हैं फिर तो यह बड़ा प्रश्न था कि इसे कैसे रोका जाए?
उसके बाद ऐसी भ्रांतियां फैलाई गईं कि “महाभारत को घर में नहीं रखना चाहिए द्वेष बढ़ता है”।
अब जब घर में होंगी ही नहीं तो पढ़ेगा कौन? दूसरी समझने वाली बात है कि लगभग सभी वैदिक शास्त्रों के शामिल होने वाला ग्रंथ, गीता के एक दो नहीं बल्कि 13 स्वरूपों के शामिल होने वाले दिव्य ग्रंथ से बड़ा पवित्र और हर दृष्टि से लाभकारी ग्रंथ और क्या हो सकता है?
महाभारत ग्रंथ की दिव्यता बताने के लिए खूब आभार।