निर्धन तेरी दयनीय दशा पर क्या किसी को भी तरस ना आया,
भूखे बच्चों की ललचायी दृष्टि को देख ह्रदय ना तेरा पिघला,
उनके करुण क्रंदन के तीव्र स्वरों को ना सुनकर अमीर हुआ है बहरा।
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इस भूखे पेट से तू क्या देश सेवा कर सकेगा,
एक रोटी की आस में क्या तू अपना जीवन व्यर्थ करेगा,
अपनी मरणासन्न पत्नी के जीवन को क्या तू संवार सकेगा,
निर्धनता के बोझ से क्या तू कभी अपने को सम्हाल सकेगा?
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इन अमीरों की दुनिया में तेरा अस्तित्व क्या है,
तेरी दशा तो इन अमीरों के श्वान से भी दयनीय है,
अरे मूर्ख तू इक रोटी को तरसता है पर इन श्वानों को दूध नहीं भाता है।
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तेरी थाली छीनकर ये श्वानों का पेट हैं भरते,
रे निर्धन! तेरी जर्जर काया इनके खिलौने हैं बनते ॥
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Truth of life.