एक समय चित्ररथ नामक एक राजा थे।
राजा चित्ररथ परम शिव भक्त थे। उन्होंने एक अद्भुत, सुंदर बाग का निर्माण करवाया जिसमें अपनी पसंद से विभिन्न प्रकार के पुष्प लगवाए। चित्ररथ उस बाग को स्वयं अपनी निगरानी में रखते, बाग की सेवा भी करते।
चित्ररथ अपने आराध्य भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना के लिए उसी बाग से स्वयं प्रतिदिन पुष्प चुनते और उन पुष्पों को शिवजी को समर्पित करते।
एक दिन पुष्पदंत नामक एक गन्धर्व राजा के उद्यान के पास से होकर निकला। उद्यान की सुंदरता देखकर पुष्पदंत मंत्र मुग्ध रह गया। उसने ऐसा सुंदर बाग पृथ्वी पर कहीं न देखा था। उद्यान की सुंदरता ने उसे आकृष्ट कर लिया और उसकी मति भी हर ली।
फूलों की सुंदरता पर मोहित पुष्पदंत ने इस बात का ध्यान भी नहीं रखा कि इसी बाग के पुष्पों से प्रति दिन राजा चित्ररथ शिव जी की पूजा करते हैं।
पुष्पदंत ने बाग के फूल चुरा लिए। अगले दिन सुबह राजा चित्ररथ नियमित क्रम में पूजा हेतु पुष्प लेने आए लेकिन उन्हें पुष्प प्राप्त नहीं हुए, पर यह तो आरम्भ मात्र था। बाग के सौंदर्य से मुग्ध पुष्पदंत प्रति दिन पुष्प की चोरी करने लगा।
इस रहस्य को सुलझाने के राजा के प्रत्येक प्रयास विफल रहे। पुष्पदंत गंधर्व था, इसलिए उसके पास लुप्त होने की शक्ति थी इसलिए राजा उसे पकड़ नहीं पाए। परेशान राजा के पास कोई रास्ता नहीं बचा था।
वह समझ गए कि पुष्पों की चोरी कोई मानवीय शक्ति नहीं कर रही इसलिए उसे पकड़ने के लिए शिव शक्ति का प्रयोग ही करना होगा। राजा चित्ररथ भगवान शिव को अर्पित पुष्प एवं विल्वपत्र बाग में इस तरह बिछा दिए कि वे आसानी से दिखाई ही न पड़े।
पुष्पदंत प्रति दिन की भांति उस दिन फिर से पुष्प चुराने के लिए आया। फूलों की सुगंध में मोहित पुष्पदंत को ध्यान ही नहीं रहा उसने भूल से शिवजी के चढ़े विल्वपत्रों और पुष्पों को अपने पैरों से कुचल दिया।
पुष्पदंत ने जैसे ही फूलों पर पांव रखे उसकी दिव्य शक्तियां समाप्त हो गईं। पुष्पदंत स्वयं भी शिव भक्त था उसे अपनी गलती का बोध हुआ। उसने शिव जी से क्षमा मांगते हुए उन्हें प्रसन्न करने के लिए एक परम दिव्य, मनोहारी स्तोत्र की रचना की।
अपने भक्त की कातर, अनूठी, अतुलनीय और मनोहारी प्रार्थना (स्तोत्र) पर भोले नाथ ने उसके अपराध क्षमा कर दिए।
शिव जी ने प्रसन्न होकर पुष्पदंत के दिव्य स्वरूप को उसे पुनः प्रदान किया और उसे शिवलोक में दिव्य स्थान प्राप्त हुआ।
पुष्पदंत ने शिवजी के दिव्य स्वरूप, उनकी सादगी और दयालुता की महिमा गाते हुए ४३ छंदों के अनूठे “श्री शिव महिम्न स्तोत्रम्” की रचना की थी। यह शिव भक्तों का एक प्रिय स्तोत्र है।
यदि कभी किसी से भूल वश कोई शिव द्रोह हो जाए या कहीं कानों में शिव निंदा पड़ जाए तो इस स्तोत्र का पाठ करने या इसे सुनने से व्यक्ति दोष मुक्त होकर शिव जी का अत्यंत प्रिय हो जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से शिव जी प्रसन्न होते हैं।
श्री पुष्पदन्त-मुख-पंकज-निर्गतेन।
स्तोत्रेण किल्बिष-हरेण हर-प्रियेण।।
कण्ठस्थितेन पठितेन समाहितेन।
सुप्रीणितो भवति भूतपतिर्महेशः।। ४३।। – शिवमहिम्न स्तोत्र
भावार्थ: पुष्पदंत के कमलरूपी मुख से उदित, पाप का नाश करनेवाली, भगवान शंकर की अतिप्रिय यह स्तुति का जो पठन करेगा, गान करेगा या उसे सिर्फ अपने स्थान में रखेगा, तो भोलेनाथ शिव उन पर अवश्य प्रसन्न होंगे।