सनातन धर्म में देवाधिदेव महादेव को सभी सिद्धियों और विज्ञान को उत्पन्न करने वाली ईश्वरीय सत्ता के रुप में पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि शिव जी ने महाशक्ति माँ जगदंबा पार्वती को सभी गुप्त सिद्धियों का ज्ञान दिया था। इन वैज्ञानिक और सिद्ध गुप्त ज्ञान में स्वरोदय विज्ञान को सबसे महत्वपूर्ण विज्ञान का दर्जा दिया गया है।
स्वरोदय विज्ञान के अनुसार शिव ही हमारी सांसो को नियंत्रित कर हमारे प्राणों को संचालित कर हमारी जीवनी शक्ति को बढ़ाते हैं। हम जब सांस लेते हैं तो हमारी सांसो की उर्जा से ‘सो’ की आवाज निकलती हैं और जब हम सांस छोड़ते हैं तो ‘हं’ की आवाज़ निकलती है।
अर्थात हमारे एक बार सांस लेने में ‘सो हं’ की आवाज़ निकलती है। यही ‘सो हं’ ‘शिवो हं’ के रुप में भगवान शिव के तत्व से जीव को जोड़ता है।
स्वरोदय विज्ञान के अनुसार हमारे प्राणों को ‘हंस’ कहा गया है जो हमारी सांसो की आने जाने की प्रक्रिया का ही एक नाम है। जब हम सांसों को छोड़ते हैं तो हं की आवाज़ आती है और जब सांसों को लेते हैं तो स: की आवाज़ आती है। इन दोनों प्रक्रिया के पूरे होने पर हंस की आवाज़ आती है।
स्वरोदय विज्ञान के प्रवर्तक भगवान शिव स्वयं इस श्लोक से माता पार्वती को समझा रहे हैं:
अथ स्वरं प्रवक्ष्यामि शरीरस्थस्वरोदयम् ।
हंसचारस्वरूपेण भवेज्ज्ञानं त्रिकालजम ।।
अन्वयः अथ शरीरस्थ स्वरोदयं स्वरं प्रलक्ष्यामिं ।
हंसचाररुपेण त्रिकालजं ज्ञानं भवेत ।
अर्थात: हे देवि! इसके बाद मैं अब तुम्हें शरीर में स्थित स्वरोदय को व्यक्त करने वाले स्वर के विषय में बताता हूँ। यह स्वर “हंस” रूप है अर्थात जब साँस बाहर निकलती है तो ‘हं’ की ध्वनि होती है और जब साँस अन्दर जाती है तो ‘सः (सो)’ की ध्वनि होती है।
स्वरोदय विज्ञान के मुताबिक हमारे शरीर का केंद्र नाभि है और इससे होकर पूरे शरीर में 24 नाड़ियां निकलती हैं जिनमें दस नाड़ियों से हमारे शरीर में दस प्राण (पांच महाप्राण और पांच सहायक प्राण) उर्जा बहती है। इन दस नाड़ियों में भी तीन सबसे महत्वपूर्ण नाड़ियां हैं जिन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना कहा जाता है। हमारे शरीर की उर्जा का ज्यादातर नियंत्रण इड़ा और पिंगला नाड़ियों के द्वारा होता है जबकि शिव स्वरुप सुषुम्ना नाड़ी को तब सक्रिय किया जाता है जब मोक्ष प्राप्त करने की साधना की जाती है। इन्ही नाड़ियों से बहने वाली प्राण उर्जा को जो भी साध (नियंत्रित कर) लेता है वो कई प्रकार की बीमारियों से खुद ही इलाज कर लेता है। चंद्र नाड़ी अर्थात इड़ा नाड़ी जहां शीत प्रकृति की होती है वहीं पिंगला नाड़ी को सूर्य नाड़ी अर्थात गर्म नाड़ी भी कहा जाता है। इन नाड़ियों के यथावत संचालन के जरिए आयुर्वेद में वैद्य कई प्रकार के रोगों का पता लगा लेते हैं।
वर्तमान में कोरोना वायरस के संक्रमण ने पूरे विश्व को त्रस्त कर दिया है। ऐसे में डॉक्टर्स भी कह रहे हैं कि अपने स्वास्थ्य की देखभाल के लिए अपने हाथों और अपने आस पास स्वक्षता का ध्यान रखें और अपने शरीर को मजबूत और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने पर ध्यान दें। अपने फेफड़ों की शक्ति को बढ़ाने के लिए प्राणायाम करें। ऐसे में अगर स्वरोदय विज्ञान को ठीक से जान कर प्राणायाम किया जाए तो संभव है कि हम अपनी इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) और फेफड़ों की शक्ति को बढ़ा सकें।