हम सिर्फ़ वही बदल सकते है जो बदलना चाहते है। मन, वाक, संकल्प से परिवर्तन निःसंदेह होता है। बस हमें ऊर्जा के स्वरूप को समझना है। चमत्कार की अभिलाषा जो प्रतिक्षण हमारे मन में तरंग करती है उस पर विराम लगाना है। जब हमारे होने पर प्रश्नचिन्ह नहीं है उसके होने पर प्रश्न क्यू खड़ा करते हो?
दुनिया धर्म से नहीं चलती है न व्यक्ति विज्ञान से आवेशित हो कर जीवन जीता है यह अलग बात है कि विज्ञान ने कुछ उपकरण बनाएं है जो हमारी इंद्रियों की क्षमता को बढ़ाता है जीवन को भौतिक इकाई मानकर जीने से नीरसता का विस्तार होगा।
धर्म और विज्ञान दोनों का प्रयोग सही नहीं कर पा रहें है बस सब उल्टा पुल्टा कर दे रहे विवाद और जटिलता बढ़ गई है जीवन की वह उमंग कही छूट जा रही है। तो आप जीवन को पहचानिये जिससे गति और निर्वाह बना रहे।