बौद्ध बनाम नवबौद्ध

spot_img

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

महात्मा बुद्ध द्वारा सनातन धर्म में शुरू किया गया सुधार तब सामाजिक और आत्मिक स्तर पर ही था लेकिन पतित और भटके हुए स्वार्थी लोगों ने सुधार को संस्था बना कर देश के विरुद्ध गुप्तचरी शुरू की, यही अंदर के द्रोही बाहर के कबीलों को भारत में सफलता मिलने का कारण बने।

गौतमबुद्ध के सुधार आंदोलन ने बौद्ध धर्म का आकार लेकर सामाजिक तनाव में वृद्धि की। यदि गौतम बुद्ध जीवित होते तो निश्चित ही इस तरह के धर्म संगठन को स्वीकार नहीं करते। बौद्ध धर्म के कारण समाज में समय – समय पर टकराव होता रहा है जिसे सम्राट चंद्रगुप्त, पुष्यमित्र शुंग, गौतमीपुत्र शातकर्णी आदि के समय में देखा जा सकता है, बौद्ध संगठन के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही भी इन्ही के द्वारा की गयी।

नवबौद्ध की शुरूआत भारत में डॉ अंबेडकर के बौद्ध बनने से हुई। यहाँ से बौद्ध बने लोगों का वास्तविक बौद्ध धर्म से कोई सरोकार न होकर एक राजनीतिक ईकाई के रूप में हो गया। अब नये अनुयायी बीमटा कहलाये। इन्हें ज्ञान से ज्यादा हिन्दू द्रोह था क्योंकि नव बौद्ध असुतुष्ट वर्ग से थे जो सामाजिक स्थिति को उपर उठाने के लिए इकट्ठा हुये। जिन्हें धर्म, संस्कृति से कही ज्यादा नौकरी और सत्ता की ललक है।

“धम्मं शरणं गच्छामि” की जगह “जय भीम” हो गया अपने को राजनीतिक शुर्ख करने के लिए जय भीम के साथ ही “जय मीम” भी हो गया।

इनकी खोखली राजनीतिक इच्छा इन्हें सनातन हिन्दुओं से अपने को दूर करके मुस्लिम और ईसाइयों के करीब खींच करके खड़ा कर रही है। नवबौद्ध में ज्यादातर लोग संकुचित मानसिकता से ग्रसित हैं जो डॉ अंबेडकर को महात्मा बुद्ध की तरह भगवान मानने लगे हैं साथ ही संविधान को धार्मिक पुस्तक कहते हैं। डॉ अंबेडकर ने संविधान की रचना की यह उतना ही सत्य है जितना कि नवबौद्ध धर्म।

बौद्ध के हीनयान, महायान सम्प्रदाय की तरह नवबौद्ध बामयान या बामसेफ आंदोलन चलाये हैं जो देश में विदेशी एजेंडे को लेकर चल रहा है। इसमें अंग्रेजों को लुटेरा न मानकर उद्धारक और ईश्वर माना जाता है। बामसेफी का एक मात्र उद्देश्य है सनातन हिन्दू धर्म का विरोध या दूसरी तरह से कहें तो ‘अपने ही जड़ों को खोदना’ इसके लिए यदि वह देश विरोध में परिणित हो जाता है तो भी उसे स्वीकार है।

सनातन धर्म में वर्णाश्रम व्यवस्था में शुद्र वर्ग के अंतर्गत अपने को दलित के रूप में अलग से चिन्हित करता है जो पहचान इन्हें अंग्रेजों ने दी थी तथा सत्ता के लिए राजनीतिक दलों ने उस पर मोहर लगा दी। नवबौद्धों में एक बड़ी खासियत है समाज और व्यक्ति के उत्थान की जगह उसका मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत आकांक्षा की पूर्ति है। ये अपने को अंबेडकरवादी भी कहते हैं और डॉ अंबेडकर की कही बात को सिर्फ उतना मानते हैं जितने से उनकी व्यक्तिगत आकांक्षाओं को लाभ मिले।


नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
Disclaimer: The opinions expressed in this article are the author’s own and do not reflect the views of the संभाषण Team. The author also bears the responsibility for the image/images used.

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

कुछ लोकप्रिय लेख

कुछ रोचक लेख