धार्मिक विद्वेष साम्प्रदायिकता कहलाती है।
सहनशीलता और समुदायिकता के अभाव से इसे और हवा मिलती है। प्राचीन भारत में देखेंगे तो हिन्दू और बौद्धों के बीच कुछ साम्प्रदायिक वारदातें मिल सकती हैं।
सांप्रदायिकता का विकास भारत में मुसलमानों के आक्रमण के साथ 712 ई. में मुहम्मद बिन कासिम के सिंध पर आक्रमण से शुरू हुआ। मुसलमानों के युद्ध में जीतने के फलस्वरूप सामूहिक कत्लेआम, आम शर्त होती थी। लेकिन भारत बहुत बड़ा देश था तो कितने हिन्दूओं का कत्ल किया जाए और कितने मंदिर तोड़े जाएं यह एक बड़ी समस्या मुसलमानों के सामने थी।
मुसलमानों के साम्प्रदायिक होने का कारण है काफिर शब्द, और तो और काफिर मुसलमान न बनने पर उससे जजिया (एक प्रकार का टैक्स) लिया जाय। जजिया देने वाले को जिम्मी कहा गया। शरीयत को आधार बना कर कोई उस धर्म को न माने तो टैक्स चुकाए, यह धार्मिक विधान कैसे हो सकता है? यदि यह धार्मिक विधान है तो मुस्लिम को धर्म कैसे कहा जा सकता है जो गैर मुस्लिम को बराबर नहीं मानता है?
एक और समस्या है कि काफिर को मुसलमान बनाओ, उन्हें अल्लाह की पुस्तक से परिचय और इल्म करा कर उन्हें मुस्लिम बनाकर जन्नत दिलाने का दावा करो। गौरतलब है कि इस्लाम धर्म से ज्यादा राजनैतिक संगठन है। कुरान और हदीस धार्मिक पुस्तक न होकर इनके राजनैतिक कानून की पुस्तक है जो धर्म परिवर्तन सिखाती हैं। अपने लोगों को जाहिल और बर्बर बनाती हैं। जिसका नवी तलवार लेकर कुरान का प्रचार करता है, तुम मेरा धर्म मानो नहीं तो कत्ल कर दिये जाओगे। यदि किसी को मुसलमान बनाने में मारे गये तो जन्नत और 72 हूर मिलेगी। यह वह कारण है जो मुसलमान आतंकी बन रहा है। कट्टरपंथी हो कर पूरे समाज को निगल रहा है। सामान्य मुसलमान की भावनाओं की कोई कद्र नहीं है, वह यदि धर्म की कमियों पर भी बोले तो मारा जाये।
मुसलमान धार्मिक कट्टरता मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाने और काफिर, जजिया, जिम्मी और ख़ुम्स (लूट का माल कितना नेता और कितना सैनिक को मिले बाकायदा शरीयत में लिखा है) मुसलमान एक लुटेरी कौम भी है। हिंदुओं से तीर्थयात्रा कर भी लेते थे। इन सब के बाबजूद वह गलती नहीं मानता है।
मुस्लिमों में हिन्दू संतो से प्रभावित सूफी संत थे जो ब्रह्मचर्य का पालन, योगाभ्यास करते थे, संगीत का अभ्यास करते थे। मुस्लिम लोगों को इंसान बनाने की राह चलाते थे। इनका भी राजनैतिक और आर्थिक प्रयोग हुआ जब यह नये मुस्लमान बनाने में असफल होने लगे तो इन्हें भी चुन – चुन कर विश्वभर में मारा गया।
ऐसे कुकृत्यों के बाद आप हिंदुओं से कैसे अपेक्षा करते हो कि वह मुस्लिमों को भाई मानें और साथ रहे? हिन्दू बस्ती में मुस्लिम बेखौफ रह सकता है जबकि मुस्लिम बस्ती में रहने को हिन्दू सोच भी नहीं सकता है।
मुसलमानों में एक और गुण है, वह हिन्दू की बेटी को साफ्ट टारगेट बना करा उसे प्रेम जाल में फसायेगा। बांग्लादेशी मुस्लिम लेखिका तस्लीमा नसरीन अपनी पुस्तक “लज्जा” में लिखती हैं कि “बाबरी ढांचा जब भारत में गिराया गया उसके फलस्वरूप बांग्लादेश में जो हिंदुओं पर अत्याचार हुये कितने मंदिर तोड़ दिए गये और हिन्दुओं का कत्ल किया गया।
एक वाकया बांग्लादेश के मैननपुर कस्बे का है, मिली जुली आबादी वाले मुहल्ले जहाँ मुस्लिम, हिंदुओं के घर जला रहे थे, मंदिर गिरा रहे थे, एक 13 साल की लड़की का रेप हुआ, रेपिस्टों में एक 70 साल का बूढ़ा भी था। वह छोटी बच्ची कहती है, चच्चा आप भी? आप तो छोड़ दीजिए आपके गोदी में बैठ के बड़ी हुई हूई हूं।
गांव के मुस्लिमों के निम्न तबके का मुस्लिम, लोभ या दबाब में कभी कन्वर्टेड हुआ था। जहाँ मुस्लिमों की संख्या कम है, वहां सेकुलर का दिखावा करता है। जब फसेगा तो संविधान से ऊपर कुरान हो जाती है। नारी अभी भी दोयम दर्जे की है, किसी युवा मुस्लिम महिला से पूछिए कि क्या बुर्का पसंद है? 50 साल से मुस्लिम आतंकवाद बम विस्फोट, गला काटना, अल्लाह हू अकबर बोल कर फिर भी उसे मुस्लिम आतंकवाद कहने में दिक्कत है। हिन्दूओं का इतिहास पढिये कितने बलात्कार, कितने मंदिर, कितने खून से लथपथ इस्लाम का चेहरा भारत में शाह हुआ है।
म्यांमार के धर्म गुरु विराथु ने कहा कि आप पागल कुत्ते के साथ नहीं सो सकते। वहाँ से मुस्लमानों को खदेड़ दिया गया। मुसलमान अल्लाह और मुल्लाह के इस्लाम में फस गया है। वह अमेरिका, इजरायल, चीन, ब्रिटेन के कार्यो का बदला अन्य देशों से ले रहा है। आपको अपना इतिहास याद रहना चाहिए किस तरह से विस्तार और दूसरे देशों पर अत्याचार किया है। समय चुन – चुन कर हिसाब करता है।
मुस्लिम 5 आया कि कुछ दिन में पचास। फिर दिक्कत शुरू करेगा। श्रीलंका में ईस्टर पर क्या हुआ। उदारता में अपने पाकिस्तान के शरणार्थियों को अपने यहाँ बसाया था और बदले में बम बज रहे हैं, बदला लेना है तो अमेरिका, ब्रिटेन, इजरायल और चीन से लो जिसने इस्लाम के चेहरे को शुर्ख कर दिया। जो प्रेम देगा उसका धन्यवाद बम से?
विश्व भर में फैला इस्लामी आतंकवाद क्या थोडा बहुत है? कितने लोग आतंकवाद से मर चुके है पता है? 1% से कम की बात होती तो मंदिर नहीं तोड़ी जाती। धर्म पर देश नहीं बटता। कोर्ट में जाइये और देखिये भागने वाली लड़की और लड़के का धर्म क्या है, 90% से ज्यादा लड़के मुसलमान निकलेंगे और 99% लड़की हिन्दू। अब प्रेम भी मुस्लिम लड़को में ज्यादा होता है क्या? वस्तु स्थिति का आकलन सही किया जाय। कुछ चीजें व्यक्ति घटित होने के बाद ही मानता है।
अब एक नई रवायत दिख रही है, मुस्लिम युवाओं में जो हिंसा को गलत मानते हैं वह प्री मुस्लिम ऐज में बढ़ रहे हैं। वह इस्लामिक मान्यताओं को नहीं मानते, उनका कहना है कि कुरान और अल्लाह के नाम पर विश्व में नफरत भरी जा रही है। उनके जैसों की कोई सुनवाई इस्लाम में नहीं है। इसलिए वह नास्तिक हो कर रहेंगे। एक नया संगठन इंटरनेट के माध्यम से बना कर अपने जैसे लोगों के पास आ रहे हैं।
मुसलमानों को लगता है कि विश्व उन्हें पृथक कर दिया है। लोग उनसे नफरत कर रहे हैं। यह स्थिति सांस्कृतिक प्रपंचना की है जिसने क्रुद्ध हो कर हिंसा का रास्ता अख्तियार किया है।
मुस्लिम अपने समाज पर ध्यान दे। अन्य मुस्लिम देशों की ओर देखें वह दूसरों के साथ किस तरह पेश आ रहे हैं तो मूल स्थिति का पता चल जायेगा। हिंसा ही एक मात्र रास्ता नहीं है, जिस पर वह चल रहा है। सांप्रदायिकता उसके अपने ही धर्म में अन्य मतावलंबियों के लिए है अन्य धर्म के लिए क्या कहा जाय। जंग, दहशत, खून खराबे जब मन हुआ जिहाद बोल कर लोगों को शरीयत का पाठ पढ़ाने चल दिये। यह मध्यकाल नहीं है, यह 21वीं सदी है। आज निर्णय सिर्फ बंदूक नहीं करेगी। निर्णय विज्ञान, शिक्षा और तकनीक से होगा। ये वाहयात की एक बानगी है। भारत सेकुलर देश इसलिए है कि हिन्दू 80 फीसदी है, जिस दिन संख्या 49 फीसदी हो गई उसी दिन यह भी दारुल हर्ब इस्लामिक स्टेट घोषित कर दिया जायेगा। सारे मनुष्य एक जैसे हैं तो यह मुसलमान कुरान का सहारा लेकर इतना बुरा कैसे हो गया? क्यों कश्मीर, बंगाल, असम और केरल में हिंसा होती है।
केरल का तो अरबीकरण हो गया है। सांस्कृतिक रूप से वहाँ का मुस्लिम अपने को अरब का प्रजाति मानता है। मुस्लिम साम्प्रदायिक सोच कट्टरपंथी नफरत से निकल कर प्रेम और अमन की संगत करें। गलत का विरोध शांतिपूर्वक भी किया जा सकता है।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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Bilkul thik lekh likhe hain.
bilkul , aalekh pasand aaya . islaami charampanthi aaj vishv ke liye badaa khataraa hein . isliye gair- muslimo ko in jihadiyon ke viruddh ek hona hogaa anyatha ye sampoorn prithvi ko rahane laayak nahi chhodenge. vigyaan me inka bharosa nahi ,ye bas vahi kabile vaali jindagi jaanate hein. inka na to vigyaan se vaasta hai aur na hi progress se.