नारी संस्कृति का आधार है, वह पुरुष को पशु से मनुष्य बना देती है। हे नारी! तुम ही श्रीराम का स्वभिमान थी और पाण्डवों की शान थी। भारत के ऋषियों को परम पद तक पहुँचाने में भी तुम्हारी महती भूमिका थी। आज वही नारी वाचाल हो गयी है। तब चरित्र उसका गहना था, अब आभूषणों ने उसका स्थान ले लिया है। नारी अपने चरित्र से रस्खलित हो गयी, प्रपंचशील जगत में वह भी प्रपंची बन गयी।
सुलोचना, उर्मिला, माण्डवी सा चरित्र अब करीना, कैटरीना बनने को कुलांचे भर रहा है। अपने बच्चों की पहली गुरु थी, यह बच्चा गद्दार कैसे बन गया? पुरुष निमित्त कर्ता है किंतु स्त्री घर है, संस्कार है, अभिमान है, कुल को तराने वाली है और वर्ण संकरता को रोकने वाली है।
स्त्री पुरुष बन रही है, उसके तरह आचरण, अनुकरण कर रही है तो वहीं पुरुष नपुंसक बनता जा रहा है। चीन में हुए एक रिसर्च में दावा किया गया है कि पत्नियां अपने पति को दवाओं के माध्यम से नपुंसक बना रही हैं जिससे उनके पति उनके नियंत्रण में रह सकें। भारत में भी यह काम पत्नियां मनोवैज्ञानिक तरीके से कर रही हैं। अब समस्या यह है कि पुरुष अपने खोते “पुरुषत्व” को कैसे बचाएं? पुरुष को मर्द कैसे बनायें? कितने पुरुष मर्दानगी शिफा खाना और आयुर्वेद में खोज रहे हैं।
पहले सम्बन्धों से सार पैदा किया जाता था, अब सम्बन्धों को चखा जा रहा है। पहले लड़कियां सुंदर भजन गाती थीं लेकिन अब ब्यूटीशियन के यहां जाना और हाँ, नाचती अच्छा है। तब वह अपने भोजन के स्वाद से पूरे परिवार को बांध देती थीं अब तो कहती हैं कि उन्हें खाना बनाना नहीं आता। नारी में 72 गुण कहे जाते हैं अब ना जाने कितने बचे हैं। नारी पुरुष बनने पर आमादा है, उसे अब बेटा कहलाना बहुत अच्छा लगता है।
गलती हो गयी न.. माता सीता, हाड़ा रानी, लक्ष्मी बाई, जीजाबाई और अहिल्याबाई सा आदर्श कोई नारी धारण नहीं करना चाहती है? सब कलियुगी नगरवधू को आदर्श मानती हैं।
वस्त्र का अर्थ है जो हमारे शरीर को ढंके और सुरक्षा दे। वस्त्र के कारण हमारे शरीर की सुरक्षा संकट में न पड़ जाए। स्वतंत्रता को स्वच्छंदता तक मॉडर्न बनाते – बनाते वह अपना शारीरिक शोषण करवा चुकी होती है। पहनावा संस्कृति का अंग है जैसे धोती का सम्बंध हिन्दू से, बुर्के का सम्बंध इस्लाम से, पगड़ी का सिख से या मुँह ढ़कने का विधान जैन से है।
तुम कहते हो कपड़े में क्या रखा है? यह वस्त्र जो आज हम पहनते हैं इसे हमारे पूर्वज हजारों वर्षों से पहनते आये हैं। अंडमान की एक जनजाति को कुछ वर्ष पूर्व कपड़े पहनाने का प्रयास किया गया। देखने को मिला कि इससे उनके शरीर पर फफोले पड़ गये क्योंकि उनकी प्रजाति आज तक वस्त्र नहीं पहनी थी।
तुम वस्त्र के प्रयोग में, नङ्गे होकर क्या प्रर्दशित करना चाहते हो? स्वतंत्रता और आधुनिकता का उदाहरण? याद रखना बहुत चीजों का सांकेतिक महत्व है जैसे तिरंगा भारत नहीं है किंतु वह भारत का संकेत करता है।
भारतीय संस्कृति क्यों पराजित हुई?
यदि हम विश्लेषण करें तो उसके पीछे का कारण हमारे घर की स्त्रियां रहीं। कैसे? इसको समझिये, हिब्रू प्राचीन भाषा थी जिसका अंत हो गया। 1947 में इजरायल बनने के बाद वहां की माताओं ने हिब्रू भाषा को जिंदा कर दिया। पुरुष अकेला होता है जबकि नारी परिवार है, वह अपने परिवार को जैसा चाहती है, बनाती है, चलाती है और नाम पुरुष का होता है। जैसे :
जो करें हरि करें कहत कबीर – कबीर।।
भारत की ‘मां’ जिस दिन ठान लेगी कि उसे सनातन संस्कृति को जिंदा करना है, वह उसे जिंदा कर देगी। पुरुष तो भगीरथ प्रयास वर्षों से कर रहा है लेकिन स्थिति वही ‘ढाक के तीन पात’ वाली है।
भारत की नारियों को आज अमेरिका – यूरो संस्कृति भा रही है, वह उसी को प्रश्रय दे रही हैं। समाज में योग्य से ज्यादा धन की पूजा होने लगी है। धन हजार अवगुणों को दबा देता है, धनहीन अकेला ऐसा अवगुण है जो हजार अवगुणों पर भारी हो जाता है।
समाज बहुत तेजी से चाकर बनने की ओर बढ़ रहा है। व्यवस्थित समाज का स्थान अब भागम-भाग वाले समाज ने ले लिया है। शरीर के सुख की प्रधानता में अन्य चीजें गौण हो चुकी हैं।
हमनें अनेक उदाहरण देखें जब माताओं ने अपने बच्चों को शेर बनाया और उनका अर्पण देशवेदी पर कर दिया। भरत, राणा, शिवाजी, भगत, चंद्रशेखर आजाद, आदि की माताओं ने यही किया। पन्ना धाय, जीजाबाई, कुंती माता आदि के उदाहरण हमारे सन्मुख ही हैं।
स्त्रियों में सामाजिक, नैतिक और धार्मिक मूल्य का क्षरण हो गया है। दूर तक स्वयं का देहसुख ही रह गया है। सन्तान पैदा करने, उसके पालन और उसे आकर देने की तकलीफ से वह छुटकारा ले रही है। वह समाज में पुरुषों द्वारा की गयी प्रताणना का बदला घर के पुरुष से ले रही है।
भारतीय सभ्यता की सबसे मजबूत कड़ी ‘परिवार’ अब बोझ बन गया। सयुक्त परिवार को न्यूक्लियर परिवार से रिप्लेस कर दिया गया। अब सिर्फ मैं और मेरा पति है। वही टूटन बढ़ते – बढ़ते पति – पत्नी के बीच दरार भी बन गयी। परिवार में कलह है, बच्चें संस्कार पायें भी तो किससे पायें?
ब्रेस्ट, फीडिंग से फीगर खराब हो जाता है बच्चा थोड़ा बड़ा हो तो इसे बोर्डिंग में डाल देंगे, 3 साल में प्ले स्कूल में डालकर अपने उत्तरदायित्व से बचना है। मां की कहानी और लोरी की जगह बच्चे मोबाइल के सहारे ही अभिमन्यु बन रहे हैं।
नारियों से ही सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग है। नैतिक अनुशासन और बच्चे में चरित्र की आचार्य माता हैं। किंतु माता क्रोधमयी हो चुकी है, वह अपने बच्चे का पालन क्रोध के बीच कर रही है। उस बच्चे में क्रोध का गुण भी स्वाभाविक रूप से माता से ही मिल जा रहा है।
सतयुग में राजा हरिश्चंद्र जब स्वप्न में देखे साम्राज्य का दान अपने गुरु को करने लगे तब महारानी तारा ने नहीं पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? उनके पुत्र रोहित का क्या होगा? यह गरिमा और महीमा है पति – पत्नी के रिश्ते की।
त्रेता में जब श्री राम कौशल्या के गर्भ में आये तो गुरु वशिष्ठ जी ने कहा ‘पुत्री सन्तान के लिये तप करना होगा, राजवैभव छोड़ तुम्हें स्वयं से जीविकोपार्जन का प्रबंध करना होगा।’
जानते हैं तब माता कौशल्या वशिष्ठ जी के आश्रम में चली गईं। अपने से अन्न उगाये और अयोध्या की गलियों में खिलौने बेच कर भूमि का मूल्य चुकता किया। आगे चल कर उनके पुत्र श्री राम की कीर्ति पूरे विश्व में फैली।
द्वापर में माता देवकी ने कृष्ण को बहुत कष्ट के बीच और भगवान के सुमिरन के बाद जन्म दिया। बारह वर्ष कृष्ण अपनी माता से दूर पले फिर लौट कर माता – पिता के पास गए. इनकी कीर्ति भी विश्व प्रसिद्ध है।
कलयुग में चंद्रशेखर को माता जगरानी देवी ने बहुत गरीबी में पाला किन्तु संस्कार बहुत उच्च दिये। जब अपनी माता और भारत माता की सेवा चुनने की बारी आई तो वही ‘चंदशेखर आजाद’ हो गये। भारत माता के अश्रु तब रुक नहीं रहे थे जब प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में भारत माता की सेवा करते – करते वह वीरगति को प्राप्त हुए।
सबके पीछे माता, पत्नी, पुत्री या बहन के रूप में नारी का बलिदान रहा है।
विचार भारत धारिता का बनता है। हे माता, तुम्हारी वजह से तुम्हारे पुत्र आतंक मचाये हैं, इसे रोको। हे जगत जननी, फिर से नारी बन जाओ, शस्त्र और शास्त्र दोनों धारण करो। तुम्हारी प्रेरणा ने कायर को पुरुष बना दिया था। तुम्हारी दहाड़ ने महिसासुर का सर्वनाश कर दिया। तुम फिर आओ मैं प्रतीक्षा करता हूं।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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