प्रेम की पराकाष्ठा

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वे लोग पिछले कई दिनों से इस जगह पर खाना बाँट रहे थे। हैरानी की बात ये थी कि एक कुत्ता हर रोज आता था और किसी न किसी के हाथ से खाने का पैकेट छीनकर ले जाता था। आज उन्होंने एक आदमी की ड्यूटी भी लगाई थी कि खाने को लेने के चक्कर में कुत्ता किसी आदमी को न काट ले।

लगभग ग्यारह बजे का समय हो चुका था और वे लोग अपना खाना वितरण शुरू कर चुके थे। तभी देखा कि वह कुत्ता तेजी से आया और एक आदमी के हाथ से खाने की थैली झपटकर भाग गया।

वह लड़का जिसकी ड्यूटी थी कि कोई जानवर किसी पर हमला न कर दे, वह डंडा लेकर उस कुत्ते का पीछा करते हुए कुत्ते के पीछे भागा। कुत्ता भागता हुआ थोड़ी दूर एक झोंपड़ी में घुस गया। लड़का भी उसका पीछा करता हुआ झोंपड़ी तक आ गया। कुत्ता खाने की थैली झोंपड़ी में रख के बाहर आ चुका था।

वह लड़का बहुत हैरान था। वह झोंपड़ी में घुसा तो देखा कि एक आदमी अंदर लेटा हुआ है। चेहरे पर बड़ी सी दाढ़ी है और उसका एक पैर भी खराब है। शरीर पर आधे कपड़े हैं उसके।

“ओ भैया! ये कुत्ता तुम्हारा है क्या?”

“मेरा कोई कुत्ता नहीं है। कालू तो मेरा बेटा है। उसे कुत्ता मत कहो।” अपंग बोला।

“अरे भाई! हर रोज खाना छीनकर भागता है वो। किसी को काट लिया तो ऐसे में कहाँ डॉक्टर मिलेगा…. उसे बांध के रखा करो। खाने की बात है तो कल से मैं खुद दे जाऊंगा तुम्हें।” उस लड़के ने कहा।

“बात खाने की नहीं है। मैं उसे मना नहीं कर सकूँगा। मेरी भाषा भले ही न समझता हो लेकिन मेरी भूख को समझता है। जब मैं घर छोड़ के आया था तब से यही मेरे साथ है। मैं नहीं कह सकता कि मैंने उसे पाला है या उसने मुझे पाला है। मेरे तो बेटे से भी बढ़कर है। मैं तो सिग्नल पर पेन बेचकर अपना गुजारा करता था….. पर अब सब बंद है।”

वह लड़का एकदम मौन हो गया। उसे ये संबंध समझ ही नहीं आ रहा था। उस आदमी ने खाने का पैकेट खोला और आवाज लगाई, “कालू! ओ बेटा कालू ….. आ जा खाना खा ले।”

कुत्ता दौड़ता हुआ आया और उस आदमी की गोद मे सर रखके उसके पैर चाटने लगा। खाने को उसने सूंघा भी नहीं।

उस आदमी ने खाने की थैली खोली और पहले कालू का हिस्सा निकाला, फिर अपने लिए खाना रख लिया।

“खाओ बेटा!” उस आदमी ने कुत्ते से कहा। मगर कुत्ता उस आदमी को ही देखता रहा।

तब उसने अपने हिस्से से खाने का निवाला लेकर खाया। उसे खाते देख कुत्ते ने भी खाना शुरू कर दिया। दोनों खाने में व्यस्त हो गए। उस लड़के के हाथ से डंडा छूटकर नीचे गिर पड़ा था। जब तक दोनों ने खा नहीं लिया वह अपलक उन्हें देखता रहा।

“भैया जी! आप भले गरीब हों, मजबूर हों, मगर आपके जैसा बेटा किसी के पास नहीं होगा।”

उसने जेब से पैसे निकाले और उस आदमी के हाथ में रख दिये।

“रहने दो भाई, किसी और को ज्यादा जरूरत होगी इनकी। मुझे तो कालू ला ही देता है। मेरे बेटे के रहते मुझे कोई चिंता नहीं।”

वह लड़का हैरान था कि आज आदमी, आदमी से छीनने को आतुर है और ये कुत्ता बिना अपने मालिक के खाये खाना भी नहीं खाता है। उसने अपने सिर को ज़ोर से झटका और वापिस चला आया।

प्रेम पर कोई वार कर भी कैसे सकता है…. और ये तो प्रेम की पराकाष्ठा है।

नोट : इस लेख में जिस चित्र का उपयोग किया गया है, वह वास्तविक कथा भी बड़ी सीख देने वाली है। पढ़ें

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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