यूँ तो जो वेदों को नहीं मानता, वह नास्तिक है (‘नास्तिको वेदनिन्दकः’ – मनुस्मृति 2/11)। किंतु व्यवहार में आज नास्तिक वह है जिसकी आस्था धर्म में नहीं है। वह लौकिकता, भौतिकता और उपभोग में विश्वास कर स्वयं को छद्म रूप से मानवता-वादी भी कहता है। मानवता-वादी भी किस प्रकार का, जो अभी-मुर्गा डकार कर कहता है मैं मानव-वादी हूँ। जिसके जीवन में अबोध जीव का कोई महत्व न हो वह कोई न कोई वादी ही हो सकता है।
वह विज्ञान मानता है किंतु अध्यात्म और ज्ञानोदय में विश्वास नहीं रखता। नास्तिक अपने आदर्श में तमिलनाडु के रामास्वामी पेरियार को लाते हैं। पेरियार वही हैं जो 1902 में काशी में ब्राह्मणों की पंगत में चोरी से घुसना चाहते थे।
उन्हें दुत्कार कर भगाये जाने पर हिंदु विरोधी नास्तिक बन गये। नास्तिकता में घोर राम विरोधी और विदेशी संस्कृति के पोषक बन गए। नास्तिक वे हैं जो अपनी ही पुत्री से विवाह करके, कारण बताते हैं कि जिस पौधे को हम लगाते हैं क्या उसका फल नहीं खाते हैं।
ध्यान रहे आप नास्तिक हैं, जिसका कोई धर्म नहीं है फिर आपने नास्तिकता को ही अपना धर्म बना लिया है। आप राम, कृष्ण और शिव का नाम विरोध करने में धार्मिक व्यक्ति से अधिक लेते हैं।
धर्म से कैसे कोई विमुख हो सकता है? कोई न कोई धर्म न मानते हुए भी आप मानते हैं। अब जबकि आप धर्म विमुख हैं फिर सनातन हिंदु धर्म पर टिप्पणी कैसे कर सकते हैं? यदि टिप्पणी कर रहे हैं तो आप धर्म को नकारात्मक रूप में स्वीकार कर रहे हैं।
मानव-वाद, मानवता धर्मभीरु या धर्म विमुख नास्तिक के गुण नहीं हैं अपितु धर्म के ही गुण हैं। नास्तिक, सेक्युलर यह सब राजनीति साधने के हथकंडे हैं। विद्वान होने यह अर्थ कदापि नहीं है कि आपको सम्मान मिलेगा। रावण जैसा महाज्ञानी अपनी विद्वत्ता से क्या सम्मान पा सका। बल्कि विद्वत्ता और सामर्थ्य के अहंकार कारण भगवान श्रीराम से ही बैर कर अपना समूल नाश कर लिया।
भारत के बौद्धिक आतंकवादी रामद्रोह के कारण रावण के निकट खड़े हैं। भले ही उनका सत्यानाश हो जाये फिर भी वह रामद्रोह करते रहेंगे।
भारत इस समय राम-रंग में सराबोर है, ऐसे में खरदूषण, मंथरा, सूर्पनखा, कुम्भकर्ण और मेघनाद रामद्रोह करके एक नई लंका सजा रहे हैं। जिसका राजा वैशाखनंदन को बनाना चाहते हैं। भारत की राजनीतिक एकांगी धर्मनिरपेक्षता ने बहुत नुकसान पहुँचाया है।
“धरमु न दूसर सत्य समाना” – सत्य के समान दूसरा धर्म नहीं है। राम सत्य, आदर्श, पुत्र, भाई, शिष्य, मित्र, राजा और पति हैं। वही तो हैं जो पतितों को पावन कर देते हैं। हे मिट्टी के माधव! अपने चक्षु खोलो। दूसरों के कन्दुक बन कर न खेलो। यह राम हैं जो जन-जन में निवास करते हैं।
चितवत पंथ रहेउँ दिन राती।
अब प्रभु देखि जुड़ानी छाती॥