भगवान का प्रकाट्य, मात्र दुष्टों के विनाश और धर्म की संस्थापना के लिए नहीं होता है बल्कि योगी, संत, वृन्द, आदि भक्त जनों की इच्छाओं की पूर्ती करने के लिए भी होता है। भगवान गीता में कहते हैं कि ‘हे धनंजय! तू जिस तरह मुझे भजेगा मैं उसी रूप में तुझे मिलूंगा।’
भूतों को पूजोगे तो भूत मिलेंगे, पितरों को पूजने से पितर, देवों को पूजोगे तो देव और जब मुझे पूजोगो तो मुझे पाओगे। मित्र, सखा, बंधु, गुरु और भगवान के रूप में लोगों में धर्म, न्याय, नीति, आदर्श और व्यवहार का ज्ञान कराने के लिये।
आज भगवान कृष्ण की कथाएँ तो सुनते हैं किंतु उनका अनुसरण और उनके बताये मार्ग पर अनुगमन नहीं करते हैं प्रत्येक वर्ष उनका जन्मोत्सव इस लिए मानते हैं कि कभी तो हमारे अंतर्मन में उनका जन्म होगा। सभी मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगे।
यदि भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाओं का हमें सदा स्मरण रहे तो मनुष्य क्या, देश क्या, विश्व की समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। भगवान अर्जुन से कहते हैं कि मैं और तू का भेद मिटा, तू अपने को मेरे में मान, तू अहंकार की नदी पार कर, फिर तो मैं तू ही हो जाऊंगा।
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई ।
जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई ।।
मनुष्य स्वार्थ की गठरी छोड़ने को तैयार नहीं है, वह शंकालु हो गया है। भगवान कहते हैं ‘नात्र संशयः पार्थ’। तुम सभी धर्मों कर्मों को छोड़ कर मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हारा योग क्षेम अर्थात कल्याण करूँगा। तो आप भी अहंकार छोड़ तैयार होइये, कृष्ण से प्रेम के लिए, उनका बनने के लिये, कृष्ण को धारण करने के लिए, मनुष्य जीवन को कृतार्थ करने के लिए। भजन को कल पर न डालिये आज ही कर लीजिए इस नश्वर शरीर का कोई भरोसा नहीं है।
तुलसी भरोसे राम के निर्भय होके सोय ।
अनहोनी होनी नहीं होनी होय सो होय ।।
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