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तुलसीदास हाजिर हो

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

जातियों का शोर-शराबा है। अरे भई! शूद्रों के लिए तुलसीदास बहुत बुरा कहे हैं। तुलसीदास को अदालत में प्रस्तुत किया जाय, जिंदा या मुर्दा! किसी ने बताया तुलसी दुबे अर्थात ब्राह्मण, नहीं – नहीं पण्डितजी थे इसलिए हम शूद्रों को हेय माना।

नारियों का आरोप ‘अधम ते अधम अधम अति नारी। तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी॥’ तुलसीदास ने यह लाइन भी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर लिखा। लिहाजा तुलसीदास जिंदा या मुर्दा न मिलने की सूरत में बकौल उनकी आत्मा को किसी भी तरह यहाँ प्रस्तुत किया जाय। जिससे उस आत्मा से सवाल पूछ सकें कि आपने शूद्र और नारियों के ऊपर लिखने का साहस कैसे किया?

क्या आपको पता नहीं था आगे कि आने वाला समय लोकतंत्र का है। आपके पास तो दिव्य दृष्टि थी फिर भी ‘ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥’ कह दिया। ढोल, गवाँर और पशु तक तो बात समझ में आती है, शूद्र और नारी को कहने का अधिकार किसने दिया? और भी कोई प्रश्न या किसी जाति की भावना आहत हुई हो तो वह भी कहे…

तुलसीबाबा ने मानस में सबसे पहले लिखा – ‘स्वांत: सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा’ अर्थात मैंने स्वयं के सुख के लिए यह रधुनाथ गाथा लिखी है। पूरी तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सदा से चेतन मन में रही है। जिसका तुम झुंड दिखा कर मर्दन करना चाहते हो। दूसरी, न मैं चारण कवि हूँ न ही नेता। मैंने सत्य कहा है, समाज के समयानुकूल कहा है। क्योंकि हर समय का अपना मानदंड होता है। व्यक्ति उसी समय को केंद्र में रख कर उसी समाज की बुराइयों और अच्छाइयों को  कहता है।

जो समाज झूठ और थोथरेबाजी पर बैठ कर हवाई मूल्यांकन करता है, उसके लिए भी मानस में कहा गया :

बूड़ सो सकल समाजु चढ़ा जो प्रथमहिं मोह बस॥ तुम इसके अर्थ को भी अनर्थ कर दोगे।

चितवत पंथ रहेउँ दिन राती। अब प्रभु देखि जुड़ानी छाती॥ ‘छाती’ का क्या अर्थ लगाते हो टिप्पणीकार?

उसी रामचरितमानस में कहा जाता है शरीर साधन है मोक्षद्वार का जैसे बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥

एक अलग प्रसंग में इसी देह के लिए तुलसी बाबा कहते हैं – छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा॥ फिर कोई अधम खोजकर्ता खोज करेगा कि तुलसीदास ने इस साधनद्वार शरीर को अधम कैसे कह दिया?

बिना पढ़े विद्वान बने लोगों की समस्या एक ही है – जानों कुछ न, बस टांग सभी जगह अड़ा दो। कौन सा प्रसंग कब कहा गया है, इस पर ध्यान देने की जरूरत ज्यादा है।

समस्या शिक्षा का जबरदस्तीकरण भी है। जिस तरह से बंदर के हाथ मे चाकू पकड़ाने से विकट स्थिति उत्पन्न होती है, उसी प्रकार निरे-लम्पट को शिक्षित करने से होती है। लो तुम भी कुछ पढ़ लो, आगे बहुत काम आने वाली है। इसी से नौकरी और छोकरी का सहज प्रबंध हो जायेगा।

तुलसीबाबा फिर कहते कि : 

तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए ।
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए ॥

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
Disclaimer: The opinions expressed in this article are the author’s own and do not reflect the views of the संभाषण Team. The author also bears the responsibility for the image/images used.

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