गर वो नहीं बदले
तो ये जमाना
जो खुद ही बदल जाएगा
मिली थी
जो ये दौलत की चाबी
ताला तो होगा
पर चाबी स्वत: ही बदल जाएगा
***
चलो तुम संभल कर
है जमाना खराब
बूरी नजरें हैं तुम पर
वो नजरें इनायत
न होगी कभी
बल्कि तुम्हारे नीचे की मिट्टी
खिसक जाएगा
***
कल हम न रहेंगे
ये जमाना रहेगा
सिर्फ वही रहेंगे
और इस जमाने का सुरताल
ऐसा न होगा
बजाओगे रामधुन
बिस्मिल्ला निकलेगा
***
जिनके नजरों के आगे
तुम्ही बसे हो
पर नजरें तुम्हारी
है उनका दीवाना
कहीं ऐसा न हो की
न हो दीदार ए मुहब्बत
और कहीं इधर का भी
मौसम बदल जाएगा
***
है टिकाऊ मोहब्बत
वही सदियों से जिसमें
आग दोनों तरफ
बराबर लगी हो
एक तरफा मोहब्बत
जिसने भी किया है
तय है उसकी कश्ती
बीच भंवर में ही डूब जाएगा
***
हमें क्या है हम तो
कल भी थे जालिम
और ये जालिमाना अंदाज
आज भी है मेरा
इसे मानो न मानो
कहना है मेरा काम
पर मुक्कद्दर तुम्हारा
बिखर जाएगा।
***
मुहाफ़िज़ तुम्हारा
वो कभी भी न थे
उन्हें शाही सर पे चढा़ओ
ये गंवारा किसी को
हरगिज़ न होगा
जो हमदम तुम्हारे
उसे पहचानो
वर्ना रुखसत तुम्हारा हो जाएगा
***
गर वो नहीं बदले
तो ये जमाना
जो खुद ही बदल जाएगा
मिली थी
जो ये दौलत की चाबी
ताला तो होगा
पर चाबी स्वत: ही बदल जाएगा
***
बड़े भाई, नमस्ते। खुश हूं देख कर की आप किसी भी भावना को आशु कविता में रूपांतरण कर देने का क्षमता रखते हैं। सरल शब्द है, पर गभीर भावपूर्ण मर्मार्थ– बहुत अच्छा लगा। मोदीजी के लिए दिन रात एक कर दिए थे आप, आप का जरूर अधिकार तो बनता है नसीहत देने का; चाहे कटु-तिक्त हो या मधुर। धन्यबाद।
वाह, भाई साहब आपने एकदम सही बात कविता के माध्यम से कही है। 👌👌
मोदी जी ने वर्तमान कार्यकाल की शुरुवात जिस प्रकार से की है उसे देख कर यही लगता है कि या तो यह कोई बड़ी सोच है या फिर वही तुष्टिकरण की घिसीपिटी राजनीति।
जो भी हो हमें (जनता को) समय समय पर सरकार को नसीहतें जरूर देनी चाहिए।
धन्यवाद 🌷🌷
धन्यवाद सर🙏🙏। इनकी जीत के लिए हमने कितनी दुआएँ मांगी। रिजल्ट के दिन भारत में अमन चैन के लिए और शांति बनी रहे इसके लिए सुबह 6 बजे घर से एक किलोमीटर की दूरी पर बांकेबिहारी जी के मंदिर गया। क्योंकि मुझे पता था इनकी भयंकर जीत होगी। लेकिन विरोधी इसे हजम न कर पाएंगे और देश में अशांति फैला देंगे। इतना नहीं इनके जीत के लिए कितने पापड़ बेले, गालियाँ खाई
कितनी गंदी गंदी गालियों के घमकियां भी मिली। इस तरह मैंने भी बहुत वोट इकट्ठा किए होंगे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हर बात में हां में हां मिलाते रहेगें।
जीताया है तो सही काम करिये। सबका विश्वास जीतिए लेकिन जिसने जीतवाया है उसके अरमानों को रौंद कर नहीं।
जितनी समझ है लिख दिया है। 🙏🙏
भाई साहब, इसमें कुछ भी गलत नहीं है। हमें तो वही दिखता है जो कार्य वो करते हैं। जो नहीं किया उसके बारे में हमें कैसे पता होगा, हमसे पूछ कर तो वो कुछ करते नहीं हैं। केवल विश्वास के नाम पर शांत रहने को कैसे सही कह सकते हैं। जो ठीक लगे उसका स्वागत और जो नहीं सही उसका विरोध करना ही लोकतंत्र है। सरकार को सुझाव देना एक जागरूक नागरिक की मुख्य भूमिका… Read more »
जी बिल्कुल 🙏🙏🙏