चलो कहीं दूर… शहर की आबो हवा खराब है

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Satyendra Tiwari
Satyendra Tiwari
न कविवर हूँ न शायर हूँ। बस थोड़ा-बहुत लिखा करता हूँ। मन में आए भावों को, कभी गद्य तो कभी पद्य में व्यक्त किया करता हूँ।

चलो कहीं दूर चले हम

शहर की आबो हवा खराब है

न दिन को शुकूं है शाकी

न ही रात पे इतबार है

चलो कहीं दूर चले हम

शहर की आबो हवा खराब है

***

जजबातों में न कशिश है

न ख्यालातों में है ताजगी

खुद के दुख से न परेशान कोई

गैरों के सुख सब हलकान है

चलो कहीं दूर चले हम

शहर की आबो हवा खराब है

***

नजर दूर तलक कहीं जाए

हरशय में एक सुरुर है

ठहरने का मकसद पता नहीं किसी को

बस रफ्तार ही रफ्तार है

चलो कहीं दूर चले हम

शहर की आबो हवा खराब है

***

हाल-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त कहीं शबाब पर

कहीं बेगैरत-ए-बेवजह बहार है

यहाँ होश में तो हैं सब मगर

दिलों पे कुछ और ही नासार है

चलो कहीं दूर चले हम

शहर की आबो हवा खराब है

***

बहुत मासूम नजरें हैं यहाँ

मगर वो फरेब का करोबार है

दिखता भी कहीं प्रेम है तो

बहुत ये मंहगा व्यापार है

चलो कहीं दूर चले हम

शहर की आबो हवा खराब है

***

दुआएँ बेअसर दिखने लगी है

आरज़ू थी एक चमत्कार हो

जमीं पे खुदा आ सकते नहीं

और आदमी, आदमी का गुनाहगार है

चलो कहीं दूर चले हम

शहर की आबो हवा खराब है

***

इबारत-ए-असरार मगर

अश्फाक-ए-इल्तिजा है आश्ना

बेखुदी में शहर-ए-ऐहतमाम है

इत्तिफ़ाक़न हमें तो होश है

चलो कहीं दूर चले हम

शहर की आबो हवा खराब है

***

नजर फरेब है बहुत

निशाना दिल पे करते हैं

जख्म सीने पे सहते हैं

वो हमें इसी काबिल समझते हैं

चलो कहीं दूर चले हम

शहर की आबो हवा खराब है

***

चलो कहीं दूर चले हम

शहर की आबो हवा खराब है

न दिन को शुकूं है शाकी

न ही रात पे इतबार है

चलो कहीं दूर चले हम

शहर की आबो हवा खराब है

***

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
Disclaimer: The opinions expressed in this article are the author’s own and do not reflect the views of the संभाषण Team. The author also bears the responsibility for the image/images used.

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