चाहत अपने में चलने की

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

🚶🏃

स्वार्थ में लोग दौड़ने लगते हैं।

बाकी तो विकलांग ही नजर आते हैं।

कब तक बच सकते हो?

कहाँ तक चल सकते हो?

सब तो वही चाहते है।

जो तुम चाहते हो, प्रेम

कोई नहीं समझता इसे।

जिसे देखो उधार मान कर चलते हैं।

जितनी जल्दी छूटे उतनी जल्दी स्याह,

कोई देखेगा तो क्या कहेगा?

उदास था उदास हूं,

क्या उदास ही रहूँगा?

हँसना चाहता हूँ,

वे हंसने नहीं देते।

मैं तो मौजी माँझी,

तुम नहीं तो कोई और सही।

कोई दूसरा ग्राहक फसेगा।

जो फस गया तो प्रेम क्यों नहीं करेगा?

प्रेमय लेना प्रेमय देना।

प्रेमय का कीन व्यापार।।

तो कैसे कोई नहीं आयेगा

इस पार

समझ गये तो पा गये।

न समझे

तो फेरमफार।।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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Sachin dubey
Sachin dubey
5 years ago

Ekdam sahi

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