मरता समाज होता व्यापार

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

नास्तिक छठ पूजा कर रहे हैं, दूसरे नास्तिक हिन्दू संस्कार के तहत अपने पिता की अंत्येष्टि कर्म कर रहे हैं। जबकि पिता इसी धार्मिक व्यवस्था को गाली देते नहीं अघाते थे। नातिन को नानी बिन व्याही मां बनने की सलाह देती हैं। ईरान में महिलाएं अपने हक के लिए पुरुषों से जोर लगा रही हैं। रूस – अमेरिका के मध्य शुरू हुये नये कोल्ड वार (शीत-युद्ध) में यूक्रेन मर रहा है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक ओर नग्नता है, दूसरी ओर अपने तरह के विचारों की भरमार! लोगों के विचार पार्टी ओरिएंटेड हो चुके हैं। लोग अपनी – अपनी बातों पर बहुत जोर लगा रहे हैं। मजेदार बात यह है कि भारत तोड़ने वाले जोड़ने की यात्रा शुरू किये हुए हैं।

अभी दलित और गरीबी का रोना राजनीति में पूर्ववत चल ही रहा है। भारत में राजनीतिक योग्यता का आर्थ है – ‘राजनीति में आप की जाति का गणित कितना है’। राजनीति इसी पर ज्यादा निर्भर करती है। लोगों को लूटने का लाइसेंस मिलता है, इसलिए इसे लोकतंत्र कहते हैं।

विश्व की राजनीति एक और महायुद्ध की ओर बढ़ रही है। दूसरी ओर भारत में जाति का राजनैतिक नाटक चल रहा है। भाई और माता-पिता के बाद भारत में स्वयं पुरुषरूपी पति की स्थिति बहुत दयनीय हो चुकी है।

भारत के दो पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन की स्थिति यह है कि एक धार्मिक उन्माद में आतंकवाद को संरक्षण दे रहा है तो वहीं दूसरा कम्युनिस्ट के उन्माद में अपने लोगों के साथ मशीन की तरह व्यवहार कर रहा है और पड़ोसियों के साथ सम्राज्यवादी वर्ताव। चीन में जिनपिंग जितना मजबूत होंगे; भारत से चीन के रिश्ते उतने ही नाजुक दौर में चले जायेंगे।

नये दौर में विश्व के उभरते अमीर मस्क और जुकरबर्ग विश्व के प्रत्येक व्यक्ति को वर्चुअली रूप में देख रहै हैं। वर्चुअल दुनिया और वर्चुअल भोजन की संभावना में व्यापार की तलाश कभी की शुरू हो चुकी है। सम्पूर्ण विश्व कितना भी कसमसा ले, पर सारा चिंतन कुछ वर्चुअल लोगों के हाथों में आ गया है, वही सेटअप कर रहे हैं। समाज नौकरी के फेर लगा है, व्यापारी हर वस्तु और चीज को व्यापारिक बनाना चाहता है। ऐसे में मात्र नेता की बात करनी बेमानी ही होगी।

आप क्या कुछ सोच पाते है?

सुधार कमी या बीमारियों में होती है, अंहकार और गलत को सही मानने वाले में सुधार कैसे की जा सकती है? प्रज्ञा, चित्त, विचार, संस्कार और फिर व्यवहार में परिणीति कैसे की जाय? जबकि सब कुछ की पैकेजिंग है, बस बटन दबाने की देर है। इतनी तरह की चीजें इसलिए हो रही हैं जिससे कोई भी विचार आप में जन्म न ले पाये। आपको किसी वैक्सीन से विचार दे दिया जायेगा, आप बस मनोरंजन पर ध्यान दीजिए। एक बात और पुल हो या कुछ और गलत की जिम्मेदारी किसी की नहीं बनती। अच्छे के लिए सभी श्रेय और सेल्फी लेने को बेताब दिखते हैं।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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