धर्म विश्व का ऐसा विषय जिस पर सदियों से चिंतन मनन और बोला जा रहा है फिर भी मानव को कुछ कमतर लगता है। धर्म वह है जो धारण किया जा सके “धारयते इति धर्म:” प्रश्न है क्या धारण किया जाय तो मनुष्यता को धारण करें? मनुष्यता से अर्थ प्रेम सौहार्द एकत्व से है।
जब सभी धर्म हमें सच्चा मार्ग दिखाते है ईश्वर की ओर ले जाते है तब सदियों से मनुष्य धर्म के नाम खून खराबा क्यों कर रहा है? दूसरी बात विश्व में इतने धर्म क्यों है? इसके बावजूद मनुष्य एक दूसरे को नीचा दिखा रहे है, अपने धर्म को श्रेष्ठ मान रहे है, मेरा तेरा धर्म कर रहे है। गीता में भगवान कृष्ण कहते है “हे धनंजय मैं और तू का भेद मिटा और तू अपने को मेरे में जान” उपनिषद भी एकत्व की बात एकोहम द्वितियो नास्ति की बात करते हैं, यहाँ धर्म विशेष के लिये नहीं है बल्कि समस्त प्राणी का आव्हान किया गया है।
मनुष्य अपने सफर में कहा तक चला है? विभिन्न धर्म लगभग एक सी बातें करते दिखते है। पृथ्वी का गुण उत्पादकता है जल की शीतलता,अग्नि में प्रखरता, वायु में व्यपाकता, आकाश में विस्तारिता, मानव का मनुष्यता- प्रेम और सौहार्द्रता।
विश्व के विभिन्न धर्मो ने मनुष्य को क्या बताया और उसने क्या सीखा?
जापान का ताओ कहता है सौम्यता, मितव्ययिता तथा नम्रता अपनाओ, शिंतो धर्म के अनुसार सब कुछ प्रकृति का इस प्रकृति से उसके प्राणियों से प्रेम करो।
कंफ्यूशियस – जब तुम्हें यही ज्ञान नहीं कि मनुष्य की सेवा किस प्रकार की जाय तब तुम देवों के संबंध में कैसे पूछ सकते हो? प्रत्येक से ऐसे मिलो जैसे वो तुम्हारा बड़ा अतिथि है।
बुद्ध – राग के समान कोई आग नहीं द्वेष के समान ग्रह नहीं मोह के समान जाल नहीं तृष्णा के समान कोई अगम नदी नहीं है, बुद्ध सदाचारी होने को कहते हैं।
जैनियों का मत है किसी कार्य मे सफलता प्राप्त करने के लिए तीन बातों की आवश्यकता होती है श्रद्धा, ज्ञान और क्रिया। साधारण तरीके किसी चीज को जाना नहीं जा सकता है वाह्य आवरण की बात अलग है।
प्रत्येक सिक्ख को राष्ट्र व मानवता हेतु अपनी आहुति तथा शास्त्रादपि शरादपि का माला और भाला रखने का, अनीति से जूझने का संदेश दिया है।
पारसी जरथुस्त्र के अनुसार उत्तम विचार, उत्तम वचन, उत्तम कार्य तथा ईश्वर के साक्षी के रूप में अग्नि को स्वीकारा किया।
यहूदी का मूल दर्शन ईश्वर के एकत्व ईश्वर की पवित्रता तथा उसकी निराकारिता में सन्निहित है। ईसाई और इस्लाम इसी से प्रस्फुटित हैं, सनातन से बौद्ध,जैन, सिक्ख का जन्म हुआ।
ईसाई धर्म के अनुसार प्रेम ही परमेश्वर है, प्रेम ही पूजा और आराधना है। वह कहता है मुझे सत्य के मार्ग पर चला, मेरे ज्ञान चक्षु को खोल जिससे मैं मुक्त हो जाऊं।
पैगम्बर मोहम्मद कहते है हर इंसान अल्लाह का कुनबा है। वह कहते है आओ तुम और मैं मिलकर उन चीज़ों पर मेल कर ले जो हम दोनों में से एक है।
वेदांत दर्शन कहता है मूल में सब कुछ एक है। जिसे एकत्व का दर्शन हो जाता है उसकी दृष्टि में स्वार्थ और परमार्थ में भेद नहीं रहता है। सबको अपने में और अपने में सब को देखने के रूप में होती है। तब अंतर्मन शंखनाद करता है “आत्मवत सर्व भूतेषु”।
वास्तव में हम एक ही है फिर इतनी हिंसा, द्वेष, वैमनस्यता क्यों की जा रही है? तो कारण भी वही है, हम धर्म के मर्म को अभी भी नहीं जान पाये। धर्म के माध्यम से अहम, सर्वश्रेष्ठता और व्यापार की अभिलाषा पूर्ण करना चाह रहे है।
सब अपने धर्म का पालन कर रहे, सिर्फ मनुष्य को छोड़ कर। जिस दिन वह धर्म के पालन पर चल दिया समझिये समस्याओं की आहुति हो गई। प्रेम, बंधुता, अहिंसा, सौहार्द जो सदियों पूर्व सभी धर्म उद्घोषणा करते हैं उसके निकट बैठ सकते हैं।
एक दिन ऐसा आयेगा जब धरती के समस्त मानव को एक होना पड़ेगा कोई सीमा या सरकार नहीं रोक पाएंगी क्योंकि उसकी उत्पति तो एक ही परम पुरुष से हुई है उसका एक ही धर्म है मानवता एक ही गुण है प्रेम। तो मिल के उदघोषित करिये “अहं ब्रह्मस्मि” सब एक हो चराचर विश्व एक हो।
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Prashansaniy uttsahvrdhk 👌👌
Thx ji