श्री नित्ये! बगलामुखी! प्रतिदिनं कल्याणि तुभ्यं नम:।
दश महाविद्याओं में से एक (पृष्ठस्तव या देवी बगला शत्रुसूदिनी) भगवती ‘बगलामुखी’ (वलगामुखी, बगला, पीताम्बरा, वल्गामुखी) ही श्रुति में वर्णित ‘कृत्या-वल्गा’, ‘वलगहन’ हैं। वल्गा = वलगा का अर्थ ‘लगाम लगाना’ अथवा ‘निग्रह करना’ होता है। वर्णव्यत्यय से निगम शास्त्र में वर्णित ‘वल्गामुखी’ आगे चलकर आगमशास्त्र में ‘बगलामुखी’ नाम से प्रसिद्ध हुईं।
वकारे वारुणी देवी गकारे सिद्धिदा स्मृता।
लकारे पृथिवी चैव चैतन्या में प्रकीर्तिता॥
वकार = वारुणी देवी, गकार = सर्व सिद्धदायिनी, लकार = पृथ्वी रूपिणी तथा चैतन्यस्वरूपिणी माँ वगलामुखी।
बगलामुखी में ‘मुख’ का अर्थ निःसरणात्मक है, यह शरीरांग नहीं है (यथा ज्वालामुखी)।
श्रुति (यजुर्वेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण ग्रंथों) में वर्णित कृत्या वल्गा प्रयोग क्या है व किसलिए है?
देवयोनियों में जो राक्षस हैं वे ही कृत्या कहलाते हैं, यह स्त्री-पुरुष दोनों हो सकते हैं। उपाय विशेष से राक्षस को वश में करके उसके द्वारा शत्रु का विनाश करवाया जाता है। इस कृत्या को वश में करने का जो साधन है उसे ‘वल्गा’ कहते हैं। अथर्वासूत्र द्वारा यज्ञविनाशक असुरों पर कृत्या प्रयोग का वर्णन मिलता है, ‘बगलासूक्त’ में अनेक प्रकार की कृत्याओं का वर्णन मिलता है। यजुर्वेद में देवताओं से युद्ध करते समय भागते हुए राक्षस भूमि में अभिचारिक कर्म करते हुए अस्थि, केश, नख आदि जिन पदार्थों को भूमि में गाड़ देते थे, वे वल्गा कहलाते थे।
आगमशास्त्र में वर्णित बगलामुखी महाविद्या के साधन से शत्रु एकांतत: विनष्ट हो जाते हैं (वशीकरण, मोहन, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण आदि)। यही क्षोभ शांति का उपाय है। भगवती बगलामुखी की विद्या “ब्रह्मास्त्र विद्या” है, इसके द्वारा दुष्ट, दूषक, दुरात्मा शत्रु से रक्षा; दुष्ट गढ़, राशि, सेना, अपमृत्यु, रोग एवं परसेना आक्रमण का पराभव; स्व सेना की रक्षा, आत्मरक्षा, विजय, विष नाश, संहार अस्त्र नाश, कृत्या विनाश, शस्त्रस्तम्भन, मोक्ष आदि हजारों प्रयोजनों की सिद्धि होती है।
माँ बगला का एक नाम पीताम्बरा भी है, उनका वर्ण पीला है। जिस प्रकार भगवान नारायण पीताम्बर के रूप में छन्दों से आवृत्त हैं उसी प्रकार माँ बगलामुखी भी छन्द रूपी पीताम्बर से आवृत्त हैं। भगवती बगला वैष्णवी शक्ति हैं वे आदि अनन्त परब्रह्मस्वरूपिणी हैं। कृतयुग में वातक्षोभ को शांत करने हेतु भगवान विष्णु के उपासना से भगवती बगला हरिद्रा झील के निकट प्रकट हुई थीं व पीताम्बरा कहलाईं।
भगवती बगलामुखी का स्वरूप :
द्विभुज रूप में वे स्वर्णपीठ पर आसीन हैं, एक हाथ में मुद्गर धारण कर रखा है तथा एक हाथ में शत्रु की जिह्वा पकड़े हुए हैं। चतुर्भुज रूप में वे त्रिनेत्रा कमलासीन हैं। गदा, वज्र, पाश तथा शत्रुजिह्वा धारण करती हैं। उनका पीला वर्ण पृथ्वी का तत्त्व है तथा छन्द का प्रतीक है, वाहन सिंह धर्म का प्रतीक है। भगवती के स्वर्णकुण्डल भोग-मोक्ष के संसूचक हैं, रत्न व चम्पा पुष्पों की माला ऐश्वर्य का प्रतीक है। उनका मुकुट पारमेष्ठय पद को दर्शाता है। मुकुट पर स्थित पीत वर्ण चन्द्रकला चन्द्र की षोडशी कला का प्रतीक है। भगवान शिव के समान इनके त्रिनेत्र भी अग्नि, सूर्य व चन्द्र के प्रतीक हैं।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि माँ बगला के आविर्भाव का उद्देश्य चराचर विनाशी वात क्षोभ का निवारण तथा राक्षसों पर विजय है। यदि यह समझा जाए कि यह महाविद्या पाँचभौतिक बाह्य क्षोभ निवारण के लिए ही हैं तो यह पूर्णरूपेण सही नहीं होगा। क्योंकि मानसिक क्षोभ व मनोविकारों (आंतरिक शत्रुओं) पर विजय पाना भी इस ब्रह्मास्त्र विद्या का उद्देश्य है। अन्य विद्याओं की भांति इस विद्या का भी अंतिम उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है, इसीलिए यह स्पष्ट रूप से कहा जाता है कि इस महाविद्या का प्रयोग परपीड़ा के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
विश्व शक्तिमय है, और यह शक्ति माँ बगलामुखी हैं अतः इनकी उपासना व साधना का लक्ष्य देवी का साक्षात्कार है।
जय मां बगलामुखी! लेख लिखने के लिए धन्यवाद। बहुत बढ़िया।
पढ़ने के लिए धन्यवाद। सादर प्रणाम।